Thursday, April 21, 2011

मेरी पहली कमाई

तब मैं बहुत छोटी थी . शायद पांचवी या छटी कक्षा में रही हूँगी . भाई मुझसे बहुत बड़े थे . वे कालेज  में पढ़ते थे . मुझे जेबखर्च पांच पैसा मिलता था , और भाई को एक चवन्नी ! मेरे लिए तो शायद चवन्नी खजाने की तरह होती .  इतने में तो मेरी ज़रूरत  की बहुत सी चीज़ें  आ सकती थी .पर पांच पैसे भी कम न थे .
                      एक दिन हुआ यूँ  कि भाई कि जेब से घर में ही उनकी चवन्नी कहीं गिर गई.  वो उसे ढूंढने  लगे . मैं भी  उन्हें देखने लगी . मैंने पूछा ,"भाई !क्या ढूंढ रहे हो ?" उन्होंने बताया कि उनकी चवन्नी आस पास ही गिर गई है . अब मिल नहीं रही . मैंने कहा ,"मैं ढूंढ़  दूं  क्या  तुम्हारी चवन्नी ?"  भाई बहुत खुश हुए  बोले ,"हाँ..मुझे तो बहुत पढना है . समय नहीं है . अगर तू मेरी चवन्नी ढूंढ देगी ,तो दुअन्नी तुझे भी मिलेगी ."  यह सुनकर तो मैं बहुत खुश हो गई . अरे वाह ! एक दुअन्नी मिलेगी . इसमें तो बहुत कुछ आ सकता है . बाहर हलवाई  से बहुत सारी दाल मोठ जिसे हम दाल भीजी भी कहते थे . या फिर दो समोसे .  मेरी  चोटी के लिए दो रिब्ब्नें , या  एक  दर्जन छोटी  छोटी   चूड़ियाँ  . मैंने कल्पना में ही कई सारी चीजें सोच ली थी .पर इसके लिए जरूरी था कि दुअन्नी तो हाथ में आए!
                              अब तो मैंने जोर शोर से चवन्नी की खोज शुरू कर दी . जहाँ भाई ढूंढ रहे थे , वहीँ होने की  सम्भावना  अधिक  थी . तो वहीं आसपास  तलाश  प्रारम्भ कर दी . मेज से नीचे झाँका . अलमारी के नीचे ,कुर्सी   
 के आस पास , खाट के  नीचे  सभी जगह देखा . यहाँ तक कि  खाट पर पड़ी हुई  चादरें  और दरी भी झाड़ी  . मगर चवन्नी  न मिलनी थी ,न मिली . तब मैंने सोचा क्यों न एक बार पूरे फ़र्श  पर झाडू  लगाकर देख लूं ; क्या पता इस प्रकार वह मिल जाए . पूरे फ़र्श पर बड़ी सावधानी के साथ मैंने झाडू लगाईं . लेकिन हाय री  किस्मत  !
चवन्नी का  कहीं अता  पता नहीं . मुझे  लगा  चवन्नी ही नहीं खोई  बल्कि मेरी दुअन्नी भी साथ गई . बड़ी देर तो मैं ताक़ झांक  करती रही . बाद में थक हारकर  अपने काम में लग गई  .
                            शाम को बाउजी  ऑफिस  से आए .  ऑफिस से आते समय वे अपने    साथ थैले में कोई न कोई  फल जरूर लाते थे . मैंने बाउजी के हाथ से थैला लिया . उसमें  रसीले चौसा आम थे . उस समय फ्रिज तो होते नहीं थे . तो आमों को ठंडा करने के लिए ठन्डे पानी में ड़ाल देते थे . माँ ने सुराही का पानी  बाल्टी में डाला और मैंने वे आम उसमे ड़ाल दिए ,जिससे कि वे ठन्डे हो जाएँ .  तभी बाउजी ने बैठने के लिए खाट को थोडा आगे की तरफ खिसकाया . मेरी नज़र खाट के पाये  के पास गई तो मैंने देखा वहां चवन्नी थी . जिस चवन्नी को मैं इतनी देर तक ढूंढती रही , वह वहां बड़े मज़े में पड़ी रही ! लपक कर मैंने चवन्नी  उठाई और सीधा ऊपर पहुंची जहाँ पर भाई पढ़ रहे थे . मैंने चवन्नी भाई को दी .
            भाई बहुत खुश हुए . उन्होंने ख़ुशी ख़ुशी दुअन्नी मेरे हाथ पर रख दी .
                             यह मेरे जीवन की सबसे पहली कमाई थी 
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