Sunday, November 27, 2011

भारंगी (Turk's Turban Moon)

आगे की तरफ दिखने वाली फूलों की डाल और साथ में दिखाई देने वाले पाँच छ: पत्ते भारंगी के हैं .
भारंगी का पौधा 12 से 16 फुट तक ऊंचा हो सकता है . इसके फूल कभी लम्बे और सफ़ेद दिखते हैं तो बाद में चौड़े और लाल नज़र आते हैं . कारण है कि फूलों की सफेद लम्बी और पतली  पंखुड़ियाँ झड़ जाती हैं और लाल रंग के sepals रह जाते हैं .  इसे संस्कृत में ब्राह्मण यष्टिका (डंडा ) भी कहा जाता है . कहते हैं कि इसका डंडा हाथ में लेकर चलने मात्र से asthma से छुटकारा मिलता है . भारंगी श्वास रोगों के लिए सबसे उपयुक्त इलाज है . इसे श्वसारी क्वाथ में भी डाला जाता है .
           राजयक्ष्मा (T. B.) होने पर इसके पंचांग का काढ़ा प्रात: सांय लें .  सिरदर्द होने पर इसकी जड़ पीसकर माथे पर 5-6 घंटे के लिए लगायें . उसके बाद धो दें . आँखों में परेशानी हो तो इसके पत्तों कि लुगदी की पट्टी आँखों पर बांधें . Goitre की समस्या हो तो इसके पत्तों का काढ़ा सवेरे शाम लें . Thyroid की परेशानी तो यह जड़ से खत्म कर देता है . इसके लिए 3 ग्राम भारंगी के जड़ का पावडर +3 ग्राम त्रिकटु(सौंठ+पिप्पल +काली मिर्च ) का पावडर प्रात: सांय गर्म पानी से लें .
                            मोटापा खत्म करने की मेदोहर वटी में भी भारंगी को डाला जाता है . Fibroid या cyst खत्म करनी हो तो , 3 ग्राम भारंगी के पंचांग में थोडा तेल मिलाकर लें . Food poisoning या पेट का संक्रमण खत्म करना हो तो इसके पंचांग का या फिर पत्तियों का काढ़ा लें . कब्ज़ हो  या हिचकी आती हों ,तब भी इसके पंचांग का काढ़ा लिया जा सकता है . यह चर्मदोष और रक्तदोष को भी दूर करता है .
                                 मांसपेशियों में दर्द हो तो इसका तेल लगाकर मालिश करें . तेल बनाना आसान है . इसके पत्तों का 800 ग्राम रस लेकर धीमी आंच पर रखें . जब 400 ग्राम रह जाए तो इसमें 200 ग्राम सरसों का तेल मिला लें . जब केवल तेल रह जाए तो छानकर शीशी में भर लें . हर्पीज़ की बीमारी में पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें . फोड़े हो गए हों तो पत्ते पीसकर गर्म करके पुल्टिस बांधें .
                     इसके बीज का पावडर थोड़ी मात्रा में लेने से पेट दर्द व अन्य रोगों में लाभ होता है .
                            

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