Saturday, December 24, 2011

वृद्ध वृक्ष

कौन कहे इस वृद्ध वृक्ष ने,
तरुणाई में क्या क्या झेला?
पाषाणों के वार असह्य थे;
जीवन पथ था निपट अकेला।
रस से ओत प्रोत मीठा फल,
जिसने चाहा जी भर खाया।  
तृप्त किया पंथी को अपना,
हरित पर्ण आंचल फैलाया।
मुदित प्रशंसक राही ने भी,
पत्थर मार कर दिया घायल।
घाव समेटे ताज़े फिर भी,
प्रेम प्यार से दिया मधुर फल।
उभरी हुए प्रत्येक शिरा अब,
स्वयं दुःख भरी कथा सुनाती।
कितने चाकू , भाले, आरी,
पड़े वक्ष पर बन आघाती।
यों अस्तित्व संभाला अपना,
आह कभी भी निकल न जाए।
रहे हरित पूरा यौवन पर,
जख्म किसी को नजर न आए।
एक एक कोमल डाली पर,
पात पात पर प्यार बिखेरा।
अपनी पीड़ा अंतर्मन की,
भीतर भीतर खूब उकेरा।
अन्दर की  धीमी अग्नि ने,
जर्जर कर डाला तन सारा।
सुख, मिठास, आनन्द बांटता,
वृक्ष स्वयं से ही अब हारा।
फिर भी सूखे पत्ते ओढ़े,
छाया अपनी दे देता है।
तरुणाई भी आई थी क्या ?
प्रश्न उसे विस्मित करता है !




Thursday, December 22, 2011

जलजमनी (broom creeper)


 
जलजमनी को गारुडी और पातालगरुडी भी कहते हैं . इसके पत्ते चिकने और शीतल होते हैं . इन्हें पीसकर रात को पानी में डालें तो सवेरे पानी को जमा हुआ पाएंगे . श्वेत प्रदर(white discharge) हो या रक्त (bleeding) प्रदर हो तो इसकी 5-7 gram पत्तियों को पीसकर रस निकालें और एक कप पानी में मिश्री और काली मिर्च के साथ सुबह शाम लें . दो तीन दिन में ही असर दिखाई देगा
                 .Periods जल्दी आते हों , overbleeding हो पेशाब में जलन हो , गर्मीजन्य बीमारी हो , स्वप्नदोष हो या फिर धातुक्षीणता हो तो इस रस को 10-15 दिन तक भी लिया जा सकता है . इसके अतिरिक्त टहनियों समेत इसे सुखाकर , कूटकर 2-2 ग्राम पावडर मिश्री मिलाकर दूध के साथ लिया जा सकता है .
                             कमजोरी हो तो , शतावर , मूसली , अश्वगंधा और जलजमनी बराबर मिलाकर एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें . नकसीर आती हो तो , दाह या जलन हो तो, इसकी पत्तियों के रस का शर्बत या सूखा पावडर एक एक ग्राम पानी के साथ लें . शीत प्रकृति के व्यक्तियों को इसका अधिक सेवन नहीं करना चाहिए
                      यह कहीं भी आसानी से उगाई जा सकती है . 

Wednesday, December 21, 2011

पत्थरचट (bryophyllum)


 

पत्थरचट का पौधा हमारे देश में सर्वत्र पाया जाता है . इसे पर्णबीज , हेमसागर और जख्मेहयात भी कहते हैं . यह पथरी को चट कर जाता है. शायद  इसीलिये इसका यह नाम पड़ा . पित्ताशय में पथरी हो या किडनी में हो ; दोनों ही अवस्था में , सुबह शाम इसकी दो तीन पत्तियां खाएं या फिर पत्तियां पीसकर रस का सेवन करें . साथ ही प्राणायाम भी करते रहें . इससे पथरी दोबारा होने की सम्भावना भी नहीं रहती और शरीर में पथरी बनाने वाले कारक भी स्वयं समाप्त हो जाते हैं . अगर पथरी के कारण रक्तचाप बढ़ गया है या अन्यथा भी रक्तचाप के बढ़ने पर इसके पत्तों का रस लेने से वह सामान्य हो जाता है . अगर urine भी रुक रुक कर आता है ; तो भी ये रस बहुत मददगार है . उल्टियाँ आती हों तब भी यह रस बहुत लाभदायक रहता है .
                      कान में दर्द हो तो इसके पीले पत्ते को गर्म करके उसके रस की दो बूँद कान में ड़ाल लें . अगर कहीं पर दर्द या सूजन है तो इसके पत्ते को गर्म करके , सरसों का तेल लगा कर उस स्थान पर बांधें . शायद इसी कारण इसे दर्दपात भी कहते हैं .अगर पत्ते पर दर्द वाला तेल लगा पायें तो और भी अच्छा रहेगा . स्तन में गाँठ हो गई हो तब भी इसका पत्ता गर्म करके बांधें . श्वेत प्रदर या प्रमेह की बीमारी में भी इसके दोतीन पत्तों का रस ले सकते हैं . अगर कहीं पर घाव हो गया है तो इसके पत्ते पानी में उबालकर उस पानी से घाव को धोएं .
               इसके पत्तों के पकौड़े भी बनाकर खाए जा सकते हैं . इससे स्वाद तो आएगा ही और लाभ भी होगा . इसके पत्ते का सबसे अद्भुत गुण है कि पत्तियों के किनारे से ही नन्हे नन्हें पौधे उगने प्रारम्भ हो जाते हैं . इसके अतिरिक्त एक और अनोखी बात है कि  प्रात:काल इन पत्तों का स्वाद खट्टापन लिए हुए नमकीन होता है ; दिन में फीका और सांयकाल कसैलापन लिए हुए होता है .        





Saturday, December 10, 2011

वासा (malabar nut )


वासा या अडूसा श्वास रोगों के लिए रामबाण है . यह बारह महीने हरा भरा रहता है . वसंत ऋतु में इसके सुंदर श्वेत पुष्प आते हैं . इन पुष्पों के गुलकंद से कफ और बलगम ठीक होते हैं . बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर हाथ से मसलकर फूलों को कांच के बर्तन में दो चार दिन धूप में रखो तो इसका गुलकंद बन जाता है . इसका एक एक चम्मच सवेरे शाम लेने से कफ बलगम निकल जाता है और ताकत भी आती है . प्रमेह या धातु रोग होने पर इसके फूलों का पावडर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर एक एक चम्मच लें .
                                           किडनी के रोगों में इसके पंचांग का काढ़ा लें . या फिर 5-5-5 ग्राम वासा ,पीपल और नीम मिलाकर मिटटी के बर्तन में काढ़ा बनाकर पीयें .इससे uric acid भी कम होगा और कफ भी कम होगा . छोटे से बच्चे को खांसी हो तो इसके पत्तियों के रस की 2-3 बूँद शहद में मिलाकर बच्चे को चटाएं. चाहें तो एक दो बूँद अदरक का रस भी मिला लें . बड़े व्यक्ति आधा से एक चम्मच रस शहद मिलाकर ले सकते हैं . Lung fibrosis हो , स्वर तंत्र खराब हो या श्वास की बीमारी हो तो ताजे फूलों का रस लें या फिर इसके पंचांग के टुकड़े कर के 10-15 ग्राम लें इसे 400 ग्राम पानी में काढ कर जब 100 ग्राम रह जाए तो पीयें ; सुबह दोपहर और शाम . लगभग 2-3 दिन में ही लाभ नजर आने लगता है .
                               यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है . रक्त को भी शुद्ध करता है . Sinus की समस्या में इसके पत्तियों के रस की 4-4 बूँद नाक में डालें . सारा कफ निकल जाएगा . किसी भी तरह की एलर्जी को भी यह ठीक करता है . इसे गमले में भी लगाया जा सकता है .
आँतों के infection में इसमें बराबर मात्रा में मुलेठी मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . 


Friday, December 9, 2011

मुलेठी (licorice root)


मुलेठी का नाम सभी ने सुना होगा . गला खराब होने पर मुलेठी चूसने के लिए कहा जाता है .  इसके औषधीय प्रयोग के लिए इसकी जड़ को प्रयोग में लाया जाता है . संस्कृत में इसे मधुयष्टिका कहते हैं ; अर्थात मीठी डंडी ! इसे चूसने पर यह मीठी लगती है . गला खराब होने पर मिश्री और काली मिर्च के साथ इसे चूसें . जिन्हें अधिक बोलने का कार्य करना होता है उन्हें इसका प्रयोग करते ही रहना चाहिए . खांसी होने पर भी तुलसी , अदरक और काली मिर्च के साथ मिलाकर मुलेठी का काढ़ा बनाकर पीयें .
                           आँखों के लिए त्रिफला और मुलेठी का पावडर रात को कांच के बर्तन में भिगोकर सवेरे पानी छानकर ,निथारकर, उसमें आँख डुबोकर धोएं और मुलेठी +सौंफ +आंवला बराबर मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . शरीर में कहीं भी घाव हो गये हों तो इसे घिसकर लगा लें . बहुत जल्द घाव ठीक हो जायेंगे . अंदर के घावों को भी यह ठीक करता है ; चाहे वे गले के घाव हों या पेट के अंदर . पेट में जलन हो infections हों या आँतों में परेशानी हो या फिर किडनी की ; सभी में   एक डेढ़ चम्मच मुलेठी का पावडर रात को भिगोकर , सवेरे मसलकर छानकर पी लें .
                          पेट में अल्सर या colitis होने पर इसके 5-7 ग्राम पावडर का काढ़ा लें . सूखी त्वचा ठीक करनी हो या सुन्दरता बढ़ानी हो तो मुलेठी का पावडर +मुल्तानी मिटटी +दूध +गुलाबजल मिलाकर त्वचा पर लेप करें . कुछ देर बाद धो लें . त्वचा निखर जायेगी . हृदय की धडकन अधिक है या बेचैनी है तो अर्जुन की छाल और मुलेठी बराबर मात्रा में मिलकर काढ़ा बनाकर पीयें . यह तीक्ष्ण नहीं होता , सौम्य होता है .
                                 पीलिया होने पर , मुलेठी और पुनर्नवा मूल को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें .अगर शक्ति प्राप्त करनी है तो इसके पावडर के साथ गंभारी फल और विदारी कन्द का पावडर मिलाकर एक एक चम्मच  सवेरे शाम लें .  पाचन ठीक करना हो , भूख कम हो या कमजोरी हो तो मूसली, शतावर और मुलेठी का पावडर बराबर मिलाकर एक एक चम्मच लें . पेट में दर्द ,ऐंठन या कब्ज़ हो या मल जमा हो गया हो तो , मुलेठी और त्रिफला पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच सवेरे शाम दूध या गर्म पानी के साथ लें . यह मधुर विरेचक (mild laxative) भी है . लेकिन पेट को नुकसान नहीं पहुँचाता.
                                      माताओं को दूध कम है तो इसकी जड़ के पावडर के साथ शतावर का पावडर बराबर मात्रा में मिलाकर सवेरे शाम एक एक चम्मच दूध के साथ लें . पशुओं का पेट ठीक रखना है या दूध बढ़ाना है तो उनके चारे में इसका पावडर 100 ग्राम मिला दें . पशु दूध तो अधिक मात्रा में देते ही हैं ; साथ ही उनका दूध भी औषधीय गुणयुक्त भी हो जाता है .
                          इसके पत्तों को पीसकर फुंसी पर लगाने से वह जल्दी फूट जाती है या फिर दब जाती है . केवल यह ध्यान रखना है की फुंसी का मुंह खुला रहे .  कहीं पर घाव होने पर इसकी पत्तियां उबालकर उस पानी से घाव को धोएं . इसे मैदानी भाग में आराम से उगाया जा सकता है . 

Wednesday, December 7, 2011

पिपली (long pepper)


पीपली को संस्कृत में पिप्पली , वैदेही और मागधी भी कहते हैं . यह रोगों की परिसमाप्ति का प्रमुख द्रव्य है . यह हर जगह उग सकता है . पिप्पली की जड़ के काढ़े से किसी भी तरह का बुखार खत्म होता है . बाद में जो लीवर खराब होता है , भूख ठीक नहीं लगती , सब ठीक हो जाता है . यह सुबह शाम लेना है . इससे सभी विजातीय तत्व भी निकल जाते हैं . चाहे डाक्टर की दवाई भी ले रहे हों तब भी इसे लेते रहें . इससे बुखार बार बार नहीं आता .
                        पंचकोल (पीपल , पीपलामूल , चित्रक , चव्य, सौंठ ) का काढ़ा लेने से thyroid की बीमारी ठीक होती है . इससे मोटापा भी कम होता है . कम periods  होने पर पिपली + पीपलामूल (पिप्पली की जड़)  डेढ़- डेढ़ ग्राम मिलाकर,  काढ़ा बनाकर ,  पीयें .  इससे दर्द भी नहीं  होता  periods भी नियमित हो जाते हैं . थोडा गर्म होता है तो गर्मी में कुछ कम मात्रा में लें.
                                                                         सिरदर्द होने पर पिप्पली का पावडर भूनकर नस्य लें . सूंघने पर सिरदर्द  में तो लाभ होता ही है नजला , जुकाम भी ठीक होता है .  एक ग्राम पिप्पली के पावडर को दूध के साथ रात को सोते समय लें . नींद अच्छी आयेगी .कफ भी नहीं बनेगा . अस्थमा में दो ग्राम पिप्पली का पावडर शहद के साथ लें . कफ वाली दवाइयों में इसका प्रयोग अवश्य होता है .
                        रतौंधी के लिए पिप्पली  का काजल इस्तेमाल करें . पिप्पली के  बारीक पावडर को  घी में मिलाकर बत्ती बनाकर जला लें और काजल बना लें . ईसे आँख भी ठीक रहेंगी । स्वरभंग हो जाए तो पिप्पली का पावडर शहद के साथ चाटें . बच्चों का दांत निकलते समय पिप्पली घिसकर शहद के साथ चटा दें .   पेट के अफारे , कफ के लिए , हरे पीले दस्त के लिए ; सब तरह से यह अच्छा प्रयोग रहेगा .
                              पिप्पली कल्प स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा रहता है. पहले दिन एक पिप्पली को एक गिलास दूध में पकाएं . पहले पिप्पली खाकर फिर दूध पी लें . अगले दिन दो पिप्पली दूध में पकाकर लें .  11 पिप्पली तक इसी तरह करें . फिर वापिस घटाते जाएँ . दिन में कुछ न खाएं या कुछ हल्का खाएं  . आहार पर संयम रखें . इस कल्प को करने में लगभग 21 दिन लग जाते हैं .  इस कल्प को करने से  चेहरे पर कांति आती है, सब दर्द खत्म हो जाते हैं , अस्थमा में आराम आता है और शरीर की स्फूर्ति बढ़ जाती है
                                                                                            हृदय रोग में  पीपली +हरी इलायची एक एक ग्राम दूध के साथ लें या दूध में उबालकर लें  . अर्जुन की छाल का पावडर मिला लें तो और अच्छा रहेगा . नवप्रसूता माताएं तीन ग्राम शतावर +एक ग्राम पिप्पली का पावडर दूध बढ़ाने के लिए सुबह शाम ले सकती हैं . इससे शरीर भी जल्द  ही सामान्य स्थिति में आ जाएगा . पेट दर्द के लिए इसका एक ग्राम पावडर शहद के साथ चाटें .5gram  पिप्पली+ 1gramपीपला मूल के काढ़े से मोटापा भी ठीक होता है .  लीवर बढ़ा हुआ है तो  5 gram पिप्पली +एक ग्राम पीपलामूल मिलाकर लें . यह दर्द के लिए भी अच्छा है .
                                           इसे घर में लगाइए . बहुत सुंदर लगता है .

Monday, December 5, 2011

तेजपत्ता (bay leaves)


तेजपत्ता मसाला ही नहीं औषधि भी है इसके पत्तों का काढ़ा सर्दी जुकाम भगाता है . सिरदर्द हो तो इसके 4-5 पत्तों  का  काढ़ा  पीयें  और  पत्ते  पीसकर  सिर पर  लेप  करें .
                                                 सिर में जूएँ हो गयी हों तो 50 ग्राम पत्तों को 400 ग्राम पानी में उबालें . जब 100 ग्राम रह जाए तो सिर की जड़ों में लगा लें . एक दो घटे बाद धो दें . इसमें उबलने से पहले भृंगराज मिला लें तो और भी अच्छा है . दमा हो तो इसके 2-3 पत्ते और एक ग्राम सौंठ मिलाकर काढ़ा बनाएँ और पीयें . खांसी हो तो इसकी पत्तियों के पावडर को शहद में मिलाकर चाटें .
                                     पेट में अफारा हो तो 5 ग्राम तेजपत्ता और अदरक का काढ़ा शहद मिलाकर लें . उबकाई आती हों तो इसकी 5 ग्राम पत्तियां उबालकर सवेरे शाम लें . Kidney में पथरी हो तब भी इसकी पत्तियों का उबला पानी सवेरे शाम लें .
                               हृदय रोग होने पर या angina की समस्या में , 3-4 तेजपत्ता +2 लौंग +3-4 ग्राम देसी गुलाब की पंखुडियां मिलाकर पानी में उबालकर छानकर पीयें .
                                                   गर्भाशय की शुद्धि के लिए अजवायन +सौंठ +तेजपत्ता उबालकर पिलायें . Allergy या छींकें आने पर तेजपत्ते का काढ़ा पिलायें . अफारा या वायु गोला हो तो पत्ते उबालकर सेंधा नमक मिलाकर दें .
                                    नकसीर आती हो तो इसकी पत्तियां उबालकर मसलकर छानकर पिलायें .. इसकी पत्तियों का काढ़ा जोड़ों के दर्द में भी लाभ करता  है .  

Friday, December 2, 2011

चित्रक (leadwort)


चित्रक को चीता या चितावर भी कहते हैं . पूरे भारत में यह झाडी पाई जाती है . इसके तीन रंगों के फूल हो सकते हैं ; लाल , नीले और सफ़ेद . इससे चित्रकादी वटी बनाई जाती है. इसे अजीर्ण और वातज रोगों में प्रयोग में लाया जाता है . इसमें ख़ास तौर पर चित्रक की जड़ का प्रयोग होता है .  अगर नकसीर की समस्या हो तो बच्चे को आधा ग्राम और बड़े व्यक्ति को एक ग्राम जड़ का पावडर दें . तुरंत लाभ होगा . यह विषैला तो नहीं होता ; फिर भी अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए .
                        गले के रोगों में इसकी जड़ , मुलेटी और 2 -3 तुलसी के पत्ते का काढ़ा पीयें . कफ रोगों में पंचकोल (चित्रक , चव्य, पीपल ,पीपलामूल , सौंठ ) की 2-3 ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाटें . बुखार या ज़ुकाम हो तो पंचकोल का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . अगर किसी को दूध हजम न होता हो तो भी सवेरे शाम पंचकोल का काढ़ा पीयें ; दूध हजम होना शुरू हो जाएगा .
                   पेट की बीमारी हो , पेट का अफारा हो या पेट फूलता हो तो , सवेरे खाली पेट इसकी जड़ का काढ़ा लें या पंचकोल का काढ़ा लें . मासिक धर्म अनियमित हों या देर से आते हों तो दशमूल 200 ग्राम और पंचकोल 100 ग्राम मिलाकर रख दें . इस मिश्रण का 7-8 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम पीयें . प्राणायाम करें . रज:प्रवर्तिनी वटी भी सवेरे शाम लें . इससे अवश्य लाभ होता है .