Monday, May 16, 2011

सफ़ारी का सफ़र

ढेर सारे ज़ेबरे !
कुछ पीछे ,
कुछ आगे .
कार के शीशे पर ,
पूरा जबड़ा दिखाते ,
जैसे हों कहते ,
"लो गिन लो सब दांत , 
पर भूखी हैं आंत,
कुछ दे दो ना !"
एक लम्बा जिराफ ,
अपनी उंचाई से भी लम्बा ,
शान दिखाता अकड़ से,
सामने ही खड़ा है .
और उसके दो भाई ,
खिसक जाते हैं पीछे से .
जैसे कहते हों कोई वी आई पी ,
"अभी समय नहीं ,
फिर आना .
रिश्वत भी, 
                                                                        बाद में पहुँचाना ."


भोला सा शतुरमुर्ग ,
कैमरे को देखकर, 
फोटो खिंचवाने को उत्सुक ,
पास में आता है .
फोटो खिंचवाकर फिर ,
चलता नज़र आता है .
पंख फडफडाकर 
सीना फुलाए 
बड़ा इतराता है 
चोंच आगे बढाकर 
हथेली से चुगता 
बड़ी चोंच को फटफटाकर 
अभिनय सा करता 
क्या मन को भाता है !
भोले से हिरन खूब 
आये हैं इधर उधर 
खाने को उत्सुक '
पर आहट से जाते डर.
"अरे रुको !
थोडा प्यार तो कर लूं."
  

मगर वो नहीं रुकते 
पीछे चले जाते हैं .
एक और कार पर ,.
जहां छोटे बच्चे हैं .,
हाथ में खाना लिए 
नन्हे से हाथों में .
भोली आँखों को मिचकाते ,
प्यारे प्यारे हिरन ,
अब जल्दी से खाते है ,
और वापिस लौट जाते हैं
.                                        दो शानदार एमु ,
 
धीरे धीरे शान से 
एक एक पग गुमान से 
यों रख के चलते हैं 
जैसे कोई नेता हों 
या बड़े अभिनेता हों 
हमने यह समझा
कि शायद ये 
      पास में तो आएँगे        
  
या तो दाना खायेंगे 
या फिर बतियाएंगे 
पर ये भ्रम तो नकली है
देखते ही देखते
सड़क पार कर ली है
और कैमरे को धता बता
चाल तेज़ कर ली है
शाही अंदाज़ में
कुछ चीते
आराम फरमाते हैं
एक सुन्दर सजीला
नौजवान चीता
थोडा पास आता है
फोटो खिंचवाता है
शान से फिर चलता,
दूर पहुँच जाता है .
गैंडा है बहुत दूर .
"ज़रा पास आओ हुज़ूर !"
पर वो नहीं सुनता
केवल सींग दिखाता है ;
और नाक चिढ़ाता है .
बड़ा सा इक कछुआ,
रेत पर बैठा बैठा,
भोली सी अदा लिए,
होले से गर्दन हिला ,
हमको निहारता है.
फिर सो जाता है .
दिन ढल जाता है .
सफारी का सफर फिर ,
ख़त्म हो जाता है.






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