Wednesday, April 20, 2011

पश्चाताप

बिटिया बंगलौर से वापिस दिल्ली आ रही थी .अत: मुझे दिल्ली हवाई अड्डे पर उसे लेने जाना था .दोपहर के समय हवाई जहाज उतरना था ,इसलिए सोचा कि विद्यालय से अर्द्ध अवकाश लेकर हवाई अड्डे पहुंच जाऊंगी .विद्यालय का कार्य निपटाकर अर्द्धावकाश लिया और विद्यालय से बाहर आ गई .बाहर निकलकर स्कूटर की तलाश करने लगी .दिल्ली में स्कूटर आराम से मिल जाए ; भई बड़ा मुश्किल है .कई तो कहते हैं कि उस दिशा में ही नहीं जाना और कोई जाने को भी तैयार हो, तो भाड़ा ऊल -जलूल  मांगते है. 
                                      खैर , जैसे तैसे एक स्कूटर मिल ही गया .स्कूटर में कदम रखने ही वाली थी कि बिटिया का फ़ोन आ गया . उसने बताया कि फ्लाइट दो घंटे लेट है . मैंने सोचा, दो घंटे हवाई अड्डे पर बैठ कर क्या करुँगी .विद्यालय से तो अवकाश ले ही लिया था , सो वहां जा कर भी क्या करती ? मैंने सोचा क्या बस से भी हवाई अड्डे पहुंचा जा सकता है? कोई तो रूट होगा ही .चलो प्रयत्न कर देखते है . फिर समय तो काफी है . कोई जल्दी तो है नहीं .
                                     वहीँ से एक बस महिपाल पुर जाती थी . मेरा अंदाजा था कि रास्ते में कहीं पालम गाँव पड़ता है .वहीँ से पालम एअरपोर्ट के लिए बस ले लूंगी .बस  में चढ़कर मैं एक सीट पर बैठ गई .किसी यात्री से मैंने सलाह ली कि पालम हवाई  अड्डे पहुँचने के लिए कहाँ उतरना चाहिए .यात्री ने अपना पूरा दिमाग इस्तेमाल करते हुए मुझे ठीक सलाह देने की  कोशिश की  .परन्तु मैं संतुष्ट न थी .मैंने सोचा अभी कंडक्टर तो टिकट देने आएगा ही ,उसी से पूछ लूंगी .थोड़ी देर में एक सुंदर सा नौजवान बस में चढ़ा और  उसने टिकट  देने शुरू किये .
                               मेरी सीट पर आ कर वह थोडा ठिठका ,पर मुझे टिकट नहीं दिया . जब वह पीछे की ओर जाने लगा ,तो मैंने उसे बुलाया और कहा कि भई मुझे टिकट दे दो .इस पर वह कहने लगा कि नहीं मैडम आपको टिकट नहीं दूंगा .मैं हैरान थी .मैंने कहा" भई ऐसा क्यों कर रहे हो? सबको टिकट दे रहे हो , मुझे क्यों नहीं?" उसने फिर कहा ",नहीं मैडम ,आपको नहीं दूंगा ."  अब मेरा कुछ माथा ठनका .यह बार बार मुझे मैडम कह रहा है ,अर्थात जानता है कि मैं अध्यापिका हूँ .मैंने फिर कहा ,"क्यों भई टीचर्स को फ्री सवारी कराते हो ? "उसने कहा ,"ऐसा ही समझिए ."
                   अब तो मेरी उत्सुकता और भी बढ़ गई .मैंने उसे अपने पास बुलाया और पूछा,"सच सच बताओ बेटे !टिकट क्यों नहीं दे रहे?"  
          उसने अपनी नज़रें नीची रखी , और धीरे से बोला ,"आप मेरी टीचर  हैं न.  इसलिए आपको टिकट नहीं दूंगा ." 
मैं बहुत हैरान थी . अरे मैंने इसे कब पढाया ? मैंने उससे पूछ ही लिया ,"बेटे मैंने तुम्हे कब और कहाँ पढाया? "
तब उसने बताया कि उसका नाम उमेश था और मैंने उसे बक्करवाला नाम के गाँव में छ: साल पहले पढाया था
ओह ! छ:  साल पहले!.  धीरे धीरे उसका चेहरा और नाम मानस पटल पर आने लगा .
         
 "अरे उमेश ,तू इतना बड़ा हो गया है ! मुझे तो पहचान में ही नहीं आया . तू बस कंडक्टर बन गया है?"  
"हाँ मैडम . मैं यहीं नौकरी कर रहा हूँ ."
"और तूने पढाई कहाँ तक की?"
"बस मैडम यहीं मार खा गया .आठवीं में दो बार फेल हुआ .फिर पढाई छोड़ दी ."
"क्यों ?"
"आपको तो पता है मेरा पढाई में मन था ही नहीं .ऊल जलूल शरारतें करता रहता था . एक दिन प्रिसिपल साहब  ने स्कूल  से नाम काट दिया .मैं भी फिर स्कूल नहीं गया ." फिर बोला "अब पछताता हूँ .आपकी बहुत याद आती  है .आप कितने प्यार से मुझे स्टाफ रूम में बुलाकर समझाया करती थी .आपकी बात सुनता तो कितना पढ़ चुका होता ." उसकी आवाज़ भरभरा रही थी 
 मेरा मन भी परेशान हो गया .मुझे सब याद आ रहा था .उसकी माँ को भी कई बार बुलवाया था .पर वो किसी की सुनता ही न था .
मैंने  प्यार से समझाया ,"देखो बेटे ,जो बीत गया उसे भूल जाओ . तुम वाकई में अब भी पढना चाहते हो तो ,अब भी कुछ बिगड़ा नहीं है ."
उसने अब मेरी ओर देखा ,"सच मैडम ! वह कैसे?"
 मैंने उसे सुझाव दिया की वह ओपन स्कूल से आगे पढाई ज़ारी रखे .उसे पूरा पता भी बताया जिससे वह वहां जा कर फार्म भरे और फिर से पढाई  शुरू करे .
बड़ी कृतज्ञता से उसने मेरे पैर छुए ."अरे! मैं तो भूल ही गई बेटे.   मुझे पालम हवाई अड्डा जाना है .कहाँ से पास पड़ेगा ?'
बड़े उत्साह से वह बोला ,"मैडम आप अगले स्टैंड पर ही उतर जाइए .वहां से आपको ९२७ नंबर की बस मिलेगी .वह आपको एयरपोर्ट पर ही छोड़ेगी ."
मैंने कहा ,"बेटे टिकट नहीं देते न दो .ये सौ रूपये का नोट अपने पास रक्खो , मेरा आशीर्वाद समझकर ."
पर उसने रूपये नहीं लिए बोला ,"मैडम आपके दर्शन हो गए .यही आशीर्वाद है ."
अगले बस स्टैंड पर उसने मुझे उतार दिया .उसकी आँखे नम थी .शायद समय पर पढाई न करने का पश्चाताप था .
                 
                      

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