Thursday, May 19, 2011

जब अथाह प्यार मिला ! ( 2)

थोड़ी देर बाद विनय भी मुझसे मिलने आया . वह होस्टल में ही रहता था . पर डिपार्टमेंट जाने से पहले मुझसे एक बार मिलने आया था . वह आगरे का रहनेवाला था . वह रसोई में मुझसे मिला और नमस्ते की. परांठा खाकर वह भी बहुत खुश हुआ . सब बच्चों के जाने के बाद मैं भी नहा ली . जब मैं नाश्ता कर रही थी तो रसोई में एक लड़का आया . उसने मुझे बताया कि वह सबका लंच तैयार करके जाता है . उसने जल्दी जल्दी सब्जी काटी , पकाई और आटा गूंधकर ढेर सी रोटियां बना गया .
                            लंच में सभी बच्चे आये . चटपट लंच करके सभी डिपार्टमेंट के लिए चलते बने . ऋचा कमरे में ही लंच ले आई ; वह भी फटाफट लंच खाकर चली गई. बच्चों के जाने के बाद मैंने ऋचा के और अपने कपडे धोए . कुछ देर आराम करके चाय पी . अखबार पढने के बाद मैं खिड़की से बाहर झाँकने लगी . सामने ही दो बड़े बड़े आम के पेड़ थे . उन पर बैठी कोयल बहुत ही मीठा गा रही थी . नीचे मुख्य दरवाजे में कुछ डाक्टर आ रहे थे . शायद उनके डिपार्टमेंट की छुट्टी हो गई होगी . आधे घंटे बाद ऋचा और बाकी बच्चे भी वापिस आ रहे थे . ऋचा के साथ उसकी सहेली रश्मि भी मुझसे मिलने आई थी . वह बंगलौर में ही रहती थी और अपनी स्कूटी से ही आती जाती थी . बहुत प्यारी बच्ची थी . वह बहुत खुश हुई मुझसे मिलकर . उसने मुझे अपने घर आने का निमंत्रण भी दिया .
                                                                  शाम को बच्चों के साथ मैंने चाय पी. उसके बाद सभी अपनी पढाई में लग गए . मैंने रसोई में जाकर देखा तो बेसन रखा था . सोचा प्याज़ भी हैं और बेसन भी . थोड़े पकौड़े बना लूं .  . पकौड़े  लाकर  बच्चों की मेज पर जब मैंने रखे,  तो उनके चेहरे पर छाया आनंद देखते ही बनता था . पढाई के  साथ-साथ , खाने को पकौड़े भी मिल जाएँ , वह भी बिना किसी प्रयत्न के ; तो घर का सा वातावरण लगने लगता है . 
                                     रात को बच्चों को चावल और दाल खिलने के बाद आध पौन घंटे हमने खूब गप शप मारी . अमित बहुत सुरीला गाना गाता था . एक बार तो उसने किसी उत्सव में गाया तो सभी यह सोचते रहे कि शायद पीछे रिकार्ड बज रहा है और वह केवल होठ हिला रहा है . जब उसे खांसी आई तो सब हैरान हो गए कि अरे ये तो स्वयं ही गा रहा था . तो मैं बता रही थी कि खाना खाने के बाद अमित ने एक बहुत सुन्दर गीत सुनाया . फिर सभी बच्चे देर तक पढ़ते रहे . मैं और ऋचा तो साढ़े दस ग्यारह तक सो गए थे 

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