Wednesday, October 26, 2011

ढाक के तीन पात !(flame of the forest)

पलाश , टेसू , किंशुक , ढ़ाक, रक्त पुष्प , वक्र्पुष्प आदि नामों वाला यह वृक्ष यज्ञवृक्ष भी है . इसकी लकड़ी श्रेष्ठ संविधा मानी जाती है . ये संविधाएं हवन कुण्ड में जलकर पूरे वातावरण को जीवाणुनाशक , विषाणुनाशक और पवित्र बना देती हैं . इसके पुष्प बहुत सुन्दर लाल रंग के होते हैं परन्तु उनमें खुशबू नहीं होती " निर्गन्धा एव किंशुका: " . पूरा वृक्ष जब पुष्पों से भर जाता है , तो एक भी पत्ता नहीं बचा रहता . 
           इसके फूल सूजन को दूर करते हैं , फिर चाहे वह चोट की हो , मोच की हो या फिर गठिया की . बर्तन में पानी उबालकर ऊपर जाली में फूल रख दें . फिर फूलों को गर्म गर्म ही सूजन पर बाँध लें . अगले दिन ही अविश्वसनीय असर दिखता है . फूल का पावडर विषनाशक और पौष्टिक होता है . यह कामोद्दीपक होता है और sexual disorders भी ठीक करता है . इसका  पावडर मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच दूध के साथ ले सकते हैं . इससे प्रमेह , white discharge आदि भी ठीक होते है. 
                  अगर लिकोरिया है , आंतें ठीक नहीं है , अल्सर हैं , पेशाब खुलकर नहीं आता , किडनी ठीक नहीं है , तो इसके 5-10 फूल रात को आधा लिटर पानी में भिगोयें और सवेरे उस पानी को मसलकर , छानकर पीयें . यह निरापद है और शरीर में पैदा हुए सब प्रकार के विष का नाश करता है . प्रदूषण से पैदा हुए विष भी इस पानी को पीने से खत्म हो जाते हैं . इसके फूल प्राकृतिक रंग प्राप्त करने के काम में आते हैं . 
                 इसकी फलियाँ होती हैं , जिसके जिसके बीज कृमिनाशक होते हैं . बीजों को पानी में उबालकर , छिलका हटाकर सुखा लो . इसका पावडर बच्चों के पेट में कीड़े होने पर 1-2 ग्राम की मात्रा में दे सकते हैं लेकिन पहले बच्चे को थोडा गुड खिला दें . इसकी छाल का काढ़ा विषनाशक है ; किसी ने तो यहाँ तक कहा कि यह सर्पविष का भी इलाज है . परन्तु यह निश्चित तौर से वातावरण के प्रदूषण के विष का तो अवश्य उपचार है. यह शरीर को detoxified करता है . 
                              नींद कम आने पर इसके बीज के पावडर में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच सवेरे शाम लो . संतानहीनता होने पर भी यही प्रयोग करें .इससे प्रमेह , प्रदर भी ठीक होते हैं .
          त्वचा का रोग होने पर इसकी पत्तियां पीसकर शर्बत बनाकर पीएँ. कहते हैं ; इससे कुष्ट रोग तक ठीक होता है .उसमें इसका तेल लगाया जाता है .खाज खुजली हो तो इसकी पत्तियां पीसकर लगा लो और पी भी लो . इससे बवासीर में भी लाभ होता है . कमजोरी हो तो इसकी पत्तियों , टहनियों का रस पीयें .
              शुगर की बीमारी व इसकी वजह से हुई बीमारियों में इसके 5 ग्राम का काढ़ा लाभदायक रहता है . इस काढ़े से kidney भी ठीक रहती है . Ulcerative Colitis में इसकी जड़ के छिलके का काढ़ा लाभ करता है . फोड़े फुंसी हों या सूजन हो या कहीं पर गाँठ हो तो इसके पत्ते गर्म करके पुल्टिस बांधें .इसके गोंद को कमरकस कहते हैं . रक्त प्रदर(bleeding ) हो तो इसे आधा ग्राम की मात्रा में लें .
              अगर आधा किलो इसकी जड़ को आठ गुना पानी में उबालते हुए अर्क(distilled water) बनाया जाए तो यह अर्क आँखों के लिए तो अच्छा है ही , ulcerative colitis में भी बहुत लाभ करता है . kidney की सूजन में इसका क्षार बहुत अच्छा रहता है . क्षार बनाने के लिए इसका सूखा पौधा जलाकर पानी में घोल कर छोड़ दें. कुछ घंटों बाद ऊपर का सब कुछ निथार कर फेंक दें . नीचे बचा हुआ सफ़ेद पावडर सुखा लें . वही क्षार कहलाता है .
        इसकी टहनियों के पत्ते तीन की संख्या में रहते हैं . चाहे वह बहुत छोटे हों या बहुत बड़े बड़े हो जाएँ . इससे अधिक नहीं होते . तभी कहावत है ," ढ़ाक के  तीन पात "! इसके पत्तों के दोने में गोलगप्पे खाते हैं . इसके फूल का आकार तोते की चोंच जैसा होता है इसलिए इसे parrot tree भी कहते हैं . सभी पेड़ों पर जब सुर्ख लाल रंग के फूल रह जाते हैं तो ऐसा लगता है कि जंगल में आग लग गई हो इसलिए flame of the forest भी कहा जाता है . होली का असली रंग तो इसके (टेसू के) फूलों से ही आता है 
                                         


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