Thursday, September 29, 2011

कली से पुष्प तक !

सारी रात प्रयत्नशील रहने पर भी वह कली मुकुलित न हो सकी . प्रात:कालीन बयार उस पर मुस्कुराती , इठलाती व्यंग्यबाण भेदकर चल दी . सम्पूर्ण पादप की पुलकित कुसुमावली कनखियों से उसे देख मुस्कुराती रही , फुसफुसाती रही , "प्रयत्नशील ही नहीं है . होती तो क्या अनखिली रह जाती ?" . सूर्य की स्वर्णरश्मियां छेड़ - छेड़ जाती ,"अरी बावरी ! अपनी पंखुड़ीयां फैला . क्यों अलसाई पडी है ?" . अब किससे कहे वह कि प्रयत्नशील होने पर भी उसे सफलता नहीं मिल पा रही . सब व्यंग्य बाण साधे हैं . साथी कोई नहीं .
                      नन्ही सी चिडिया पास की डाली पर बैठ चोंच साफ़ करने लगी . तभी उस कली पर उसकी नजर पडी .  "तुम क्यों नहीं खिली हो ? क्या तुम अस्वस्थ हो ? मैं तुम्हारी मदद करूँ ?"
                  उदास कली ने मुंह नीचे किया . वह कुछ न बोली . चिडिया ने चोच से उसे प्यार किया , बोली ,"तुम प्रयत्न तो करो खिलने का . मैं तुम्हारी मदद करती हूँ ."
                         चिडिया ने धीरे धीरे चोंच से उसे सहलाया . कली ने भी प्रयत्न किया . एक पंखुड़ी धीरे से खुली . अब तो कली का हौंसला बढ़ा. फिर एक और पंखुड़ी , बस एक और . और फिर क्या था ! पंखुड़ीयां खिलती गई और पूर्ण प्रसून में परिवर्तित हो गई . मकरंदयुक्त खिलखिलाता अति सुन्दर पुष्प ! 
             जिसने उसे देखा , देखता ही रह गया . मदमस्त बयार सुगंध चुराता हुआ बोला ,"इतनी मादक सुगंध तो प्रथम बार ग्रहण की है ." अन्य सभी पुष्प अनायास ही बोल उठे ," हम भाग्यशाली हैं , जो हमें तुम्हारा साथ मिला !" सूर्यरश्मियों ने उस फूल को आभामय करते हुए कहा ,"अनोखा रूप रंग पाया है तुमने . हमने तो तुम्हें व्यर्थ ही आलसी समझ लिया था . तुम तो पूरे कारीगर निकले !"
                     वह कली विकसित होकर अति सुन्दर पुष्प बन चुकी थी . हर कोई उसे सराह रहा था . पर वह मन ही मन कह रही थी , " हे देव !  मुझे अपने चरणों में स्थान देना ."
                   नन्हे से बालक अपनी माँ का आँचल पकडे हुए वहां से जा रहा था . इतने सुन्दर फूल को देखकर उसने तुरंत उसे तोड़ लिया . माँ ने डांट लगाई ,"क्यों तोडा यह फूल ? भगवान् नाराज़ होंगे ." बालक बड़े भोले भाव से बोला , "माँ ! इसे भगवान् पर ही चढ़ा देंगे . फिर तो नाराज़ नहीं होंगे न ?"
              यह सुनकर माँ मुस्कुराई और उसे मंदिर ले गई . उस पुष्प ने अपना गंतव्य पा लिया था .   

Tuesday, September 27, 2011

अपामार्ग


 
इस पौधे के कई नाम हैं ; अपामार्ग , चिरचटा , लटजीरा , ओले कांटे आदि .  यह हर जगह यूं ही उगा हुआ दिख जाता है .  इसकी हरी डंडी भी हो सकती है और लाल भी . यह वर्षा ऋतु में अधिक दिखाई देता है . नन्हे नन्हे फूलों की लब्बी सी डंडी पर ढेरों कांटे होते हैं .
                                     संस्कृत में एक श्लोक है , जिसमें कहा गया है कि सबसे श्रेष्ठ अपामार्ग की दातुन होती है ; उसके बाद बबूल और नीम की . इसकी दातुन रोज़ करने से पायरिया तक ठीक हो जाता है . पायरिया में इसकी जड़ की दातुन करनी चाहिए . दांत में cavity है तो इसके पत्तों का रस रुई में लगाकर cavity में रख दें . cavity भर जाती है . 
                        अपामार्ग के पत्तों का रस दो बूँद कान में डालने पर कान के दर्द से छुटकारा मिलता है . आँख के लिए इसकी जड़ को धोकर गुलाबजल में घिसकर अंजन कर सकते हैं . अगर मुंह में छाले हो गए हैं तो , इसकी पत्तियां मुंह में चबाएं और थूक दें .
                                     भयानक भूख लग रही हो और उसे कम करना हो तो , इसके 4-5 ग्राम चावल लेकर आधा किलो दूध में पकाएं . यह खीर सवेरे-सवेरे खानी है ; केवल तीन दिन तक .  इससे भूख कम लगेगी . सिर में दर्द है या migraine है , तो इसके 3 ग्राम बीज का पावडर सूंघने से ही वह ठीक हो जाएगा . अगर uterus में सूजन है तो इसके पत्तों का रस लगायें और इसके पत्तों के काढ़े से धोएं .
                                                            गर्भ धारण नहीं होता तो , periods के शुरू के चार दिनों तक इसकी दस ग्राम जड़ को 200 ग्राम दूध में पकाकर लें . यह खाली पेट लेना है ; केवल पहले, दूसरे और तीसरे महीने तक.  फिर अच्छा परिणाम सामने आ सकता है . और अगर delivery होने वाली है तो इसकी जड़ कमर में बाँध लें ; नाभि की तरफ . Delivery होते ही तुरंत इसे हटा दें .    इससे आसानी रहेगी .
               White discharge की शिकायत है तो , इसके पत्तीं का 1-2 ग्राम रस एक कप पानी में डालकर , कुछ दिन लें . Kidney की समस्या है तो इसके पचांग का काढ़ा लें . त्वचा में खाज - खुजली होने पर इसके पत्ते पानी में उबालकर स्नान करें .
                                                   इसकी छार या क्षार बहुत ही उपयोगी है . इसकी छाल, जड़ आदि को जलाकर पानी में ड़ाल दें . बाद में ऊपर का सब कुछ निथारकर फेंक दें . नीचे जो सफ़ेद सा पावडर बच जाता है ; उसे अपामार्ग की छार या क्षार बोलते हैं  . खांसी होने पर आधा ग्राम क्षार शहद के साथ चाटें . खांसी में इसके पंचांग की भस्म भी एक ग्राम शहद के साथ चाट सकते हैं . कैंसर में भी इसका क्षार बहुत उपयोगी है . अगर kidney में stone हैं , तो इसका आधा ग्राम क्षार पानी के साथ ले सकते हैं . 
          कई आयुर्वेदिक औषधियों में आपको अपामार्ग एक घटक के रूप में दिखाई देगा . यह वही  अपामार्ग है .
              

Saturday, September 24, 2011

स्वस्थ रहना है तो ...........

स्वस्थ रहना है तो ......
- मन में सभी के प्रति शुभ कामनाएँ रखो .
- सप्ताह में एक दिन आधे घंटा प्राणायाम अवश्य करो .
- सोने से दो घंटे पहले भोजन कर लो .
- खाना भूख से थोडा सा कम खाओ .
- नमक या नमकीन वस्तुएं कम से कम खाओ . हम चीनी के प्रति तो जागरूक हैं, पर नमक के प्रति नहीं .
- सवेरे उठकर थोडा सा गुनगुना पानी पीओ .
- दिन भर खूब पानी पीओ . बहुत ठंडा पानी पीना ठीक नहीं .
- थोड़ी दूरी पर जाना है तो पैदल चलो .
- प्रयत्न करो कि चेहरे पर मुस्कुराहट रहे .
- सवेरे 2-3 पत्ते तुलसी के पानी के साथ लो .
- आस्थावान रहो कि प्रत्येक कार्य में कुछ न कुछ शुभता अवश्य होती है . सकारात्मक रहो .
- कुछ अप्रिय लगने पर एकदम प्रतिक्रिया (reaction) न करो . थोडा शांत रहो .
- 6-7 घंटे की नींद अवश्य लो .
- भोर में उठने का प्रयास करो , भले ही अवकाश का दिन क्यों न हो .
- दिन में 20-25 मिनट की नींद लेना स्फूर्तिदायक होता है .
- रात्रि में 10.30 तक सो जाना अच्छा रहता है . 
- गला थोडा सा भी खराब हो तो सुबह और सोते समय, आधा चम्मच हल्दी गुनगुने पानी के साथ लो .
- बुखार की तनिक भी शुरुआत लगे तो गिलोय की डंडी कूटकर , पानी में उबालकर पी लो .
- अगर प्रभु में आस्था है तो हर समय उसके प्रति धन्यवाद करते रहो .

Monday, September 19, 2011

गिलोय ; अमृत बेल !(tinospora)

  गिलोय को अमृता भी कहा जाता है . यह स्वयं भी नहीं मरती है और उसे भी मरने से बचाती है , जो इसका प्रयोग करे . कहा जाता है की देव दानवों के युद्ध में अमृत कलश की बूँदें जहाँ जहाँ पडी , वहां वहां गिलोय उग गई . 


                                  यह सभी तरह के व्यक्ति बड़े आराम से ले सकते हैं . ये हर तरह के दोष का नाश करती है . कैंसर की बीमारी में 6 से 8 इंच की इसकी डंडी लें इसमें wheat grass का जूस और 5-7 पत्ते तुलसी के और 4-5 पत्ते नीम के डालकर सबको कूटकर काढ़ा बना लें . इसका सेवन खाली पेट करने से aplastic anaemia भी ठीक होता है . इसकी डंडी का ही प्रयोग करते हैं ; पत्तों का नहीं . उसका लिसलिसा पदार्थ ही दवाई होता है . डंडी को ऐसे  भी चूस सकते है . चाहे तो डंडी कूटकर, उसमें पानी मिलाकर छान लें . हर प्रकार से गिलोय लाभ पहुंचाएगी . 
                              इसे लेते रहने से रक्त संबंधी विकार नहीं होते . toxins खत्म हो जाते हैं , और बुखार तो बिलकुल नहीं आता . पुराने से पुराना बुखार खत्म हो जाता है . इससे पेट की बीमारी , दस्त ,पेचिश,  आंव , त्वचा की बीमारी , liver की बीमारी , tumor , diabetes , बढ़ा हुआ E S R , टी बी  , white discharge , हिचकी की बीमारी आदि ढेरों बीमारियाँ ठीक होती हैं .
                                   अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ  ;  पुनर्नवा  (साठी;  जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं)  की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें . kidney के लिए भी यह बहुत बढ़िया है .गिलोय के नित्य प्रयोग से शरीर में कान्ति रहती है और असमय ही झुर्रियां नहीं पड़ती . शरीर में गर्मी अधिक है तो इसे कूटकर रात को भिगो दें और सवेरे मसलकर शहद या मिश्री  मिलाकर पी लें . अगर platelets बहुत कम हो गए हैं , तो चिंता की बात नहीं , aloe vera और गिलोय मिलाकर सेवन करने से एकदम platelets बढ़ते हैं .
                इसका काढ़ा यूं भी स्वादिष्ट लगता है नहीं तो थोड़ी चीनी या शहद भी मिलाकर ले सकते हैं . इसकी डंडी गन्ने की तरह खडी करके बोई जाती है . इसकी लता अगर नीम के पेड़ पर फैली हो तो सोने में सुहागा है . अन्यथा इसे अपने गमले में उगाकर रस्सी पर चढ़ा दीजिए . देखिए कितनी अधिक फैलती है यह बेल . और जब थोड़ी मोटी हो जाए  तो पत्ते तोडकर डंडी का काढ़ा बनाइये या शरबत . दोनों ही लाभकारी हैं . यह त्रिदोशघ्न है अर्थात किसी भी प्रकृति के लोग इसे ले सकते हैं . गिलोय का लिसलिसा पदार्थ सूखा हुआ भी मिलता है . इसे गिलोय सत कहते हैं . इसका आरिष्ट भी मिलता है जिसे अमृतारिष्ट कहते हैं . अगर ताज़ी गिलोय न मिले तो इन्हें भी ले सकते हैं .


             

Sunday, September 18, 2011

हरसिंगार (हरि का श्रृंगार )!

हरसिंगार यानी हरि का श्रृंगार . इस वृक्ष के फूल सर्वथा भगवान के श्रृंगार के लिए उपयुक्त हैं . इसके और भी कई नाम हैं ; शेफालिका , पारिजात , शिवली , मल्लिका , स्वर्णमल्लिका और अंग्रेजी में इसे night jasmine कहते हैं . इसके पुष्प रात को खिलते हैं. पूरी रात सुगंधी बिखेरता हुआ यह वृक्ष भोर होते ही अपने सभी फूल पृथ्वी पर बिखेर देता है . अलौकिक सुगंध में सराबोर इसके पुष्प केवल मन को ही प्रसन्न नहीं करते ; तन को भी शक्ति देते हैं . इसके फूलों को छाया में सुखाकर पावडर कर लीजिये और फिर मिश्री मिलाकर खाली पेट लीजिए . शारीरिक शक्ति का विकास होगा .
                                              जोड़ों का दर्द होने पर इसके पंचांग का काढ़ा पीजिए . 5 gram पंचांग +400 ग्राम पानी लेकर धीमी आंच पर पकाएं . जब एक तिहाई रह जाए तो खाली पेट पीयें . खांसी में इसकी दो पत्तियां +एक फूल +तुलसी के पत्ते   ये सब लेकर इसको एक गिलास पानी में उबालें और चाय की तरह पी लें . इससे पेट का जमा हुआ मल भी निकल जाएगा . पेट में कीड़े हों तो पत्तों का रस लें .छोटा बच्चा है तो एक चम्मच और बड़ा व्यक्ति है तो दो चम्मच . सुबह खाली पेट थोडा पानी और चीनी मिलाकर लें . साल में कभी-कभी यह रस ले लें तो पेट में कीड़े होंगे ही नहीं .
                                                कितना भी पुराना बुखार या शरीर की टूटन है तो , इसकी तीन ग्राम छाल +दो पत्तियां +3-4 तुलसी की पत्तियां पानी में उबालकर सुबह शाम लें . Sciatica की बीमारी का तो इलाज ही यह पेड़ है . इसके दो तीन बड़े पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम खाली पेट पीयें . मेरी कई friends को इससे पूरा लाभ हुआ है . शरीर के किसी भी हिस्से में सूजन है तो इसकी पत्तियाँ पानी में उबालकर उससे झराई करें . सूजन पर इसके पत्तों को बांधें .
              चीन और ताईवान जैसे देशों में तो इसके फूल पत्तों की हर्बल चाय पीते हैं . इसके दो पत्ते और चार फूल लेकर पांच कप चाय बना सकते हैं . बिना दूध की यह चाय स्फूर्तिदायक होती है .
                         यह वृक्ष आसपास लगा हो खुशबू तो प्रदान करता ही है ; साथ ही नकारात्मक उर्जा को भी भगाता है . इस उपयोगी वृक्ष को अवश्य ही घर के आसपास लगाना चाहिए .

Saturday, September 17, 2011

गेंदा ; African marigold(dwarf)


फूलों का हार भगवान को समर्पित करना हो या किसी विशिष्ट जन को ; गेंदा ही शोभायमान करता है . पवित्रता और सुन्दरता से भरे इस फूल में दैवी गुण विद्यमान हैं . इसकी माला धारण करने मात्र से मन की प्रसन्नता बढ़ती है . दांत या मसूढ़ों में सूजन या दर्द है तो इसके फूलों की पत्तियां या इसकी हरी पत्तियां चबाकर , उँगलियों से मसूढ़े की मालिश करें . बाद में अच्छे से कुल्ला कर लें इसके अतिरिक्त इसके फूलों के रस में सेंधा नमक मिलकर मसूढ़ों की मालिश करने से भी आराम मिलता है . इसके पत्तों के रस में गरम पानी मिलाकर नमक डालकर गरारे करने से गले में भी लाभ होता है . 
                          आँख में दर्द लालिमा इत्यादि हो तो पत्तों की लुगदी रुई पर रखकर आँख बंद कर पट्टी बाँध लें .कान में पस या दर्द हो तो इसके पत्तों का रस पीसकर 2-2 बूँद कान में टपकाएं.  Piles की समस्या हो या anus बाहर आने की , इसके फूलों की 3 ग्राम पत्तियां पीसकर , मिश्री मिलाकर खाली पेट खाएं . Piles में इसकी हरी पत्तियों का 4-5 चम्मच रस सवेरे शाम खाली पेट लिया जा सकता है . 
                      कहीं भी घाव या सूजन हो तो इसकी पत्तियां और फूल उबालकर ,उस पानी से धोएं . मुहासे या झाइयाँ हों तो इसके फूल व पत्तियों के रस को चेहरे पर मलें . पेशाब खुलकर न आता हो या urine में infection हो तो इसकी 5-10 ग्राम पत्तियों का रस खाली पेट लें . खांसी या श्वास रोग में इसके 3-4 ग्राम सूखे फूल पत्तियों का काढ़ा पीयें . इसमें तुलसी और काली मिर्च दाल दें तो और भी अच्छा है . इस काढ़े को पीने से allergy भी ठीक हो जाती है . इसके पत्तों की लुगदी लगाने से  शरीर की किसी भी तरह की गाँठ ठीक होती है .
                     शरीर में कमजोरी है तो फूल की पंखुडियां उखाडकर सफ़ेद वाले भाग को सुखाकर 20 ग्राम में 50 ग्राम मिश्री मिलाएं . फिर इसका एक चम्मच सवेरे दूध के साथ लें . इसके पंखुड़ी के नीचे का काला बीज 3-5 ग्राम कामशक्ति बढाता है ; लेकिन 5 ग्राम से अधिक लेने पर कामशक्ति कम करता है . कितना अद्भुत संयोग है ! इसके सूखे फूल की पंखुड़ियों की चाय स्वादिष्ट भी होती है और लाभदायक भी . जापान ,चीन आदि देशों में तो इसी तरह की अलग -अलग जड़ी  बूंटीयों की चाय पीई जाती है . वे लोग कितने स्वस्थ रहते हैं !

                               इसे घर में लगाने से वास्तुदोष समाप्त होते हैं और ग्रहों की शान्ति होती है . क्यों न अपने घरों में इसे उगाकर हम इसका भरपूर लाभ उठाएँ .

मेरा हरसिंगार !


आश्विन के आते ही 
फूल उठता है हरसिंगार  
बगीचे के कोने में
चुपचाप करता तपस्या
एक दिन पा जाता ढेर से फूल 
मंद शीतलता में सराबोर 
अनूठी महक घुले .
स्वर्णिम शलाका पर ,
रजत पञ्च पत्र खिले .
प्रभात से पहले ही
सूरज के स्वागत में 
अंजुरी भर भर बिखेरता
भावों का भंडार
असीमित प्यार .
रात्रि के प्रथम प्रहर से ,
सुरभित करता रहता ,
पुलकित हवाएं .
छूती जो बार बार ,
अधखुली पलकों को ,
सोते से सपनों को .
योगी सा हरसिंगार ,
कितना वैभव लिए ,
मौन निरभिमानी सा
त्याग का प्रतिरूप 
लुटाता मूक संपदा .
असीम प्यार की 
सुरभित संसार की 
और बाँट सम्पूर्ण विभव 
फिर फिर पाता आह्लाद 
फिर बरसाता लाड दुलार ;
स्नेह अपार .
देवप्रिय हरसिंगार 
दैवी शक्ति का भण्डार 
करता हरि का श्रृंगार 
और मूक दर्शक सा ,
मेरे घर के बाहर ,
मंद मंद मुस्कुराता 
अद्वितीय हरसिंगार;
 उडेलता ढेरों पुष्प . 
एकत्र कर उनको  
मैं बांटती हूँ सबको 
और निरख मीठी मुस्कान ,
जन जन की ;
प्रेरणा पाती हूँ .
पुलकित हो जाती हूँ .
मेरे निराले ,अनुपम वृक्ष !
मैं तेरी ऋणी हूँ .
हरे कोमल तेरे पात ,
पीड़ा का अंत कर ,
शक्ति देते सबको.
तेरे अंग प्रत्यंग ने
नीरोग किया हमको 
तूने फैलाया असीम प्यार
घर  और  हृदय  के 
हर कोने को निखार ,
किया पावन ऊर्जा संचार . 
सौरभ और औषधि का
अपरिमित भण्डार;
अनन्त का अनुपम उपहार  
मेरा हारसिंगार !
  

शेफालिका की महक !

फिर वही भीनी महक शेफालिका की 
अंजुरी भर ओढ़ खुशबू मल्लिका की 
फिर स्मृति पर शब्द उभरे मौन यूं ही 
चित्र सपनों ने सजाये पलक झपकी 
           कह गए कुछ पल वो बीते बात अपनी 
           भर गई मन चूनरी पुष्पों से सजनी 
            मिल गए सब अनकहे वर कब कहाँ से 
            बह चला  इक मूक झोंका हिली तरणी
फिर वही शीतल पवन आनन्द लेकर
उड़ चला हर पुष्प का मकरंद ढ़ोकर
द्वार मेरे बिछ गए नव कुसुम  सारे 
मुदित था हर कली का उच्छ्वास हंसकर 
              साथ मेरे चल उडी मन की उड़ानें 
             रंग में सजने लगे सपने सुहाने 
             पारिजात प्रसून की वह गंध पावन
             सौम्यता से फिर लगी, मन को लुभाने
दूब ने मखमल बुनी मरकत को जड़कर
पंखुड़ी उस पर गिरी हौले सहमकर
अरुण ने झटपट ढकी किरणों की जाली
मल्लिका स्वर्णिम हुई आनन्द पाकर
              मूंदकर पलकें जो अंतर्मन को ताका
              शांति की कर में पकड उज्ज्वल पताका
             इस तरह कुछ  ध्यान में तल्लीन था वो
             दीप्तिमय आनन खिले ज्यों मुस्कुराता
साधना ने आज सुंदर स्वप्न पाए
आस में न जाने कितने दिन बिताए
मल्लिका की पुष्प वर्षा ने जगाए
लुप्त यादों के सुगन्धित, मधुर साए               

Friday, September 16, 2011

लाजवंती ( touch me not )

छुईमुई का पौधा एक विशेष पौधा है .इसके गुलाबी फूल बहुत सुन्दर लगते हैं और  पत्ते तो छूते ही मुरझा जाते हैं . इसे लाजवंती भी कहते हैं . अगर खांसी हो तो इसके जड़ के टुकड़ों के माला बना कर गले में पहन लो . हैरानी की बात है कि जड़ के टुकड़े त्वचा को छूते रहें ; बस इतने भर से गला ठीक हो जाता है . इसके अलावा इसकी जड़ घिसकर शहद में मिलाये . इसको चाटने से , या फिर वैसे ही इसकी जड़ चूसने से खांसी ठीक होती है . इसकी पत्तियां चबाने से भी गले में आराम आता है .
                               स्तन में गाँठ या कैंसर की सम्भावना हो तो , इसकी जड़ और अश्वगंधा की जड़ घिसकर लगाएँ . इसका मुख्य गुण संकोचन का है . इसलिए अगर कहीं भी मांस का ढीलापन है तो , इसकी जड़ का गाढ़ा सा काढा बनाकर वैसलीन में मिला लें और मालिश करें . anus बाहर आता है तो toilet के बाद मालिश करें . uterus बाहर  आता  है  तो  , पत्तियां पीसकर रुई से उस स्थान को धोएँ . hydrocele  की समस्या हो या सूजन हो तो पत्तोयों को उबालकर सेक करें या पत्तियां पीसकर लेप करें . हृदय या kidney बढ़ गए हैं, उन्हें shrink करना है , तो इस पौधे को पूरा सुखाकर , इसके पाँचों अंगों (पंचांग ) का 5 ग्राम 400 ग्राम पानी में उबालें . जब रह जाए एक चोथाई, तो सवेरे खाली पेट पी लें . 
                      यदि bleeding हो रही है piles की या periods की या फिर दस्तों की , तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ पीसकर उसे दही में मिलाकर प्रात:काल ले लें ,या इसके पांच ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ. Goitre  की या tonsil की परेशानी हो तो , इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लेप करें . Uterus में कोई विकार है तो , इसके एक ग्राम बीज सवेरे खाली पेट लें .अगर  diabetes है तो इसका 5 ग्राम पंचांग का पावडर सवेरे लें . पथरी किसी भी तरह की है तो , इसके 5 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ . पेशाब रुक - रुक कर आता है या कहीं पर भी सूजन या गाँठ है तो इसके 5 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ 
                  यह पौधा बहुत गुणवान है और बहुत विनम्र भी ; तभी तो इतना शर्माता है . आप भी इसे लजाते हुए  देख सकते है . बस अपने गमले में लगाइए और पत्तियों को छू भर दीजिये .  
                                  

Thursday, September 15, 2011

आइए हज़ूर ; खाइए खजूर !(dates)


खजूर केवल स्वादिष्ट ही नहीं होता ; कफ और बलगम को भी खत्म करता है . 10-15 खजूरों को, बीज निकालकर दूध में पकाएँ और पी लें . इससे कमजोरी भी मिटेगी. शुक्राणुक्षीणता की समस्या भी ठीक होगी .  Prostate या kidney की समस्या हो तो चार पांच छुहारे ( सूखी खजूर ) रात को भिगोकर सवेरे खाली पेट चबा चबाकर खाएं . खजूर रक्त शोधक होता है और रक्त को बढाता भी है .
                                   खजूर पेट साफ़ करने में सहायक होता है . बच्चे बिस्तर में पेशाब करते हों तो खजूर वाला दूध दें .पेशाब कम आता हो तो इसके पेड़ की पत्तियां कूटकर , मिश्री मिलाकर शर्बत की तरह पीयें . इस शर्बत को पीने से ताकत भी आती है . प्रमेह की बीमारी में इसके 3-4 पत्तों का शरबत 15-20 दिन पीयें . दमा के रोगी भी खजूर को दूध में पकाकर ले सकते हैं . अगर बवासीर की बीमारी हो तो खजूर बहुत कम खाने चाहिए . वैसे भी बहुत अधिक खजूर नहीं खाने चाहिएँ , क्योकि इसका पाचन मुश्किल होता है .

मेंहदी रंग लाएगी !(henna)

मेंहदी का नाम सुनते ही मुझे तो सावन की तीज का त्यौहार याद आता है . लेकिन आजकल मेंहदी बालों को रंगने के लिए ज्यादा प्रयोग में लाई जाती है. लोहे की काली कढ़ाई में मेंहदी+भृंगराज+आंवला +रतनजोत मिलाकर रात को भिगो दें . सवेरे इसमें थोडा Aloe Vera का गूदा अच्छे से मिला कर बालों में लगा कर छोड़ दें . कुछ घंटों बाद सिर धोएँ . बाल मज़बूत होंगे , अच्छा रंग चढ़ेगा और सबसे अच्छी बात यह है कि यह सिरदर्द और आँखों के लिए भी अच्छा नुस्खा है . अगर बिलकुल काले रंग के बाल करने हैं , तो नील के पत्ते भी पीसकर मिला दें .
         अगर अरंड के पत्तों के साथ मेंहदी की पत्तियों को पीसकर तेल में पकाकर, थोड़ा भूनकर घुटनों पर बाँधा जाए , तो दर्द में आराम मिलता है . अगर मुंह में छाले हो गये हों तो इसके पत्तों को पानी में उबालकर कुल्ले करें , या पत्तियों को मुंह में थोड़ी देर चबाएं और थूक दें . छाले ठीक हो जायेंगे . यदि E.S.R. बढ़ गया है, शरीर में pus cells बढ़ गए हैं  ; prostate बढ़ गया है या पथरी की शिकायत है  ; तो मेंहदी की  2-3 ग्राम छाल और 2-3 ग्राम पत्तियां लेकर उसे 200 ग्राम पानी में पकाएं . जब आधा रह जाए तो खाली पेट पी लें .
                              अगर मूर्छा आती हो , तो कुछ पत्तों का शरबत तुरंत पीयें ; आराम मिलेगा . गर्मी बहुत ज्यादा लगती हो या पीलिया हो गया हो तो 3-4 ग्राम पत्तियां लेकर पीस लें और 300-400 ग्राम पानी में रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे इसमें मिश्री मिलाकर खाली पेट पीयें . इससे hormones का असंतुलन भी ठीक होता है. मेहंदी को शरीर पर लेप करने मात्र से हारमोन संतुलित होने लगते हैं . इसका लेप लगाने से और पत्तों का शरबत पीने से पसीने का हथेलियों पर आना , और पसीने की बदबू आदि खत्म हो जाते  हैं .  
                                     हाथ में जलन होती हो , पसीना अधिक आता हो , बिवाई बहुत फटती हों तो इसके पत्ते पीस कर लेप करें . सिरदर्द रहता हो तो इसमें तुलसी के पत्ते मिलाकर माथे पर लेप करें . मेंहदी का तेल भी सिर के लिए बहुत अच्छा है . इसके लिए इसके 750 ग्राम पत्ते +250 ग्राम बीज +250 ग्राम इसकी छाल लेकर 4 किलो पानी में पकाएं  . यह धीमी आंच पर पकाना है . जब एक चौथाई रह जाए , तो उसमें एक किलो सरसों का तेल मिला लें . फिर धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए ; तो छानकर शीशी में भर लें . यह तेल बालों के लिए, आँखों के लिए और सिरदर्द के लिए बहुत ही बढिया है .
 
                                 त्वचा के सभी रोगों के लिए, चाहे वह eczema हो या psoriasis ; पैर की अँगुलियों के बीच में गलन हो , या फुंसियाँ हो ; सभी के लिए मेंहदी और नीम के पत्ते पीसकर लगाइए . आँखों में लाली हो या दर्द हो या फिर जलन हो, तो इसके पत्तों को पीसकर लुगदी  बनाएँ , आँखें बंद करके इस टिकिया को रखें और पट्टी बांध कर लेट जाएँ . चाहे तो रात को बांधकर सो जाएँ .
                     और जब मेंहदी लगाई जाए गोरे गोरे हाथों पर; तो हथेलियों की सुन्दरता में चार चाँद लग जाते हैं!



                       

Sunday, September 11, 2011

भांग (cannabis)


होली पर भांग के पकौड़े बनाने व् खाने का प्रचलन है . शिवजी को भी भांग घोटकर पीते हुए दिखाया जाता है .  वास्तव में भांग नशे की वस्तु नही, अपितु श्रेष्ठ औषधि है ।
          हिस्टीरिया के दौरे पड़ते हों तो भांग में थोडा हींग मिलाकर मटर के बराबर गोली सवेरे शाम लें । सिर दर्द ठीक करने के लिए भांग के पत्तों की लुगदी को सूंघें । इसके पत्तों के रस की दो -दो बूँद नाक में डालें ।इससे भी सिर दर्द ठीक हो जाता है ।
                                           अगर colitis हो या amoebisis हो  तो कच्ची बेल का चूर्ण +सौंफ +भांग का चूर्ण बराबर मात्रा में मिला लें . एक एक चम्मच सवेरे शाम लें ।  नींद न आती हो या दौरे पड़ते हों तो , ब्राह्मी , शंखपुष्पी ,सौंफ और भांग बराबर मात्रा में लेकर , एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . migraine होने पर ये चूर्ण भी लें तथा भांग पीसकर माथे पर लेप करें ।  इसका पावडर रात को सूंघने मात्र से ही अच्छी नींद आती है । 
                                                               नींद न आती हो तो 5 ग्राम भांग के पावडर में 1-2 ग्राम सर्पगन्धा का पावडर मिलाकर रात को सोते समय लें ।  सिरदर्द में इसका दो बूँद रस नाक में डालें या पावडर सूंघें . हिस्टीरिया में भी इसका पावडर लाभ करता है . शक्ति प्राप्त करने   के लिए इसके बीज का पावडर एक -एक चम्मच सवेरे लें .    

                  sinusitis हो तो इसके पत्तों की तीन तीन बूँद नाक में टपका लें . कान में दर्द हो तो दो बूँद कान में भी डाल सकते हैं .कमजोरी हो तो इसके बीज पीसकर पानी के साथ या दूध के साथ लें . जोड़ों का दर्द हो तो इसके बीजों को सरसों के तेल में पकाकर उस तेल से मालिश करें .इसके अतिरिक्त भांग  के बीजों का पावडर एक चम्मच पानी के साथ लें . अगर कोई कीड़ा काट गया है , या फिर घाव हो गया है ; तो इसके पत्तों के काढ़े में सेंधा नमक मिलाकर उस जगह को अच्छे धोएं और उस पर डालते रहें . तो भांग  नशे की वस्तु नहीं बल्कि दवाई है 
                    यह वायुमंडल को भी शुद्ध करती है . विषैली जड़ी बूटियों को भी खेत में पैदा नहीं होने देती . इसे खेत में लगाने से गाजर घास जैसी खरपतवार भी स्वयं समाप्त हो जाती है . यह  शरीर के भी विषैले तत्व खत्म करती है . पहाडी क्षेत्रों में तो इसके बीजों को शक्ति प्राप्त करने के लिए नाश्ते में भी लिया जाता है ।




. अंजीर ( fig) रोगनिवारक मेवा !

अंजीर का फल जितना खाने में स्वादिष्ट लगता है ; उतना ही गुणों से भी भरपूर है. अगर दुर्बलता है तो दो अंजीर रात को थोड़े पानी में भिगो दें . सवेरे पहले पानी पी लें . फिर अंजीर को चबा चबा कर खाएं . हृदय रोगी या निम्न रक्तचाप वाले भी यही प्रयोग कर सकते हैं . अगर सूखा अंजीर खाया जाए तो इसकी तासीर गर्म होती है , लेकिन कुछ देर भिगो देने पर तासीर ठंडी हो जाती है .लीवर ठीक नहीं है , हीमोग्लोबिन कम है या पाचन शक्ति कम हो गयी है ; तब भी यह भरपूर फायदा करता है . अगर constipation है तो इसे लेने से पेट साफ़ हो जाता है .

                   खांसी होने पर अंजीर , मुलेठी और तुलसी मिलाकर काढ़ा लिया जा सकता है .श्वास रोग हो तब भी इसे खा सकते हैं यह नुक्सान नहीं करती . periods irregular हों तो दशमूलारिष्ट के साथ साथ अंजीर भी लेते रहें . अगर पीलिया हो गया है तो सर्वक्ल्प क्वाथ में अंजीर डालकर काढ़ा बनाएं . पीलिया बहुत जल्द ठीक होगा ..इसके रोज़ लेने से फोड़े फुंसी भी नही होते . चेहरे की कांति बढ़ती है . उर्जा आती है . आप आत्मविश्वास से परिपूर्ण हो जाते हैं . है न मज़े की बात मेवा की मेवा और लाभ अनगिनत  

Saturday, September 10, 2011

धनिया (coriander)


धनिया पत्ते के रूप में भी लिया जाता है और इसके दाने भी खाए जाते हैं . यह खुशबूदार भी है और औषधि का कार्य भी करता है . अगर bleeding ज्यादा हो रही हो धनिए के पत्तों का चार पांच चम्मच जूस थोडा कपूर मिलाकर ले लें . अगर गले में दर्द है , तो धनिया और काली मिर्च चूस लें . अगर सिरदर्द या acidity से परेशानी है तो एक चम्मच धनिया पावडर +एक चम्मच आंवले का पावडर +शहद रात को एक मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे मसलकर पी लें . प्रतिदिन ऐसा करने से कुछ समय बाद दोनों परेशानी दूर हो जाती हैं . 
                  यदि पसीने से दुर्गन्ध आती हो तो तीन ग्राम धनिया +पांच ग्राम आंवला +कालीमिर्च मिलाकर पानी के साथ ले लें . बदबू आनी बंद हो जायेगी . acidity . खट्टी डकार ,ulcer या gastric trouble हो तो धनिया पावडर एक चम्मच खाली पेट ले लें . जोड़ों का दर्द होने पर मेथी , अजवायन के साथ भुने हुए धनिए का पावडर मिला दें और एक चम्मच गुनगुने पानी के साथ लें . छोटे बच्चे को खांसी हो तो धनिया पावडर भूनकर शहद के साथ चटा दो. 
                         मुख से दुर्गन्ध आती हो या गले का infection हो तो आठ दस धनिए के दाने चूसते रहो . इससे पेट भी ठीक रहेगा . आँख में जलन है तो ,ताज़े आंवले के या सूखे आंवले के चार पांच टुकड़े और कुछ दाने धनिए के एक कप पानी में डालकर रात को भिगो दें . सवेरे इस पानी से आँख धोएं . 
               pregnency  में उल्टी आती हो तो धनिए का पावडर और मिश्री मिलाकर एक चम्मच पानी या दूध के साथ लें . चेहरे पर झाइयाँ हों तो इसकी पत्तियां पीसकर चेहरे पर मलें . पेशाब में जलन हो या रुक रुक कर आ रहा हो तो , थोडा आंवला और धनिए का पावडर रात को भिगोकर सवेरे ले लें . छोटे बच्चे को पेट दर्द या अफारा हो तो एक ग्राम धनिया पानी में भिगो कर थोड़ी देर में पिला दें . बच्चे को गर्मी से बुखार हो या भूख न लगती हो तो एक ग्राम धनिए को पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पिला दें . काढ़ा मतलब कि आधा पानी कढ जाए या उड़ जाए तो बचा हुआ solution छानकर दे दें .  इसे बड़े थोड़ी अधिक मात्रा में ले सकते हैं. 
       रसोई में रखा धनिया मसाला ही नहीं ; दवाई भी है .



Friday, September 9, 2011

रत्ती या गुंजा (abrus precatorius)






इसकी जड़ चूसो तो गला ठीक रहता है और आवाज़ सुरीली होती है ।  पत्तियां चबाने से मुख में दुर्गन्ध नहीं रहती . मुंह के छाले भी ठीक होते हैं . ये वही रत्ती है जो पहले माप तोल में काम में लाई जाती थी . इसे गुंजा भी कहते हैं और इसकी माला भी पहनते हैं. माला पहनने का भी औषधीय लाभ होता है. इसकी  लता को आराम से कहीं पर भी उगा सकते हैं.             









                 कफ या बलगम हो तो इसकी पत्तियों +इसकी जड़ और तुलसी मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें । आँतों में अल्सर हों तो इसकी जड़ +2-3 ग्राम मुनक्का + 5 ग्राम गुलाब की पत्तियां +सौंफ मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें । यह विरेचक होता है और मल को आसानी से बाहर कर देता है । यह लीवर के लिए भी अच्छा है ।




जोंक (leech) ; प्राकृतिक शल्य चिकित्सक



क्या आप जानते हैं की इस चित्र में क्या हो रहा है ?यह कहा जाए कि शल्य चिकित्सा हो रही है; तो शायद आप हैरान हो जाएँ . अगर कहा जाए कि जोंक हमारे प्राकृतिक शल्य चिकित्सक हैं ; तो गलत न होगा . 

                            माँ बताती थी कि पहले ज़माने में अगर किसी की त्वचा खराब हो गई होती ,या सूजन होती या फिर त्वचा गल जाती ; तो वे लोग जोंक लगवाते थे और ठीक भी हो जाते थे . माँ के दादाजी भी अक्सर जोंक वाले को बुला कर जोंक लगवाते थे ; क्योंकि उनके हाथ की अँगुलियों में खूब खुजली होती थी . उसके बाद उंगलियाँ इतनी अधिक सूज जाती थी कि वे स्वयं अपने हाथ से रोटी भी नहीं खा पाते थे. माँ कहती थी कि जोंक लगवाने के बाद उनको बहुत आराम आता था . अंगुलियाँ बिलकुल ठीक हो जाती थी . मैं यह सुनकर विश्वास सा नही कर पाती थी और यह भी सोचती थी की जोंक तो खून में एक hirudin नाम का पदार्थ डाल देती है . जिससे कि खून बहता रहता है. तो कितना खून तो व्यर्थ ही बह जाया करता होगा . क्या फायदा होता होगा इस सब का ?
                 लेकिन मैंने एक पत्रिका में जब इस चिकित्सा के बारे में पढ़ा , तो मैं हैरान हो गई . आयुर्वेद के आविष्कर्ता भगवान धन्वन्तरी के चार हाथ दिखाए जाते हैं . इनमे से उनके बांये हाथ में उन्हें जोंक पकडे हुए दिखाया जाता है . अर्थात जोंक भगवान धन्वन्तरी का शल्य चिकित्सक है . सुश्रुत संहिता में कई बीमारियों में जोंक द्वारा उपचार का उल्लेख है . उदहारण के तौर पर ठीक न होने वाले ulcer, शुगर के मरीजों के घाव , vericose ulcer , गठिया , psoriasis या साँप या किसी अन्य ज़हरीले कीड़े के काटने पर जोंक चिकित्सा का बहुत इस्तेमाल हुआ करता था. बनारस हिन्दू यूनीवर्सिटी में internal medicine department में जोंक चिकित्सा 2005 में प्रारम्भ की गई . वाराणसी या बनारस में एक जोंक 25 - 35 रूपये में मिलती है . जोंक शरीर का अशुद्ध रक्त चूसकर , शरीर में hirudin नाम का peptide डाल देती है . यह hirudin खून में थक्के जमने से रोकता है और खून के पहले से बने थक्कों को घोल देता है . इसके कारण खून शुद्ध हो जाता है ; खून का संचार तेज़ी से हो पता है . इससे शरीर में अधिक ऑक्सीजन वाला खून बहता है , जिससे कि शरीर के स्वस्थ होने की क्षमता बढ़ जाती है . यह बात बंगलौर के अस्पताल के एक बड़े डाक्टर ने बताई .
                              कर्नाटक के कबड्डी के खिलाड़ी जी. रामकृष्णन 72 वर्ष के हैं . उनके पैर के अंगूठे पर उबलता हुआ पानी गिर गया . अंगूठा इतनी बुरी तरह जल गया कि डाक्टर ने उसे काटने की सलाह दी . अंगूठे के नीचे एक न ठीक होने वाला ulcer बन गया . इससे पूरा पैर नीचे से सूज गया और शरीर का तापमान भी बढ़ गया . उनसे चला तक नहीं जाता था . वहाँ के आयुर्वेदिक अस्पताल में जोंक चिकित्सा की गई . इससे उनका दर्द और सूजन बहुत कम हो गई . और वे चल भी लेते हैं . कुछ महीने में ही वे पूरी तरह स्वस्थ हो जाएँगे . 
                             ;
                आयुर्वेद में जोंक शल्य चिकित्सा का द्योतक है . द्योतक क्या है ; मेरे विचार से जोंक पूर्ण रूप से शल्य चिकित्सक है . केवल शल्य चिकित्सक ही नहीं anaesthetist  भी है . यह रक्त चूसती है तो दर्द नहीं होता . क्या आप भी मुझसे सहमत हैं ?   

Thursday, September 8, 2011

पालक (spinach)

          पालक लगभग बारहों महीने मिलता है . इससे हीमोग्लोबिन बढ़ता है . दस  पन्द्रह पालक के पत्तों का रस और एक सेब का रस मिलाकर लेने से रक्त की कमी नही रहती . पालक के सूप से ताकत आती है . अगर जड़ समेत पालक को कूट कर बीस पच्चीस मीo लीo रस खाली पेट सुबह ले लो तो पथरी चाहे कहीं की भी क्यों न हो ; खत्म हो जाती है.               
              आँतों में सूजन, अल्सर हो तो पालक नहीं लेना चाहिए . गले में दर्द हो तो पालक थोडा सा लें , उसे उबालें और उसमें नमक डालकर गरारे करें . चेहरे की कान्तिके लिए इसकी पत्तियों का रस चेहरे पर मलें . पेशाब खुलकर न आ रहा हो तो भी यह लाभदायक है .  पालक के थोड़े से रस में पानी और चीनी मिलाकर शरबत बनायें . गर्मी भी भागेगी और iron भी मिलेगा . ऐसा कहा जाता है कि pregnancy में इसे नहीं खाना चाहिए . शायद इससे नवजात शिशु के वर्ण पर कुछ असर होता हो

Wednesday, September 7, 2011

मेथी (fenugreek)


 मेथी हमारी रसोई का महत्वपूर्ण मसाला है . और मेथी के पत्तों के परांठे किसको पसंद नहीं हैं . नाम सुनते ही इसकी खुशबू का आभास होने लगता है . इसके औषधीय गुण सुनकर तो आप हैरान ही हो जाएँगे. कफ या बलगम की शिकायत है तो मेथी की रोटी में अदरक भी मिला लें और खाएं . एडी घुटनों या पिंडलियों का दर्द है तो मेथी के पत्तों को steam करके बाँध दें और ऊपर कपडा लपेट दें . सवेरे तक दर्द में कितना आराम होगा ; यह देखकर आप हैरान हो जाएँगे . सूजन काफी हद तक खत्म हो जायेगी . चेहरे की चमक बढानी है तो पत्ते पीसकर चेहरे पर लगाओ .
                                     इसके दानों का सेवन वायु को हरता है . शुगर की बीमारी में या arthritis में एक डेढ़ चम्मच मेथी रात को भिगोकर सवेरे चबा चबाकर खाएं और बाद में वह पानी भी पी लें . यदि सिरदर्द या migraine का दर्द हो तब भी यही प्रयोग लाभदायक है . पेट में संक्रमण हो या delivery के बाद मेथी और अजवायन को मिलाकर बनाया हुआ काढ़ा लिया जा सकता है .sciatica या arthritis में हल्दी , मेथी और सौंठ को बराबर मात्रा में मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम ले लें .
 
                                        सर्दी ,जुकाम होने पर मेथी दानों को अंकुरित करके भोजन के साथ लें . दूध आराम से पचता न हो तो मेथी दाने को भूनकर रख दें . इसे पीस लें . जब भी दूध पीना हो तब एक चम्मच मिला लें . इससे गैस भी नहीं बनेगी और दूध भी अच्छी तरह पचेगा . कद्दू की सब्जी में भी तो इसे इसीलिए डालते हैं . खुशबू की खुशबू और फायदा अलग से . यानि आम के आम गुठलियों के दाम ! 


Sunday, September 4, 2011

उत्साह

मन के गहरे नीले विस्तार में 
हलके से पंख फैलाए
कोमल भावनाओं के बादल 
इधर उधर तिरते हैं 
कभी कभी मौन तोड़ 
हौले से नन्ही आकांक्षा को 
भीगी फुहार से भिगोते है 
प्यासी आत्मा को
 संतृप्त करते हैं 
और कभी , काले मंडराते 
घोर घनघोर भीषण विकराल     
श्यामल आक्रोशपूर्ण मेघ 
करते हैं गर्जन 
देख संसार का हाहाकार 
घिर घिर जाते है
मन में तूफान उठा 
उफ़न उफ़न आते है 
विद्युत् की ज्वाला भर        
मन के गहरेपन से 
आक्रामक रूप लिए 
पूरा जग जल थल कर 
उद्वेलित मन को 
झकझोर जगाते हैं 
सूखे सब ठूंठो को 
आंधी तूफ़ान में 
बहा ले जाते हैं 
थमता है जब गर्जन 
शांत तब होता मन 
निथरे आकाश की 
उज्ज्वल परछाई में
आशा के नव पल्लव 
मंद मुस्कुराते हैं 
उल्लसित हो पल पल
लहक लहलहाते हैं  
चेतना लौटाते है
उत्साह जगाते हैं     


  

सावन का जादू !


सावन का तो मौसम ही ऐसा है जो चारों तरफ हरियाली ला देता है  बच्चे, बड़े सभी इस दौरान खुद को तरोताजा महसूस करने लगते हैं.  लोक गीतों में सावन के महीने में जो गीत गाए जाते हैं उनमें सबसे ज्यादा विरह गीत हैं.  हमारे यहां परंपरा है कि पहले  सावन में  तीज पर पत्नी को मायके भेज दिया जाता है.  ऐसे में स्वभाविक है वह अपनी सहेलियों के साथ आनन्द भी करती है और अपने पति को याद करते हुए विरह गीत भी गाती है.  शास्त्रीय संगीत में तो सावन का खास महत्व है.  कहते हैं जब राग मल्हार गाया जाता था तो सूखे में भी बारिश होने लगती थी.  पूजा पाठ के लिहाज से भी इस महीने को बड़ा पवित्र माना जाता है  बारिश में धमा चौकड़ी मचाने में खूब मजा आता है.  सावन के महीने में तो यहां कई बार दिन रात बारिश होती रहती है.  हम खुश होते थे, जब बारिश की वजह से हमें स्कूल नहीं जाना पड़ता था. माँ  गरमागरम पकौड़े बनातीं और हम सब दिन भर बारिश में मौज मस्ती करते रहते. सावन में मज़े करने का इससे बेहतर तरीका और कौन सा हो सकता है?बारिश  के मौसम में मीठे पूड़े बनाने का रिवाज है. बारिश के मौसम में खानपान, पहनावा, दिनचर्या सब कुछ बदल जाता है.
अम्मा मेरे बाबा को भेजो री
नन्हीं नन्हीं बूंदिया रे
सावन का मेरा झूलना 
'उत्तर भारत में तो सावन के मायने ही कुछ और हैं. हर लड़की को सावन का इंतजार रहता है.  सावन में गाई जाने वाली कजरी तन, मन को तृप्त कर जाती है. 

कच्चे नीम पर निम्बौरी                                                                                                  
सावन जल्दी आना रे       या फिर ,
अरी बहना !
झूलों की आई है बहार 
चलो झूला झूलें 
बाग़ में .
 सावन न होता, तो बारिश कैसे होती? गर्मी से राहत कैसे मिलती? रिमझिम फुहारों के बीच झमाझम फुहारों के बीच में अपनों के साथ भुट्टा खाने का आनंद कैसे उठाते? ऐसे कई कारण है, जिनकी वजह से सावन है मेरा मनपसंद  मौसम.हर नुक्कड़ पर कच्चे कोयलों के लाल सुर्ख अंगारों पर लोहे की जाली के ऊपर उलट पलट कर भुनते हुए भुट्टे . आहा ! यह दृश्य, और भुनते भुट्टे की सुगंध ; मन ही नहीं आत्मा तक को परम आनन्द में आप्लावित कर देती है . जब उस गर्मागर्म भुट्टे पर मसाला और नीम्बू लगवाकर भीगी बरसात में खाने का मज़ा लिया जाता है ; तो कहना ही क्या ! मैं सच कहती हूँ सब पीज़ा , बर्गर उसके सामने व्यर्थ प्रतीत होते हैं .
जब प्रकृति ने हरी साड़ी पहन ली हो तो किसका मन नहीं मचल उठेगा।सभी बरसात में प्रसन्न होते हैं  और हरियाली देखने के लिए ही  सावन की आस होती है। आजकल वैसे भी हरियाली खत्म होती जा रही है। सावन में हरी-हरी मेंहदी इस हरियाली में मिल जाती है। पेड़ों पर झूले और पेंग भरती महिलाएं तो अब कम दिखती हैं, लेकिन सावन के आते ही उनकी छवि जरूर उभर आती है .मन में. इस मौसम की अगुवाई करते हैं फूल. रंग-बिरंगी दुनिया सज जाती है फूलों की। शुरू से ही मैं फूलों की दीवानी हूं और इस महकते मौसम में खिलते फूलों को देखने के लिए मैं सावन की राह देखती हूं.  तेज गर्मी के बाद सुहावने मौसम में पकौड़ों का स्वाद दोगुना हो जाता है.  सकारात्मक ऊर्जा आती हैं इस मनभावन सावन में .

घनघोर घटाओं के बीच जब बिजली चमकती है और बारिश की फुहार तन-मन भिगो देती है, तब लगता है कि सावन आया.  इसी मस्ती के मौसम के लिए मुझे पूरे साल सावन का इंतजार रहता है.  रिमझिम बूंदों का महीना है सावन। आसमान सें बरसता पानी बहुत रोमांचित करता है . बचपन के वे दिन तो आज भी नहीं भूलते जब आँगन में खड़े होकर सिर पर बाउजी का काला छाता तान लेते और टप टप गिरती बूंदों का आनन्द लेते .मैं तो अपने बस्ते में एक बड़ा सा पारदर्शी मोमजामा ज़रूर रखती थी . कभी स्कूल से वापिस आते समय बारिश हुई, तो चटपट मोमजामा खोला और ओढ़ लिया. फिर ऊपर गिरती बूंदे टपाटप गिरती हुई दिखती तो थी पर भिगो नहीं पाती थी . यह सब जादू जैसा लगता था . अब तो वे सभी बातें सपना होकर रह गई है . पर सावन का जादू तो चिरकाल तक हरीतिमा से परिपूर्ण रहेगा ; याने evergreen !