Monday, October 31, 2011

खीरा (cucumber)

खीरे को संस्कृत में सुशीतल भी कहा जाता है . यह दिमाग को ठंडक देता है . यदि तनाव हो तो खीरा कटकर आँखों पर रख लें और इसे पीसकर माथे पर लगा लें . पूरे सिर में भी लगा लें तो और भी लाभ करता है . बुखार हो तो इसे काटकर तलवों पर रगड़ें और माथे पर ठंडी पट्टी रखें . तलवों पर घीया रगड़ें तो बुखार और भी जल्दी उतरता है . 
                 खीरा मधुर होता है . यह पित्तशामक होता है परन्तु कफ को बढाता है . दमा के मरीजों को इसका सेवन बहुत कम करना चाहिए . यह kidney के रोगों में लाभ करता है . इसके लिए सुबह खाली पेट खीरा लें . Arthritis के मरीजों को कच्चा खीरा नहीं खाना चाहिए बल्कि इसे पकाकर लेना चाहिए . जल जाने पर खीरे के टुकड़े को जले हुए पर रख दें . ताजे खीरे को चेहरे पर घिसे और 15 मिनट बाद धो दें तो चेहरा भी निखरता है .
                                                           इसके बीज गर्मीशामक होते हैं . ठंडाई, खीरे के बीज +ककडी के बीज +खरबूजे के बीज +तरबूज  के बीज +पेठे के बीज +सौंफ +मिश्री  इन सबको मिलाकर बनाई जाती है और बहुत शीतल होती है . पेशाब रुक रुककर आता हो तो इसके बीज पीसकर 1-2 ग्राम पानी के साथ लें .नींद कम आती हो तो खीरे के बीज का पावडर शाम को लें और माथे पर खीरा रगड़ें . मानसिक तनाव , मानसिक रोग या अवसाद की बीमारी हो तो इसके बीजों के साथ ब्राह्मी , शंखपुष्पी, बादाम और काली मिर्च का शरबत बनाकर पीयें .
                                                                  इसके बीज पौष्टिक होते हैं पर उष्ण नहीं होते . शरीर में बदबू आती हो तो एक भाग खीरे के बीजों के साथ दो भाग आंवला मिलाएं और सवेरे शाम लें . इससे शरीर में बदबू खुशबू में परिणत हो जाएगी. इससे प्रमेह और प्रदर की बीमारी भी ठीक होगी और शरीर में जलन या दाह की अनुभूति होती हो तो वह खत्म हो जाएगी.
                   खीरा और दही साथ साथ नहीं खाने चाहियें ; इससे शरीर में विकृति आ सकती है . रात को खीरा न खाएं . इससे कफ बढेगा , वायु बढ़ेगी और खांसी बढ़ेगी . यह बात प्रसिद्ध है कि सुबह का  खीरा, हीरा ; दोपहर का खीरा, खीरा और रात को खीरा, पीरा (पीड़ा) बन जाता है .

Sunday, October 30, 2011

ककडी(snake gourd)



 ककडी को संस्कृत भाषा में कर्कटी कहा जाता है . गर्मियों में प्राप्त होने वाली ककडी गर्मी को शांत करती है और गर्मी की बीमारियों में भी लाभ पहुंचाती है .पथरी की बीमारी हो या पेशाब की या फिर पेट में कोई बीमारी हो , अपच की समस्या हो ; यह सभी को दूर करती है . अधिक पसीने आते हैं तो इसे खाना चाहिए .इसे मधुर रसयुक्त माना गया है . यह पित्त और acidity को भी शांत करती है . 
              इसकी सब्जी बनाकर खा सकते हैं लेकिन न तो अधिक पकाना चाहिए और न ही आखिक मसाले डालने चाहिएँ. अगर कच्ची ही खा रहे हैं , तो  कटी हुई देर तक न छोड़ें तुरंत ही खा लें . ककडी शाम को या रात को नहीं खानी चाहिए  . वास्तव में टमाटर , खीरा आदि भी रात को खाए जाएँ  तो कफ बनाते हैं . नाश्ते में या दोपहर के भोजन में ही इन्हें लेना चाहिए . भोजन से कुछ पहले सलाद और फलों का सेवन ठीक रहता है . इससे इनके सभी पोषक तत्व शरीर को मिल जाते हैं . दूसरा लाभ यह है कि उसके बाद भोजन भी बहुत अधिक नहीं खाया जा सकेगा . इससे मोटापा नहीं बढेगा . 
                             High B P को ठीक करना है तो सवेरे खाली पेट 1-2 ककडी बिना नमक के चबा-चबाकर खाएं . एसिडिटी हो या किडनी की समस्या ; ककडी दोनों को ही ठीक करती है . पेट में अफारा आता हो या फिर प्यास बार बार लगती हो ;ककडी का सेवन करो . अगर कहीं पर जल जाए तो तुरंत ककडी काटकर लगा लो .कील मुंहासे हों तो माजूफल या जायफल ककडी के साथ घिसकर लगाओ . झाइयाँ हैं तो केवल ककडी घिसकर लगा लो . 
                   इसके बीज बहुत ठंडे माने जाते हैं . ठंडाई में इसके बीज भी डाले जाते हैं . इसके बीज बहुत पौष्टिक होते हैं . इसके बीजों का पावडर मिश्री मिलाकर लेने से कमजोरी दूर होती है . आँतों में सूजन हो या संक्रमण हो तो 1 gram बीज और 250 ml मुलेटी 400 ग्राम पानी में पकाकर काढ़ा बनायें और सवेरे शाम लें . Urine में infection हो तब भी यही करें .
                       Pregnancy के दौरान पेट में दर्द या अफारा हो तो ककडी की जड़ का काढ़ा नमक मिलाकर पीयें . अगर pregnancy के छ: मास बाद इसकी 3 ग्राम जड़ को एक कप दूध में(1 कप दूध +1 कप पानी ) अच्छे से पकाकर(जब केवल 1 कप रह जाए ) लिया जाए तो बच्चा भी तंदुरुस्त होगा और गर्भजन्य पीड़ा भी कम होगी .
                          ककडी, खीरा, मूली टमाटर आदि खाने के बाद पानी न पीयें ; चाहें तो पहले थोडा सा पी सकते हैं . इन सबके साथ दूध या दही लेना ठीक नहीं . कुछ लोग इनका रायता बनाते हैं . शायद यह ठीक नहीं रहता .
                           

Friday, October 28, 2011

अग्निशिखा


हनुमानजी लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लाए थे . वह जगमगा रही थी . शायद वे अग्निशिखा के पौधे ही होंगे . ये पर्वतों पर उगते हैं . इनके फूल ऐसे आकार और रंग के होते हैं जैसे कि अग्नि की लपटें उठ रही हों . इसे विषल्या भी कहते हैं क्योंकि यह विष का नाश करती है . इसे कलियारी और लांगुली नाम से भी जानते हैं . इस पौधे के नीचे कन्द होते हैं जो वास्तव में औषधीय गुणों से परिपूर्ण हैं .
                                  कहीं काँटा चुभ गया है या कांच चुभ गया है , जो कि निकल नहीं रहा ; तो इसका कंद घिसकर उस पर लेप कर दें . वह कुछ दिनों में अपने आप बाहर आ जाएगा . इसके कन्द का लेप local anaesthesia का काम भी काम बखूबी करता है .  अगर दाँयी जाड में दर्द है , तो बाँये हाथ के अंगूठे की जड़ में इसका कन्द घिसकर लेप करें तो दर्द में आराम मिलता है . Delivery के समय नाभि पर इसके कन्द का लेप करें तो बहुत आसानी से delivery हो जाती है .  सांप के काटने पर, कटे हुए स्थान पर कन्द के चूर्ण को बुरक दें . किसी भी घाव पर इसका चूर्ण बुरकने से वह बहुत जल्दी भरता है . 
                       है न कमाल का पौधा ! वर्षा ऋतु के आसपास इसके फूल आते हैं . इसे घर के गमले में भी लगा सकते हैं .
                                             

Thursday, October 27, 2011

गेहूँ(wheat)

 भोजन भी औषधि बन सकता है अगर ठीक प्रकार लिया जाए .गेहूँ अनाज ही नहीं है दवा भी है .  इसे गोधूम , क्षीरी , बहुदुग्धा  आदि नामों से भी जाना जाता है . इसके कच्चे दानों में बहुत दूध होता है . यह  पौष्टिक होता है , शीतल होता है. घी तो नया अच्छा माना जाता  है , लेकिन गेहूँ 3-4 महीने बाद प्रयोग करने से सुपाच्य बन पाता है . यह वीर्यवर्धक  भी माना गया है. 
                                                        पहले के लोग पागल जानवर ने काटा है या नहीं; यह गेहूँ के आटे से टैस्ट करते थे . अगर कोई जानवर काट ले , तो आटे की लुगदी उस पर लगाकर रखें .बीस मिनट बाद उतार कर कुत्ते को खिलाये . अगर कुत्ता  खा लेता है तो जानवर पागल नहीं है . लेकिन यह आजकल करना ठीक नहीं रहेगा . Rabies का  इंजेक्शन जल्दी लगवाना चाहिए .
                            सूजन है तो मोटी रोटी एक तरफ सेक कर कच्ची तरफ सरसों का तेल, हल्दी और  नमक लगायें और हल्की गर्म रोटी सूजन पर बांधें . सवेरे तक सूजन काफी कम हो जाती है  . फुंसी पकाने के लिए फुंसी पर छोटी सी रोटी बीच में छेद करके इसी प्रकार रखें . सवेरे तक पस निकल जाएगी. 
                    मोच हो जाए तो दो चम्मच आटा भूनकर , साथ में आधा चम्मच हल्दी घी में भूनकर चबा चबाकर खाएं .जलने पर आटे में हल्दी मिलाकर लुगदी बनाकर लगाएँ.  खाज खुजली होने पर या eczema होने पर गेहूँ का तेल लगाएँ . तेल पाताल यंत्र से निकाला जा सकता है . एक मिटटी की छोटी सी मटकी के नीचे की तरफ छेद कर दें , फिर मटकी में गेहूँ भरकर मटकी के नीचे एक बर्तन रख  दें .मटकी को ऊपर से ढक दें . मिटटी में छोटा सा गड्ढा करके उस में ये पाताल यंत्र रख दें . ऊपर उपले लगा दें . जब उपले पूरे जल जाएँ तो आप नीचे वाले बर्तन में गेहूं का तेल इकट्ठा हुआ पाएँगे.
                                             अगर खांसी है तो 10-15 gram भुने  हुए  दलिए को 400 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा बनायें इसमें सेंधा नमक मिलाकर पीयें या फिर 5 ग्राम भुना हुआ दलिया गुलाब की पंखुडियां और तुलसी मिलाकर चाय बनाकर पीयें . चीनी लोग कुछ इसी तरह चावल का बनाते हैं उसे कोंजी कहते हैं . यह मैंने चाइना  टाऊन के रेस्टोरेंट में देखा . शायद वे लोग भी इसी तरह अपना गला ठीक रखते हैं .
                  पेशाब में जलन हो या खुलकर न आता हो तो 2 चम्मच दलिया रात को मिटटी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे खाली पेट इसे छानकर पीयें . गोधूम क्षार भी खांसी और पथरी के लिए अच्छा होता है . क्षार बनाने के लिए पूरे गेहूँ के पौधे को जला लें . पानी में अच्छी तरह घोल लें . कुछ घंटे ऐसे ही रहने दें . बाद में ऊपर का निथारकर  फेंक दें और नीचे बचा हुआ सफ़ेद पावडर सुखा लें . यही गोधूम क्षार है . 
                          खांसी में इसे आधा ग्राम शहद के साथ चाटें . पथरी होने पर सवेरे शाम आधा-आधा ग्राम गोधूम क्षार लें .
                         
                                

गूलर (cluster fig)

गूलर के फल कुछ कुछ अंजीर से मिलते जुलते से होते हैं . इसके अंदर शरीर के toxins खत्म करने की क्षमता है . इसकी कोमल पत्तियों का रस या पावडर लेने से शरीर का विष समाप्त होता है . अगर इसकी पत्तियों का रस और मिश्री मिलाकर प्रात: काल लिया जाए तो शरीर स्वस्थ रहता है और कमजोरी नहीं आती . संस्कृत में इस वृक्ष के बारे में कहा गया है, " वृद्धो अपि तरुणायते " .  शरीर में शक्ति लाने के लिए इसका फल सुखाकर उसमें विदारीकंद , अश्वगंधा , शतावर और मिश्री मिलाकर रखें . इस पावडर को एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .
                                           हाथों पैरों में जलन होती हो तो इसकी कोमल पत्तियाँ और मिश्री मिलाकर लें . शीत पित्त (पित्ती उछलना ) हो तो इसकी कोमल पत्तियों को पीसकर 10-15 ग्राम रस सवेरे खाली पेट लें . या इसके कच्चे फल सुखाकर उसका चूर्ण सवेरे शाम लें . अगर भस्मक रोग (ज्यादा खाने का रोग) हो तो दिन में तीन बार यह चूर्ण लें. Loose  motions की समस्या हो तो इसकी कोमल पत्तियों का 10-15 ग्राम रस लें . पेट में दर्द हो तो इसके फल का पावडर +अजवायन +सेंधा नमक मिलाकर लें . पेट के मरोड़े , दर्द , colitis ,infections या amoebisis की समस्या हो तो इसके फलों की सब्जी खाएं . 
                        मुंह में छाले हो गए हों तो इसकी 100 ग्राम छाल कूटकर काढ़ा बनाकर कुल्ले करें . कहीं भी सूजन या दर्द हो तो इसकी छाल पीसकर लगा लो . फोड़ा फुंसी बार बार हो रहा हो तो भी इसकी छाल पीसकर लगा लो . चेचक के दाग ठीक नहीं हो रहे हों तो इसके पत्तों के लाल दानों को बकरी के दूध में घिसकर लगा लो . अगर pimples ठीक नहीं हो रहे हों तो उन पर इसकी छाल की पेस्ट लगा लो . शरीर पर जले हुए के निशान ठीक नहीं हो रहे हों तो इसके फल को घिसकर उसमें शहद मिलाकर जले हुए स्थान पर लगायें . त्वचा जलने से मांसपेशी कमज़ोर हो गई हो और खिंचाव पड़ता हो तो ,इसकी छाल और पत्तियां पीसकर लेप करें . अगर भगन्दर या piles के मस्से हो गए हों तो इसके दूध (टहनी तोड़ने पर दूध निकलता है ) को रुई में भिगोकर लगा दें . वैरागी अपनी जटाओं को shape में रखने के लिए भी इसी का दूध इस्तेमाल करते हैं .
                           कहीं से भी रक्त जाता हो तो इसकी पत्तियों का रस मिश्री के साथ लें . गर्भावस्था में गर्भपात होने का डर हो तो इसकी दूध की 2-3 बूँद बताशे में डालकर खाएं या फिर इसकी कोमल पत्तियों का रस लें . इसका प्रयोग निरापद है .  

                                   
                                   

Wednesday, October 26, 2011

ढाक के तीन पात !(flame of the forest)

पलाश , टेसू , किंशुक , ढ़ाक, रक्त पुष्प , वक्र्पुष्प आदि नामों वाला यह वृक्ष यज्ञवृक्ष भी है . इसकी लकड़ी श्रेष्ठ संविधा मानी जाती है . ये संविधाएं हवन कुण्ड में जलकर पूरे वातावरण को जीवाणुनाशक , विषाणुनाशक और पवित्र बना देती हैं . इसके पुष्प बहुत सुन्दर लाल रंग के होते हैं परन्तु उनमें खुशबू नहीं होती " निर्गन्धा एव किंशुका: " . पूरा वृक्ष जब पुष्पों से भर जाता है , तो एक भी पत्ता नहीं बचा रहता . 
           इसके फूल सूजन को दूर करते हैं , फिर चाहे वह चोट की हो , मोच की हो या फिर गठिया की . बर्तन में पानी उबालकर ऊपर जाली में फूल रख दें . फिर फूलों को गर्म गर्म ही सूजन पर बाँध लें . अगले दिन ही अविश्वसनीय असर दिखता है . फूल का पावडर विषनाशक और पौष्टिक होता है . यह कामोद्दीपक होता है और sexual disorders भी ठीक करता है . इसका  पावडर मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच दूध के साथ ले सकते हैं . इससे प्रमेह , white discharge आदि भी ठीक होते है. 
                  अगर लिकोरिया है , आंतें ठीक नहीं है , अल्सर हैं , पेशाब खुलकर नहीं आता , किडनी ठीक नहीं है , तो इसके 5-10 फूल रात को आधा लिटर पानी में भिगोयें और सवेरे उस पानी को मसलकर , छानकर पीयें . यह निरापद है और शरीर में पैदा हुए सब प्रकार के विष का नाश करता है . प्रदूषण से पैदा हुए विष भी इस पानी को पीने से खत्म हो जाते हैं . इसके फूल प्राकृतिक रंग प्राप्त करने के काम में आते हैं . 
                 इसकी फलियाँ होती हैं , जिसके जिसके बीज कृमिनाशक होते हैं . बीजों को पानी में उबालकर , छिलका हटाकर सुखा लो . इसका पावडर बच्चों के पेट में कीड़े होने पर 1-2 ग्राम की मात्रा में दे सकते हैं लेकिन पहले बच्चे को थोडा गुड खिला दें . इसकी छाल का काढ़ा विषनाशक है ; किसी ने तो यहाँ तक कहा कि यह सर्पविष का भी इलाज है . परन्तु यह निश्चित तौर से वातावरण के प्रदूषण के विष का तो अवश्य उपचार है. यह शरीर को detoxified करता है . 
                              नींद कम आने पर इसके बीज के पावडर में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच सवेरे शाम लो . संतानहीनता होने पर भी यही प्रयोग करें .इससे प्रमेह , प्रदर भी ठीक होते हैं .
          त्वचा का रोग होने पर इसकी पत्तियां पीसकर शर्बत बनाकर पीएँ. कहते हैं ; इससे कुष्ट रोग तक ठीक होता है .उसमें इसका तेल लगाया जाता है .खाज खुजली हो तो इसकी पत्तियां पीसकर लगा लो और पी भी लो . इससे बवासीर में भी लाभ होता है . कमजोरी हो तो इसकी पत्तियों , टहनियों का रस पीयें .
              शुगर की बीमारी व इसकी वजह से हुई बीमारियों में इसके 5 ग्राम का काढ़ा लाभदायक रहता है . इस काढ़े से kidney भी ठीक रहती है . Ulcerative Colitis में इसकी जड़ के छिलके का काढ़ा लाभ करता है . फोड़े फुंसी हों या सूजन हो या कहीं पर गाँठ हो तो इसके पत्ते गर्म करके पुल्टिस बांधें .इसके गोंद को कमरकस कहते हैं . रक्त प्रदर(bleeding ) हो तो इसे आधा ग्राम की मात्रा में लें .
              अगर आधा किलो इसकी जड़ को आठ गुना पानी में उबालते हुए अर्क(distilled water) बनाया जाए तो यह अर्क आँखों के लिए तो अच्छा है ही , ulcerative colitis में भी बहुत लाभ करता है . kidney की सूजन में इसका क्षार बहुत अच्छा रहता है . क्षार बनाने के लिए इसका सूखा पौधा जलाकर पानी में घोल कर छोड़ दें. कुछ घंटों बाद ऊपर का सब कुछ निथार कर फेंक दें . नीचे बचा हुआ सफ़ेद पावडर सुखा लें . वही क्षार कहलाता है .
        इसकी टहनियों के पत्ते तीन की संख्या में रहते हैं . चाहे वह बहुत छोटे हों या बहुत बड़े बड़े हो जाएँ . इससे अधिक नहीं होते . तभी कहावत है ," ढ़ाक के  तीन पात "! इसके पत्तों के दोने में गोलगप्पे खाते हैं . इसके फूल का आकार तोते की चोंच जैसा होता है इसलिए इसे parrot tree भी कहते हैं . सभी पेड़ों पर जब सुर्ख लाल रंग के फूल रह जाते हैं तो ऐसा लगता है कि जंगल में आग लग गई हो इसलिए flame of the forest भी कहा जाता है . होली का असली रंग तो इसके (टेसू के) फूलों से ही आता है 
                                         


Tuesday, October 25, 2011

मरुआ

इसे मरुआ , मरुबक या खरपत्र भी कहते हैं . पंजाब में इसे न्याज्बो कहते हैं . यह कुछ कुछ तुलसी से मिलता जुलता है और इसके बीज भी तुलसी के बीजों से थोड़े से मोटे होते हैं . यह घर के रोगों के जीवाणु खत्म करता है . वातावरण शुद्ध करता है . पेट में कीड़े या infections हों तो इसकी पत्तियों का रस खाली पेट लें. छोटे बच्चों को 4-6 बूँद दे सकते हैं .  इसकी चटनी भी लाभ करती है . अपच अफारा हो तो भी इसके चटनी बहुत लाभकारी है . सर्दी , जुकाम हो तो मरुआ +सौंफ +मुलेटी का काढ़ा लें . 
            इसके पत्तों को चाय में डालकर उबालकर पीयें तो पेट भी ठीक रहता है . Migraine  या सिरदर्द  हो तो इसके पत्ते पीसकर माथे पर लेप करें या 2-2 बूँद रस खाली पेट नाक में डालें . मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इसके पत्ते मुंह में चबाएं . मसूढ़ों में सूजन हो तो इसके पत्ते पानी में उबालकर नमक मिलाकर कुल्ले करें . खांसी और बलगम हो तो इसके पत्ते और अदरक का काढ़ा पीयें .
       मांसपेशियों में दर्द हो तो मरुआ +अश्वगंधा +अदरक का काढ़ा पीयें . पेट दर्द हो तो इसकी चटनी खाएं , इसका काढ़ा पीयें या ऐसे ही चबाकर रस अंदर लेते रहें . इसके एक चम्मच बीज रात को भिगोकर सुबह मिश्री मिलाकर खाए जाएँ तो इससे शरीर में शक्ति तो आती ही है श्वेत प्रदर की बीमारी भी ठीक होती है .  

Monday, October 24, 2011

थूहर (milk bush)

थूहर का पौधा राजस्तान में खेतों की बाड़ की तरह लगाया जाता है , जिससे की पशु खेत में न आ सकें . यह कांटेदार होता है . इसे सभी जगह उगाया जा सकता है . इसकी डंडी तोड़ने पर सफ़ेद दूध सा निकलता है . यह आँख में नहीं पड़ना चाहिए ; नहीं तो अंधापन आ सकता है . लेकिन इसके दूध में रुई भिगोकर सुखाई जाए और उसकी बत्ती बनाकर सरसों के तेल में जलाई जाए . उससे जो काजल बनाया जाएगा , वह आँखों के लिए सर्वोत्तम है . यह काजल आँख के infections खत्म करता है और नेत्रज्योति बढ़ाता है .
                           इसके दूध में छोटी हरड भिगोकर सुखा दें . इस सूखी हुई हरड को घिसकर थोडा सा रात को लिया जाए तो कब्ज़ दूर होता है और पुराने से पुराना मल निकल जाता है . अगर कर्ण रोग है तो इसके पीले पड़े हुए पत्तों को गर्म करके कान में दो दो बूँद रस ड़ाल सकते हैं . फोड़े होने पर या सूजन होने पर इसके पत्ते गरम करके बांधे जा सकते हैं . 
            अगर खाज खुजली या चमला की बीमारी है तो 1-2 चम्मच सरसों के तेल में इसके दूध की 4-5 बूँदें अच्छी तरह मिलाकर लगायें . अगर eczema या psoriasis की बीमारी है तो इसका तेल बनाकर लगाएँ. इसे किसी बोरे में कूटकर दो लिटर रस निकालें.  इसे आधा लिटर सरसों के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएँ . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और त्वचा पर लगाएँ . 

सहदेवी

 

सहदेवी का छोटा सा पौधा हर जगह खरपतवार की तरह पाया जाता है . इसके नन्हें नन्हें जामुनी रंग के फूल होते हैं .इसका पौधा अधिक से अधिक एक मीटर तक ऊंचा हो सकता है . सहदेवी का पौधा नींद न आने वाले मरीजों के लिए सबसे अच्छा है . इसे सुखाकर तकिये के नीचे रखने से अच्छी नींद आती है . इसके नन्हे पौधे गमले में लगाकर सोने के कमरे में रख दें . बहुत अच्छी नींद आएगी . 
                   यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है . बुखार होने पर यह बच्चों को भी दिया जा सकता है . इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें . यह लीवर के लिए भी बहुत अच्छा है . 
                अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें . अगर आँतों में संक्रमण है , अल्सर है या फ़ूड poisoning हो गई है , तो 2 ग्राम सहदेवी और 2 ग्राम मुलेटी को मिलाकर लें . केवल मुलेटी भी पेट के अल्सर ठीक करती है . अगर मूत्र संबंधी कोई समस्या है तो एक ग्राम सहदेवी का काढ़ा लिया जा सकता है . 

Sunday, October 23, 2011

अपराजिता (winged leaved clitoria)

अपराजिता की बेल बहुत सुन्दर होती है . इसके या तो नीले रंग के छोटे छोटे फूल होते हैं या फिर सफ़ेद रंग के . इसे अश्वखुरा भी कहते हैं . इसको रोग पराजित नहीं कर सकते . ऐसा माना जाता है की तंत्र मन्त्र में भी इसका प्रयोग होता है . अगर migraine या अधसीसी का दर्द रहता है तो इसकी जड़ की रस की 4-4 बूँदें नाक में ड़ाल लें. इसकी जड़ पीसकर माथे पर लेप भी करें .
                बार -बार बुखार आता हो तो इसके जड़ के टुकड़े लाल धागे में माला की तरह पहनें ; इसकी जड़ का काढ़ा पीयें . पीलिया होने पर भी ऐसा ही करें . खांसी होने पर इसकी जड़ के साथ 4-5 काली मिर्च लें और उसमें 2-3 पत्ते तुलसी के डालकर काढ़ा बनाकर पीयें . टांसिल बढ़ जाने पर इसके और अमरुद के पत्ते पानी में उबालकर , उसके गरारे करें .  इसकी पत्तियों को पीसकर गले पर लेप करें . बच्चों को खांसी हो तो इसके बीज का पावडर 250 mg शहद के साथ चटायें . Hydrocele की समस्या हो तो इसकी पत्तियां पीसकर बांधें . गर्भाशय बाहर आता हो तो इसके पत्ते +चांगेरी घास (खट्टा मीठा) +फिटकरी उबालकर , उस पानी से धोएं .
                 Overbleeding  हो या जल्दी जल्दी periods आते हों , तो इसकी 4-5 पत्तियों का रस लेते रहें . Delivery होने वाली हो तो इसकी जड़ धागे में बांधकर कमर में बाँध लें और बाद में तुरंत हटा दें . सूजाक या संक्रमण हो तो इसके पत्ते उबालकर धोएं . कम पेशाब आता हो तो इसके पत्ते पीसकर पानी में मिश्री के साथ लें . Elephant Leg हो गया हो तो इसकी जड़ और बीज का पावडर 1-1 चम्मच गर्म पानी से लें .अगर  घाव हो तो इसके पत्ते उबालकर उस पानी से धोएं . यह विरेचक भी होता है और कब्ज़ दूर करता है . इसे गमले में आराम से लगा सकते हैं .

Saturday, October 22, 2011

कालमेघ(kriate, karitat)

 कालमेघ का पौधा छोटा सा होता है . यह seasonal होता है . इसे बीज डालकर गमले में भी उगा सकते हैं  यह बहुत गुणकारी है . विशेषकर त्वचा के रोगों में यह बहुत लाभदायक है. इसे भुईनीम भी कहते हैं; क्योंकि यह कडवा बहुत होता है  . यह रक्तशोधक और ज्वरनाशक है .कितना भी पुराना बुखार हो , इसके पंचांग का 3-4 ग्राम का काढ़ा लें . कड़वा बहुत होता है, इसलिए मिश्री मिला लें . इससे सभी तरह के infections और सूजन खत्म होते हैं . अगर बुखार के कारण लीवर खराब हो गया है तो इसके एक ग्राम पत्ते +एक -दो ग्राम भूमि आंवला +दो ग्राम मुलेटी का काढ़ा लें . इससे आँतों में चिपका हुआ पुराना मल भी निकल जाएगा .
                  अगर पेट में कीड़े हैं , भयानक पुराना कब्ज़ है , आँतों में infection है , indigestion है , भूख नहीं लगती , लीवर मजबूत नहीं है ; सभी का इलाज है यह कि   2 ग्राम आंवला +2 ग्राम कालमेघ +2 ग्राम मुलेटी का 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनाइए और सवेरे शाम लीजिए . इससे शुगर की बीमारी भी ठीक होती है . यही काढ़ा लेने से मधुमेह जनित अन्य समस्या जैसे आँखों की , kidney की ,या अन्य कोई भी बीमारी हो सभी ठीक होती हैं . अगर दस्त लगे हों तो इसे न लें क्योंकि  यह विरेचक होता है.  
              बच्चों को अफारा है , भूख नहीं लगती या लीवर खराब है तो ,इसकी पत्तियों का काढ़ा बनाकर खूब गाढ़ा कर लें . उसमें गुड मिलाकर पका लें और छोटी -छोटी गोलियां बनाकर सुखा दें . परेशानी होने पर बच्चे को गोली घिसकर चटा दें  . 
                 त्वचा की कान्ति बढानी है , मुंहासे , झाइयाँ , दाद , खुजली की परेशानी है तो ,2-3 gram कालमेघ में थोडा आंवला मिलाकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे मसलकर खाली पेट पी लें . इससे पेट भी साफ़ रहता है . और धातुरोग , white discharge , एलर्जी और सर्दी- जुकाम भी ठीक होते हैं . 
           सर्दी जुकाम होने पर कालमेघ , गिलोय और आंवले का पावडर या काढ़ा ; दोनों ही ले सकते हैं . 
यह पौधा सभी रोगों का काल है . रोगों के लिए ये विकराल मेघों का रूप है . तभी तो इसका नाम कालमेघ है


श्योनाक

श्योनाक का पेड़ ज्यादा ऊंचा नहीं होता . यह पहाडी क्षेत्रों में पाया जाता है . इसे सोना पाठा और टोटला भी कहते हैं .  कोई कोई इसे अरलू भी कहते हैं . यह दशमूल का मुख्य घटक है . Periods में या delivery के बाद इसकी छाल का काढ़ा लेने से गर्भाशय ठीक रहता है . इसकी लकड़ी का खोखला गिलास जैसा बर्तन लें . रात को इसमें 200-300 ml पानी भर दें . इसे सवेरे सवेरे पीयें . इससे लीवर ठीक होता है . S.G.O.T. और S.G. P. T. आदि normal हो जाते हैं . पहाड़ों में तो इस पानी से मलेरिया तक ठीक किया जाता है .
                           पीलिया हो तो इसकी ताज़ी छाल लेकर (बच्चा है तो 4-5 ग्राम बड़ा है तो 10-12 ग्राम )  कूटकर मिटटी के बर्तन में रात को 200 ml पानी में भिगो दें . सवेरे मूंग जितना खाने वाला कपूर खिलाकर ये पानी पिला दें . यह प्रयोग तीन दिन करें . ध्यान रहे श्योनाक अधिक मात्रा में ली तो खुजली हो सकती है और कपूर अधिक मात्रा में लिया तो चक्कर आ सकते हैं . 
                 Hepatitis-B या C होने पर श्योनाक +भूमि आंवला +पुनर्नवा (साठी) का रस लेते रहें . ये बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं . Delivery के बाद uterus में infections  न हों और यह अपनी पहली अवस्था में आ जाए ; इसके लिए  2 ग्राम श्योनाक +1 ग्राम सौंठ +2-3 ग्राम गुड का काढ़ा पीयें . इससे भूख भी ठीक हो जाती है . 
                        खांसी होने पर इसकी सूखी छाल का पावडर आधा ग्राम और सौंठ एक ग्राम लें और सवेरे शाम शहद से चटाएं. Arthritis होने पर 2 ग्राम श्योनाक की छाल और 2 ग्राम सौंठ का काढ़ा पीयें . कान में दर्द हो तो इसकी 100 ग्राम छाल कूटकर 100 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो शीशी में भर कर रख लें . इसे दो - दो बूँद कान में डालें 
               बौद्ध धर्म में इस वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है . इसकी फली के सुंदर कोमल बीजों की माला तिब्बत के सभी घरों में मिल जायेंगी . उनका विश्वास है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है .

Thursday, October 20, 2011

कुछ सरल प्रयोग

- मोथा घास की जड का पावडर गठिया का उत्तम उपचार है . एक चम्मच पावडर सवेरे शाम लें . इसके अलावा हल्दी , मेथी , सौंठ को मिलाकर सवेरे खाली पेट एक एक चम्मच लें . Aloe Vera का जूस लें . घुटनों में दर्द हो तो अरंड के पत्ते पर सरसों का तेल लगाकर गर्म करके रोज़ रात को बांधें .
- पीलिया में दिन में तीन बार तीन से पांच दिन तक अरंड के पत्तों का दो चम्मच रस लें . रस लेने के एक घंटे बाद कुछ हल्का खाएं ; जैसे मक्की या चने की रोटी छाछ आदि . इसके अतिरिक्त अगर आक की एक बिलकुल छोटी सी कोंपल को पान के पत्ते में रखकर तीन दिन खाया जाए तो इससे भी पीलिया ठीक होता है .
- Hepatitis होने पर श्योनाक की छाल और अरंड का प्रयोग करें या फिर भूमि आंवला +पुनर्नवा +मकोय का काढ़ा लें . इसके लिए 10 ग्राम जड़ी बूटी को 400 ग्राम पानी में पकाएं . 
- Platelets बढ़ाने हों तो पपीते के पत्ते का रस +गिलोय की डंडी का रस +Aloe Vera का रस मिलाकर लें 
- Kidney की समस्या हो तो सवेरे नीम के पत्तों का रस 2-3 चम्मच लें और शाम को पीपल के पत्तों का रस 2-3 चम्मच लें . रस को पानी में मिलाकर ले सकते हैं .
- Colitis की समस्या हो तो कच्ची बेल का पावडर सवेरे शाम लें . दोपहर में छाछ में लवण भास्कर चूर्ण एक चम्मच मिलाकर लें . दूध , घी बंद कर दें . अनार का रस 60 ml दिन में दो तीन बार लें . आम की गुठली भूनकर उसका चूर्ण बना लें . इसे 2-3 ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ लें .
- शीशम के पत्ते हर तरह की bleeding रोकते हैं ; चाहे uterus की हो , नकसीर हो या hemophilia ही क्यों न हो . इसके 6-7 पत्तों का शर्बत लें या ऐसे ही पत्ते चबाकर पानी पी लें . थोडा ठंडा ज्यादा होता है इसलिए एक दो काली मिर्च भी चबा लें . शीशम के पत्ते पसीने की समस्या भी खत्म करते हैं और white discharge की भी . इसका प्रयोग गर्भावस्था में भी सुरक्षित है . गूलर के पत्तों का रस लेने से भी bleeding ठीक हो जाती है .
- Dandruff है तो सुहागे की खील (अंदाज़े से लें ) +नीम के पत्तों का रस 2-3 चम्मच +दही 3-4 चम्मच  +नारियल का तेल 1 चम्मच ; मिलाकर एक घंटे तक रखें फिर सिर धो लें .
- बहुत पुराना बुखार है तो आक की जड़ मूंग के दाने के बराबर सवेरे तीन दिन तक लें . गिलोय की डंडी का रस या काढ़ा तो लेते ही रहें .
- पुराना बुखार है तो आक की छोटी सी कोंपल पान के पत्ते में रखकर तीन दिन सवेरे सवेरे खाएं . दिन में दो तीन बार गिलोय भी ले लें .
- यात्रा में उल्टियाँ आती हैं तो घर से चलते समय उस पैर के तलुए के नीचे आक का पत्ता रख लें जिस तरफ का नाक का स्वर चल रहा हो .
- शीत पित्त होने पर एक चम्मच देसी घी (गाय का हो तो बेहतर ) ,पांच बताशे (न हो तो खांड ) , और पांच काली मिर्च एकदम खा लें . नारियल के तेल में कपूर डालकर रखें और त्वचा पर लगायें . नमक , मीठा कम खाएं.  इसके अलावा गूलर की कोमल पत्तियों का रस 10-15 ml सवेरे सवेरे लें या उसके कच्चे फलों का चूर्ण एक एक चम्मच सवेरे शाम लिया जा सकता है . इसके अतिरिक्त शीतपित्त होने पर एक चम्मच देसी घी , 3-4 काली मिर्च खाकर तुरंत एक कप पीपल के पत्तों का रस पी लें . अगर ऐसा 8-9 दिन लगातार कर लिया जाए तो शीत पित्त से पूरी तौर पर भी छुटकारा मिल सकता है .
- Heart की तकलीफ में सुबह घीया का जूस लें . (ठंडा होता है , सर्दियों में काली मिर्च भी डाल लें ) . इसमें तुलसी के पत्ते भी ड़ाल लें . घीया कडवा न हो , यह ध्यान रखें . अर्जुन की छाल का भी प्रयोग करें .
- शुगर की बीमारी के लिए सवेरे सवेरे एक टमाटर ,एक करेला और एक खीरा(कडवा न हो ) इनका जूस लें . इसमें पांच पत्ते नीम के, पांच फूल सदाबहार के मिलाकर जूस निकालें तो श्रेष्ठ रहेगा . सदाबहार के एक दो पत्ते भी डाल दें 
- संतान प्राप्ति न होती हो तो स्त्रियाँ शिवलिंगी और पुत्रजीवक के बीजों का चूर्ण एक ग्राम सवेरे , एक ग्राम शाम को खाली पेट लें या फिर पलाश के बीज और मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें .
- गर्भपात की समस्या हो तो धतूरे की जड़ कमर में बाँध कर रखें . Delivery के समय अपामार्ग (चिरचटा) की जड़ कमर में बाँध लें और delivery के बाद तुरंत हटा दें . इससे बहुत सुगमता रहती है .
- श्योनाक (सोना पाठा , टोटला) की लकड़ी  के गिलास में रात को 200 ml पानी रखें . सवेरे सवेरे पी लें . Lever संबंधी सभी बीमारियाँ ठीक हो जायेंगी और कभी होंगी भी नहीं .
- मुटापा है तो अश्वगंधा का एक एक पत्ता दिन में तीन बार तीन दिन तक गर्म पानी से लें . 15 दिन बाद फिर यही करें और ऐसे ही करते रहें . कभी ठंडा पानी न पीयें . सोने से दो घंटे पहले खाना खा लें .
- पीले ततैये का छत्ता नारियल के तेल में जला लें . इस तेल के प्रयोग से गंजेपन में लाभ होता है .
- गर्भावस्था में गर्भपात होने की शंका हो तो गूलर के दूध की 2-3 बूँद बताशे में डालकर लें या उसकी कोमल पत्तियों का रस लें . धतूरे की जड़ कमर में बाँध लें . शीशम के पत्तों का रस या पावडर ले लें .
- त्वचा के जलने पर एकदम Aloe Vera का गूदा लगा लें . उसी समय जलन खत्म हो जायेगी और बहुत जल्दी recovery होगी . दाग भी नहीं पड़ेगा .
- जले हुए के निशान खत्म करने हों तो गूलर के फल को घिसकर शहद में मिलाकर लगायें .
- नींद कम आती हो तो पलाश के बीजों के पावडर में मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . सहदेवी के पौधे शयन कक्ष में रखें . तकिये के नीचे गुलाब की पंखुडियां रख लें . इसके अलावा अनार की 2-3 ग्राम कोमल पत्तियों को कुचलकर 200 ml पानी में उनका काढ़ा बनायें और सोने से पहले लें .
- बच्चों को पेट में कीड़े होने पर अंग्रेजी दवाईयाँ देते रहने से शुगर की बीमारी होने लगी है .  बच्चों को पेट में कीड़े हों तो सवेरे खाली पेट मरुए के पत्तों का रस पिलाते रहें . इसकी चटनी नियमित रूप से खिलाने पर कीड़े होंगे ही नहीं . कमीला चूर्ण 1-2 ग्राम सवेरे एक दो दिन दे दें या फिर विडंगासव  एक दो दिन दे दें . करेले का 20 ml जूस भी सवेरे पिला सकते हैं पर वह बच्चों को कडवा लगेगा . पलाश के बीज का पावडर भी 1-2 ग्राम की मात्रा में दे सकते हैं . सवेरे सवेरे खाली पेट टमाटर खिलाने से भी पेट के कीड़े मर जाते है . सूखे करी पत्ते का पावडर 3 ग्राम की मात्रा में सवेरे खाली पेट लेने से भी कीड़े समाप्त होते हैं .
- लहसुन कूटकर सरसों के तेल में जला लें . इसे पैरों के तलुओं पर अच्छी तरह मलने पर जुकाम में आराम  जाता है . लहसुन में बदबू आती हो, तो तेल में अदरक जला लें . एलर्जी से छींक आती हों तो षडबिंदु तेल दोनों नथुनों में डालें और सूंघें .
- बड़ का 2-3 बूँद बताशे में डालकर खाना शक्तिदायक होता है .
- बवासीर के लिए सवेरे सवेरे गाय के उबले और ठन्डे किये हुए दूध में एक नीम्बू का रस मिलाकर तुरंत पी लें . यह तीन दिन करें . नागदोन के छोटे छोटे तीन पत्ते और दो तीन काली मिर्च सवेरे सवेरे लेने से भी बवासीर ठीक होती है .
- जोड़ों  के  दर्द के  लिए हल्दी , मेथी , सौंठ बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . Aloe Vera गर्म पानी के साथ लें .
- एडी में दर्द हो तो हल्दी और मेथी का प्रयोग करें .
- सर्दी  अधिक  लग रही हो तो बांये कान में रुई डालकर रखें . अगर गर्मी अधिक लग रही है तो दांये कान में रुई डालकर रखें .
- पसीने में बदबू आती हो तो बेल के पत्तों का शर्बत पीयें . पसीना अधिक आता हो तो शीशम के पत्तों का शर्बत काली मिर्च के साथ लें .
- Acidity महसूस हो रही हो तो थोड़े साबुत धनिए के बीज मुंह में डालकर खाते और चूसते रहें .
- आँखों के लिए आंवले का सेवन करें . सवेरे सवेरे मुंह में पानी भरकर दोनों आँखों में पानी के खूब छींटे मारें . फिर मुंह का पानी बाहर निकल दें .
- Sciatica  की समस्या है तो हरसिंगार के 2-3 पत्तों का काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीयें . एक डेढ़ महीने तक लगातार लेते रहने से आराम आता है .
- Lips फटने की समस्या हो तो नाभि में तेल या देसी घी लगाएं .

Tuesday, October 18, 2011

कचनार

कचनार के  विशेष प्रकार के पत्ते होते हैं . इन्हें आसानी से पहचान सकते हैं . कचनार की छाल शरीर की सभी प्रकार की गांठों को खत्म करती है . 10 gram गीली छाल या 5 ग्राम सूखी छाल 400 ग्राम पानी में उबालें जब आधा रह जाए तो पी लें . इससे सभी तरह की गांठें ऊपरी या भीतर की , कैंसर की गांठ , tumor ,फोड़े -फुंसी , गलगंड आदि सब ठीक हो जाता है . गर्भाशय की गांठें तो खत्म होती ही हैं , साथ ही हारमोन भी ठीक हो जाते हैं . 
                  मुंह पक जाए , या मुंह में छाले हों या मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इसकी छाल का काढ़ा पीयें और कुल्ले भी करो . दस्त या आंव हों तो इसकी छाल का 3-4 ग्राम पावडर पानी के साथ लें . पेशाब रुक कर आता हो तो इसके बीज का पावडर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें . पेशाब में जलन हो तो इसकी छाल का पावडर +धनिया पावडर +मिश्री मिलाकर लें . आंत में कीड़े हों तो इसका 20 ग्राम छाल का काढ़ा +1 ग्राम वायविडंग तीन चार दिन लें . इसकी पत्तियों का रस 100 ग्राम सवेरे शाम लें तो लीवर ठीक रहता है और पीलिया भी ठीक हो जाता है . 
         पशुओं के खुर पक जाएँ तो इसके काढ़े से धो दें . दन्त रोग हो तो इसकी छाल के कोयले को महीन कर के मंजन करो . भूख कम लगती हो तो इसकी छाल और पत्तियों के रस में मिश्री मिलाकर लें . स्नायु तंत्र में गाँठ हो तो इसकी इसकी छाल +तुलसी की चाय बनाकर पी लो . पेट में अफारा हो तो 5 ग्राम त्रिफला के साथ कचनार की छाल का पावडर लें . खांसी कफ हो तो इसके फूलों का गुलकंद बनाकर लें . शरीर में ताकत लानी हो तो इसके फूलों का पावडर मिश्री मिलाकर लें .
          अगर शरीर में कुबडापन आ गया हो तो इसकी छाल का 3-4 ग्राम पावडर हल्दी मिले हुए दूध के साथ लें .
             


    

गोखरू (small caltrops)


गोखरू का पौधा ज़मीन पर घास के साथ साथ ही उगा हुआ दिख जाता है . इसके नन्हे नन्हे पीले फूल होते हैं . इसे गोक्षुर भी कहते हैं . शायद इसलिए , क्योंकि गाय चलती है तो उसके खुर इस पर पड़ते हैं . यह kidney के लिए सर्वोत्तम है . इसके पंचांग या केवल फल का काढ़ा लेने से किडनी ठीक हो जाती है . Uric acid बढ़ गया है और इसकी वजह से पैरों में सूजन है ,तो गोखरू +सौंठ+मेथी+अश्वगंधा बराबर मात्रा में लेकर 5 ग्राम मिश्रण का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . खांसी है तो गोखरू +तुलसी +सौंठ का काढ़ा लें .
                         बार बार पेशाब आता है , या रुक रुक कर आता है या फिर prostrate glands की समस्या है तो गोखरू और काला तिल बराबर मात्रा में मिलाकर प्रात: सांय लें . शरीर में शक्ति की कमी है तो यह रसायन का भी काम करता है . इसे भृंगराज ,मुलेटी, और आंवले के साथ मिलाकर सवेरे शाम लें .
              इसका काढ़ा लेने से पथरी निकल जाती है और दोबारा नहीं होती . इसका काढ़ा सिरदर्द ठीक करता है और गर्भाशय के विकारों को भी ठीक करता है . अगर 10 ग्राम गोखरू के बीज और 2 ग्राम अजवायन मिलाकर काढ़ा पीया जाए तो delivery के बाद जहाँ गर्भाशय को शुद्ध करता है ; वहीँ पाचन को भी अच्छा करता है . 
                                    



Monday, October 17, 2011

जामुन

जामुन के फल को एक वर्ष में 20 -25 दिन भी ले लो तो पथरी होने की सम्भावना नहीं होती . पैरों में बदबू आती हो तो इसके वृक्ष की पत्तियों का काढ़ा पीयें . पेट में आंव हों या दस्त लगे हों तो इसकी पत्तियां और छाल 3-4 ग्राम की मात्रा में पानी में उबालकर काढ़ा पीयें . Piles हों तो इसकी कोमल पत्तियों का काढ़ा पीयें .
                 आँखों में जलन हो या दर्द हो तो इसकी पत्तियों की लुगदी की टिक्की लगाकर, पट्टी आँख पर बांधें . मोतियाबिन्द हो या चश्मा उतारना हो तो आंवला और जामुन की गुठली बराबर मिलाकर 2 -2 ग्राम सवेरे शाम शहद के साथ लें . अगर white discharge की समस्या हो तो यही मिश्रण मिश्री के साथ लें . दांत मजबूत करने हैं तो इसकी छाल की राख में नमक मिलाकर मंजन करें . स्वर भंग हो गया हो या मुंह में छाले हो गए हों , तो इसकी छाल या पत्तों के गरारे करें . 
                अगर घाव हो गए हों तो इसकी छाल उबालकर उस पानी से धोएं . इसके फल साफ़ बर्तन में डालकर , उसमें नमक मिलाकर 1-2 दिन के लिए छोड़ दें. फिर उसका जलीय अंश इकट्ठा करके छानकर शीशी में भर लें और धूप लगा दें . यह बन गया जामुन का सिरका ! यह पाचक होता है . इससे पेट के रोग और डायबिटीज़ भी ठीक होती है . 
                शुगर की बीमारी के लिए कुटकी , मेथी दाना , जामुन की गुठली और सूखा करेला बराबर लेकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . केवल इसकी गुठली का पावडर ही एक एक चम्मच सवेरे शाम लिया जाए तो मधुमेह ठीक होता है . इसके फल बहुत अधिक नहीं खाने चाहियें; इससे अफारा होता है.  

Sunday, October 16, 2011

अश्वगंधा

                           अश्वगंधा के छोटे- छोटे लाल फल बहुत सुन्दर लगते हैं
अश्वगंधा का एक एक पत्ता दिन में तीन बार गर्म पानी से लें . केवल तीन दिन तक . फिर 15 दिन बाद यही प्रक्रिया दोहरा लें . इससे मोटापा कम होता है . अगर कहीं दर्द है तो इसका पत्ता गर्म करके बांधें . Angina की परेशानी है तो अर्जुन की छाल और अश्वगंधा की जड़ मिलाकर प्रात: सांय लें . इससे हृदय को ताकत मिलती है .अश्वगंधा की जड़ का पावडर मस्तिष्क  के लिए भी अच्छा है . खांसी है तो इसकी जड़ों का काढ़ा लें . 
                   अगर शारीरिक कमजोरी है और वजन नहीं बढ़ता तो इसकी जड़ों का पावडर एक एक चम्मच दूध के साथ लें . दूध से परेशानी हो तो पानी से भी ले सकते हैं . इससे white discharge समाप्त  हो जाता है और शरीर की क्षमता बढ़ती है . कमर दर्द हो तब भी इसे सवेरे शाम लें . जोड़ों का दर्द हो तो इसे दवा के साथ मिलाकर लें . अगर इसे हल्दी और मेथी (बीज ) के साथ मिलाकर लिया जाए; एक एक चम्मच सवेरे शाम ,  तो जोड़ों के दर्द के साथ sciatica की बीमारी भी खत्म होती है . यह uric acid को कम करता है . छोटे बच्चे की पसली चलती है , तो इसकी जड़ घिसकर चटा दें . चाहे तो शहद मिलाकर चटा दें .
  कितनी अद्भुत बात है कि एक ही पौधे का पत्ता वज़न घटाता है और जड़ का पावडर वज़न बढाता है ! 

ब्राह्मी

ब्राह्मी का नाम किसने न सुना होगा ? वयोवृद्ध नेता तो इसके कायल हैं . उनकी बुद्धि इसी के सहारे तीक्ष्ण रहती है . इसके पत्तों का आकार कुछ कुछ मेंढक से भी मिलता है , इसीलिए इसे मंडूकपर्णी भी कहते हैं . इससे बुद्धि को तीव्र करने या याददाश्त को बढ़ने के लिए लेना हो तो ,सवेरे 4-6 पत्तियां चबा-चबाकर खाएं . फिर पानी पी लें . इससे मन शांत होता है . एकाग्रता भी बढ़ती है . पत्ते थोड़े कडवे होते हैं . अत: इसके सूखे पत्ते 250 ग्राम +बादाम 250 ग्राम +काली मिर्च 20 ग्राम +500 ग्राम मिश्री ; इन सबको मिलाकर रख लें और इस मिश्रण का एक- एक चम्मच सवेरे शाम लें .
      मिर्गी , उन्माद , मंदबुद्धि या over activity की शिकायत हो तो इसके पौधे का पंचांग सुखाकर सवेरे शाम लें . नींद कम हो तो 2-3 ग्राम के मात्रा दूध में पकाकर लें . उन्माद होने पर 10 ग्राम ब्राह्मी +5 ग्राम कूठ , दोनों मिला लें . इस मिश्रण को 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम शहद के साथ चटायें . 
                     गर्मी के रोग होने पर 3 ग्राम ब्राह्मी +3 ग्राम काली मिर्च मिलाकर पीसकर शर्बत बनायें और मिश्री मिलाकर पी लें . बाल सफेद होने पर इसका रस बालों की जड़ों में लगायें और ब्राह्मी और भृंगराज बराबर मात्रा में मिलाकर एक-एक चम्मच सवेरे शाम लें . पेशाब की दिक्कत हो तो ब्राह्मी के रस में काली मिर्च मिलाकर शरबत पियें .पेट दर्द हो तो इसके तीन चार पत्तों की लुगदी पानी के साथ लें . हाथ-पैरों में जलन हो तो इसका एक चम्मच रस शहद के साथ लें . और अगर करना हो अपना गला सुरीला ; तो ब्राह्मी और मुलेटी मिलाकर सवेरे शाम लें .


Friday, October 14, 2011

देसी गुलाब(rose)

गुलाब का फूल किसे पसंद न होगा ? फूलों का राजा है गुलाब ! देसी गुलाब की खुशबू सूंघ लो तो उसे नाक के पास से हटाने का भी मन नहीं करता . केवल खुशबू ही नहीं , यह विभिन्न रोगों के उपचार की क्षमता भी अपने अंदर समाये है . Stress हो या नींद न आती हो , या फिर मानसिक थकावट हो ; सिरहाने के पास इसका गुदस्ता रखकर सोयें . फिर देखिये परिणाम ! इसके फूल की पंखुडियां तकिये के नीचे रखकर सोयें . इसका पौधा सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को भगाता है . 
     चन्दन को गुलाबजल में घिसकर माथे पर लगाने से मस्तिष्क को आराम मिलता है . Migraine तक अच्छा होता है . गुलाब का अर्क आँखों के लिए बहुत अच्छा होता है . इसके फूल चबाने से मसूढ़े और दांत अच्छे रहते हैं . कब्ज़ है तो एक भाग त्रिफला और आधा भाग फूल का पावडर मिलाकर लें . 
      गुलकंद लेने से उदर रोग , अल्सर , acidity , कब्ज़ , infections और आँखों की रोशनी ठीक रहती है . गुलकंद बनाने का तरीका आसान है . एक किलो देसी गुलाब की पंखुड़ियों में दो किलो चीनी मिलाकर अच्छी तरह रगड़ लें. इसे कांच के बर्तन में डालकर दो- चार दिन धुप दिखा दें . बस बन गया गुलकंद !
               हृदय रोग में अर्जुन की छाल और देसी गुलाब मिलाकर उबालें और पी लें . हृदय की धडकन अधिक हो तो इसकी सूखी पंखुडियां उबालकर पीयें .    आँतों में घाव हो तो 100 ग्राम मुलेटी +50 ग्राम सौंफ +50 ग्राम गुलाब की पंखुडियाँ ; तीनों को मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें . इसका 100 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें .
                  अगर घाव है तो इसकी जड़ घिसकर लगायें . कहीं पर सूजन हो तो इसकी पत्तियों को पीसकर लेप लगायें .   

curry leaves



करी पत्ता या मीठा नीम हमारे देश में बहुत इस्तेमाल होता  है . साम्बर और उपमा की कल्पना तो इसके बिना की ही नहीं जा सकती . अगर मधुमेह (sugar) की बीमारी हो तो इसकी पत्तियों का पावडर 3-4 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . पेट दर्द या अफारा हो तो 2-3 ग्राम पत्तों का काढ़ा 400 ग्राम में पकाकर बनायें . अपच हो तो 1-2 ग्राम पत्तों को पानी उबालकर चाय की तरह पीयो . 
  पेट में कीड़े हों तो इसके सूखे पत्तों का पावडर 2-3 ग्राम सवेरे खाली पेट लें . अगर फुंसी हों तो इसके पत्तों को पीसकर पेस्ट की तरह लगायें . कहीं घाव हो गया है तो इसके पत्ते उबालकर उस पानी से घाव को धो लें . चेहरे का सौन्दर्य बढ़ाना हो तो इसके पत्तों का पेस्ट चेहरे पर लगायें . 
     Acidity या ulcer होने पर इसके पत्तों का 3-4 ग्राम रस एक कप पानी  में मिलाकर सवेरे शाम लें . खुजली या दाने होने पर इसकी जड़ की छाल को घिसकर लगायें .

Typhoid

Typhoid  की बीमारी ठीक करनी है तो एक ग्राम खूबकला  (बड़े व्यक्ति 2 ग्राम भी ले सकते हैं ; छोटे बच्चों को एक चुटकी दें ) , तीन अंजीर और तीन मुनक्का ; तीनों को एक गिलास  पानी में उबालकर काढ़ा बनायें . जब खूब कढ़ जाए और 50 gm रह जाए  तो इसे खूब घोटकर, छानकर  पीयें . यह तीन से पांच दिन तक करें . खाना न खाकर  तीन से पांच या छ: दिन केवल दूध ही पीयें और चीकू और पपीते खाएं  . इस तरह  यह बीमारी ठीक हो  जाती है . साथ में गिलोय का प्रयोग भी करते रहें . अगर अधिक भूख लगे तो मूंग की दाल का पतला पानी दें .

रतनजोत



रतनजोत का प्रयोग प्राय: मसाले के रूप में होता है . इसे दामिनी , बालछड या लालजड़ी भी कहते हैं . अंग्रेजी में इस पौधे को Onosma कहा जाता है . यह हिमालय क्षेत्र में होता है . बालों को रंगना हो और आँखों की रोशनी बढानी हो तो ,मेंहदी की पेस्ट में रतन जोत को मिलाकर अच्छे से गर्म करें . ठंडा होने पर बालों में लगायें व कुछ देर के लिए छोड़ दें . इसके बाद पानी से सिर धो लें . सिर में लगाने वाले तेल में अगर रतनजोत के कुछ टुकड़े ड़ाल दिए जाएँ तो तेल का रंग तो सुंदर हो ही जाता है ; इस तेल के प्रयोग से बाल स्वस्थ और काले हो जाते हैं . साथ ही इस तेल से मस्तिष्क की ताकत भी बढ़ती है .
इसको घिसकर माथे पर लगाने से मानसिक क्षमता बढ़ती है और डिप्रेशन आदि बीमारियाँ नहीं होने पाती . इसका पावडर तेल में मिलाकर मालिश करने से त्वचा का रूखापन खत्म होता है . 
      इसके पौधे की जड़ का पावडर एक ग्राम सवेरे शाम लिया जाए तो , मिर्गी के दौरे पड़ने बंद हो जाते हैं . यदि त्वचा के रोगों से छुटकारा पाना हो तो इसकी जड़ का आधा ग्राम पावडर सवेरे शाम ले लो . इसके पौधे की पत्तियों को चाय की तरह पीया जाए तो यह हृदय के लिए बहुत लाभदायक है . इसके पत्तियों के सेवन से रक्त शुद्ध होता है और दाद, खाज और खुजली से छुटकारा मिलता है . इसके पत्तों का काढ़ा नियमित रूप से लिया जाए तो गुर्दे की पथरी भी ठीक हो जाती है . 

Tuesday, October 11, 2011

अर्जुन

अर्जुन के वृक्ष का नाम लेते ही इसके द्वारा हृदय रोग का उपचार याद आता है . इसकी 10-15 ग्राम ताज़ी छाल 200-300 ग्राम पानी या दूध में उबालकर सवेरे शाम लेने से वाकई हृदय रोग में लाभ होता है . इसके प्रयोग से हृदय व मस्तिष्क की मांसपेशियों को ताकत मिलती है . ताज़ा न मिले तो इसकी छाल का 5 ग्राम पावडर डेढ़ गिलास पानी में पकाएं . जब आधा गिलास रह जाए , तो पी लें . इस  काढ़े  से घबराहट , बेचैनी , नींद टूटना जैसी बीमारियाँ भी ठीक होती हैं . उच्च रक्तचाप हो या amoebisis की परेशानी ; यह सभी में लाभदायक है 
                   हड्डी टूट जाए , घिस जाए या cartilage घिस जाए , तब भी इसका काढ़ा फायदा करता है . इसका काढ़ा मस्तिष्क को भी ताकत देता है . पुराना बुखार हो तो , इसकी छाल ,नीम और तुलसी का काढ़ा पिलायें . White discharge की परेशानी हो तो इसकी छाल का पावडर दो चम्मच रात को भिगो दें . सवेरे मसलकर पीयें या काढ़ा बनाकर पीयें . 
                     चेहरे की झाइयों के लिए इसकी छाल घिसकर चेहरे पर लगायें . कान में दर्द हो तो इसकी कोमल पत्तियों का रस दो-दो बूँद कान में डालें .मुख पाक या मुंह में infection हो गया हो तो इसकी ताज़ी छाल का काढ़ा पीयें और उसके कुल्ले भी करें . 
इसके फूल ऐसे प्रतीत होते हैं , जैसे कि अर्जुन की तरकश से निकले हुए तीर हों ! वैसे भी अज्ञातवास में जाने से पहले उन्होंने अपना गांडीव इसी "शमी " वृक्ष के नीचे गाड़ दिया था .

शीशम


शीशम की लकड़ी बहुत मजबूत होती है , यह तो सभी को पता है . इसके अतिरिक्त इसमें और बहुत से गुण विद्यमान हैं . इस वृक्ष के पत्ते बहुत ठंडक प्रदान करते हैं . गर्मियों में बहुत प्यास लग रही हो तो , इसके 5-7 पत्तों  को  पीसकर , मिश्री मिलाकर शर्बत बनाकर पी लें . इससे पसीने से आने वाली बदबू भी खत्म हो जायेगी . रुक-रुककर urine आता हो या , periods में दर्द या over bleeding हो या फिर white discharge की समस्या हो ; हरेक समस्या का समाधान यह शर्बत है .
                            शीशम , सदाबहार व नीम के पत्ते मिलाकर लेने से diabetes की बीमारी व उससे होने वाली शिथिलता भी दूर होती है . इसके पत्ते विष को भी समाप्त करते हैं . अगर कोई जहरीला कीड़ा काटने से सूजन हो या वैसे ही कहीं पर सूज गया हो तो , इसके पत्ते और नीम के पत्ते उबालकर उस पानी में नमक डालें और सिकाई करें . अगर कहीं पर भी गाँठ है , यहाँ तक की कैंसर की भी ; इसके पत्तों को पीसकर लगाने से खत्म हो जाती हैं . इसके अलावा अगर पत्तों को बिना पीसे तेल लगाकर गर्म करके बांधा जाए तब भी गाँठ ठीक होती हैं . 
                   त्वचा का ढीलापन है तो इसके पत्तों को पीसकर लगाएँ . अगर माताओं को कम दूध आता है , तो इसके पत्ते पीसकर लगाने से दूध बढ़ता है . पशुओं के थनों में थनैला रोग भी इसके पत्तों की लुगदी लगाने से समाप्त हो जाता है . अगर आँख में लाली है , दर्द है या जलन है तो इसके पत्तों की लुगदी की टिक्की आँख की पलकों पर रखकर पट्टी बांध लें . 
                  Eczema होने पर या खाज , दाद या त्वचा की कोई भी बीमारी होने पर इसकी लकड़ी का तेल लगाएँ .  बनाने की विधि आसान है . पुराने वृक्ष की लकड़ी कूटकर चौगुने पानी में धीमी आंच पर पकाएं . एक चौथाई रहने पर बराबर का सरसों का तेल मिलाएं . धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए , तो शीशी में भरकर रख दें . इसकी नित्य मालिश से सभी त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं . 

Monday, October 10, 2011

सौ बीमारी ; एक अनार ! pomegranate

अनार का फल जितना सुंदर होता है ; उससे अधिक उसके फूल सुंदर होते हैं . इसकी कली का रस नाक में टपकाने से नकसीर बंद हो जाती है . इसकी कलियों को सुखाकर 2-3 कलियों की चाय पी जाए तो पेट ठीक रहता है और सर्दी , जुकाम और खांसी आदि नहीं होते . इसकी सूखी कलियों का पावडर घाव पर बुरकने से infections दूर हो जाते हैं .
   अनार के छिलके का पावडर करके उसमें हल्दी ,नमक और सरसों का तेल मिलाकर मंजन करने से मसूढ़े मजबूत होते हैं . अगर दस्त लगे हों तो इसके छिलके के पावडर में कच्ची बेल का पावडर मिलाकर सवेरे शाम ले लें . इसके छिलके . चन्दन और लौंग की पेस्ट मुंह पर लगाने से चेहरा साफ़ रहता है .
         यदि अनिंद्रा या टेंशन है तो इसकी 2-3 ग्राम कोमल पत्तियों को कुचलकर 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनायें और सोने से पहले ले लें . पेट में दर्द है तब भी यही काढ़ा लाभदायक रहेगा . कान में दर्द है तो इसके पत्तों का रस सरसों के तेल में पकाकर कान में डालें . मुंह में छाले हैं तो इसके कोमल पत्ते चबाएं और लार बाहर कर दें . अगर दौरे पड़ते हों तो 20 ग्राम पत्तियों का रस मिश्री में मिलाकर सेवन करें . 
                 खांसी है तो  इसकी कलियाँ या पत्ते लें. उसमें 3-4 तुलसी के पत्ते और काली मिर्च मिलाकर इसकी चाय पियें . अरुचि या भूख न लगने से कमजोरी हो तो , इसके फल के रस में जीरे का पावडर और काला नमक मिलाकर पीयें ; या रस और शहद मिलाकर चाटें . अगर पेट में कीड़े हो गए हों तो ,इसकी 100 ग्राम जड़ को कूटकर 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनायें और सवेरे शाम दो बार लें . गर्भवती स्त्रियाँ इसके फल का रस लेती रहें तो उल्टियां नहीं होती . 
                        अगर पीलिया हो जाए , तो इसके ताजे पत्तों का पावडर 3 ग्राम की मात्रा में दिन में छाछ के साथ और शाम को पानी के साथ लें .अगर खुजली की शिकायत है , तो इसके पत्तों का रस मलें . यदि नाखून अंदर की तरफ चला जाता है तो इसके छिलके के पावडर में हरड का पावडर मिलाकर पेस्ट बना लें और नाखून पर लगाकर पट्टी बांध दें . कुछ दिनों में यह ठीक हो जाएगा . 
        Uterus अगर बाहर आता हो तो इसके 100 ग्राम पत्ते , 100 ग्राम पानी में उबालें और उसमें फिटकरी मिलाकर सिकाई करें . मांस लटकता हो , या फिर झुर्रियां पड़ गई हों , तो इसकी पत्तियों के एक किलो रस में आधा किलो तिल का तेल मिलाएं . धीमी आंच पर पकाएं . जब केवल तेल रह जाए तो शीशी में भरकर रख लें . रोज़ मालिश करें . इससे मांसपेशियां ठीक हो जायेंगी . 
   क्यों ? है न ठीक बात , सौ बीमारी ; एक अनार !