Tuesday, April 12, 2011

मेरी छोटी सी बिटिया




मधुमास के मुकुलित पुष्प की मकरंद सी 
आभामय चांदनी में छिटकते तारों सम उज्ज्वल सी 
स्वप्न में मधुमास संजोए हास परिहास सी 
संध्या की वेला में स्वर्णिम लालिमा लिए कान्तिमान सी 
क्या तुम वास्तविकता हो या सुहाना साकार छलावा?
अभी अभी अंक में लिटा क्या मैने तुम्हे सहलाया ?
यह विडम्बना है की वास्तविकता होकर भी स्वप्न हो 
दृश्य होकर भी हो अदृश्य ,क्यों छलने में मग्न हो ?
स्वप्न परी हो ज्यों कोमल कली में छिपी कहीं 
हाथों से छूट पुन: समीप आती हो क्यों नहीं ?
सूना मन सूना आँगन सूना नभ सब है सूना सूना 
पुलकित मुस्कान से भर दो घर का कोना कोना 
मन उपवन के पुष्प पुष्प तुमने ज्यों खिलाए
रखना तुम जीवन बगिया सर्वदा महकाए 

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