Monday, December 17, 2012

गन्ना (sugar cane )



                                                 
गन्ने का नाम सुनते ही मुँह में रसधार बहने लगती है । यह भोजन करने से पहले चूसा जाए तो भूख बढ़ाता है और खाने बाद चूसा जाए तो पाचन शक्ति को बढाता है । इसके चूसने से दाँत और मसूढ़ों की मालिश होती है । मिश्री गन्ने के रस से ही बनती है । इसको किसी भी औषधि के साथ मिलाकर लिया जाये तो औषधीय गुण बढ़ जाते हैं ।
                    पीलिया रोग में इसका रस लिया जाए तो पीलिया जल्द ठीक होता है । इसके रस में धनिया और अदरक भी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा । इसका छिलका उतारकर , रात को ओस में रखकर अगर सवेरे इसे चूसा जाए तो लाभ और भी अधिक होता है । गन्ने के रस में अनार का रस मिलाकर लिया जाए तो पीलिया भी जल्द ठीक होता है और शरीर में खून की भी कमी भी नहीं होती ।
                             इसकी जड़ kidney के लिए बहुत लाभकारी है । इसके सेवन से पेशाब की जलन भी खत्म हो जाती है । Diabetes की बीमारी में भी इसकी जड़ का काढ़ा पीने से लाभ होता है । अगर रुक रुक कर पेशाब आता है तो इसकी 10 ग्राम जड़ का काढ़ा पीयें ।
                    इसके रस को चिकनी मिट्टी के बर्तन में रखें और 10-15 दिन तक उस रस से भरे बर्तन को मिट्टी में दबा दें । इसके बाद उस बर्तन में गन्ने का सिरका बन जाएगा । इसे 20-25 ml की मात्र में सौंठ व काली मिर्च मिलाकर लिया जाए तो पाचन क्रिया बहुत अच्छी हो जाती है । कमजोर पाचन वाले रोगियों के लिए यह बहुत अच्छी औषधि है । अगर भोजन करने के बाद थोडा गुड खा लिया जाए तो भी भोजन का पाचन अच्छी तरह होता है । गुड जीवनी शक्ति प्रदान करता है और ताकत को बढाता है ।
                                           जूट का ऐसी बोरी (बैग ) लें , जिसमे कि पिछले दो तीन साल पहले गुड का storage किया गया हो । इस बोरी को जलाकर राख कर लें । यह राख औषधि का कार्य करती है । इसकी 2-2 ग्राम की मात्रा लेने से रक्त प्रदर और श्वेत प्रदर (white discharge ) की बीमारी ठीक होती है । अगर द्स्त लगे हों तो इसे लेने से वे तुरंत बंद हो जाते है । दस्त होने पर गुड के साथ बेल का पावडर भी लिया जा सकता है ।
                                                     खांसी में पुराना गुड दवाई का कार्य करता है । पुराना गुड +अदरक +काली मिर्च मिलाकर गोलिया बना लें । इन्हें चूसते रहने से खाँसी ठीक हो जाती है । गला बंद हो गया हो तो गन्ने के टुकड़े  को आग में भूने और उसे चूसें । इससे गला तुरंत खुल जाएगा ।
                                 



             




                                   
                   
                         

Thursday, December 6, 2012

Happy birthday Mummiji !



मेरी पुत्रवधू रिद्धिमा ने यह प्यारी सी कविता मेरे जन्मदिवस पर मुझे भेंट की :


Someone who loves someone who cares
Someone who makes the day bright again
I feel very gracious
Coz few things in life are as precious

A morning cup of tea together
After a stroll in the garden
I know my day has started well
And I am ready to face my struggles

Talk about yummy kale chane or aloo matar
All I want is to lick my fingers
I see Her speed & efficiency
Her patience & energy
Can I ever get close to acquiring these qualities?

I know I will always have Her lap
When I am not well
With one affectionate wave of her hand
I will become sound as a bell

Her pearls of wisdom
Act like light to guide my path
I know I will never be alone
Coz She is around to hold my hand

I thank Her
For accepting me as Her child
For forgiving my mistakes
And making me a part of Her life

I hope She knows
That being with Her makes me love life more
I can’t help being loquacious
Coz few things in life are as precious




Wednesday, October 17, 2012

आँचल की अक्षमता !!




माँ के आँचल का ताना बाना ,    
सोख लेता संताप ; संतान के ।
उनके विषाद के गहराए बादल,
बरसने से पहले ही उलझ जाते हैं;
माँ के मुलायम आँचल में ।
धूप की कठोर किरणें,
कसमसाती हुई ,
अटक जाती हैं ;
माँ के सशक्त आँचल में ।
आंधी तूफ़ान हल्की सी हलचल भी ,
छू नहीं पाती बच्चों का तन मन ;
आँचल की दीवार जो है सबल !
सब कुछ पी जाता है ,
झेल लेता है चुपचाप ,
माँ का मूक आँचल ।
फिर भी असफल है ;
 अक्षम है माँ का आँचल ।
वह सोख नहीं सकता ,
 माँ की आँख की कोर से ,
ढरकते  दो  अश्रु !!

Friday, October 12, 2012

अमरुद(guava)



अमरुद को संस्कृत भाषा में दृढबीजम कहा जाता है । इसके बीज कठोर होते हैं । उन्हें चबाना कठिन होता है । और मजेदार बात यह है कि उन्हें चबाना ही नहीं चाहिए , बल्कि निगल लेना चाहिए । अमरुद के गूदे को चबाकर बीजों को ऐसे ही निगल लेना चाहिए । इस प्रकार से अमरूद को खाया जाए ,तो यह फल intestines के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है । यह फल पेट के लिए लाभकारी और गुणकारी माना गया है । यह कब्ज़ को दूर करने वाला और मन को प्रसन्न रखने वाला फल है । मल को रेचन करने का गुण इसके बीजों में होता है ; बशर्ते कि उन्हें निगला जाए ।
              यह फल सभी के लिए निरापद है । मधुमेह का रोग हो या किडनी की परेशानी ; सभी बीमारियों में इसका सेवन बेझिझक किया जा सकता है । यह त्रिदोष नाशक है । अर्थात वात पित्त और कफ का नाश करता है । विभिन्न प्रकार के रोग मात्र अमरुद से ही ठीक किए  जा सकते हैं । यह हृदय को शक्ति प्रदान करता है और घबराहट और बेचैनी को दूर करता है ।
      यह फल मस्तिष्क को तुरन्त ताकत देता है । एक दो फल खाने के बाद पुन: शरीर और मस्तिष्क में स्फूर्ति  वापिस आ जाती है । यह दाह नाशक है । हाथ , पैरों की जलन को समाप्त करता है । यह फल , कमजोरी और मूर्छा को ठीक कर देता है ।
                            खाँसी होने पर , इसके कम पके फल के टुकड़े करके उनमे नमक लगाएँ और आग पर भूनें । फिर उस अमरुद को चबा चबाकर खाएँ । इस प्रकार करने से पुरानी से पुरानी खाँसी  भी दूर हो जाती है । लीवर damage हो गया हो या भूख कम लगती हो ; तब भी अमरुद को इसी प्रकार खाना चाहिए । खाना खाने से कुछ देर पहले इस फल को खाया जाए तो यह आँतों और liver के लिए बहुत अच्छा रहता है । खाने के बाद इस फल को खाया जाए तो विरेचन काफी अच्छा होता है परन्तु इसके लिए भोजन कम मात्रा में खाना होगा ।
                                               मसूढ़ों के दर्द के लिए इसके पत्तों का प्रयोग किया जा सकता है ।इसके पत्तों को कूटकर उसमें नमक और लौंग मिलाकर उबाल लें । इस पानी से गरारे और कुल्ले करें । इससे मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी और मुँह  के छाले भी ठीक हो जायेंगे । मुंह में छाले हो गए हों तो इसकी कोमल पत्तियाँ चबाएँ । इन्हें निगल भी सकते हैं । तब भी यह लाभ ही करेंगी ।
                                     खाँसी या कफ होने पर इसके पत्तों का काढ़ा पीएँ । सूखे पत्तों का काढ़ा भी खांसी को ठीक करता है । यह काढ़ा बुखार को भी ठीक करता है । अपचन होने पर इसकी छाल , पत्तियां और सौंठ मिलाकर काढ़ा बनाएँ और सवेरे शाम पीएँ । संग्रहणी या अतिसार की समस्या से भी यह काढ़ा मुक्ति दिलाता है । इसके ताज़े या सूखे पत्तों में तुलसी मिलाकर चाय भी बनाई जा सकती है । यह बहुत लाभप्रद होती है । छोटे बच्चों को colitis की समस्या हो तो इसकी जड़ का छिलका 2 ग्राम लेकर उसका काढ़ा बनाकर दे सकते हैं ।
                                           अमरुद के सेवन से पुराने से पुरानी अतिसार की समस्या ठीक हो जाती है । पेट में कीड़े हों तो नमक के साथ अमरुद का सेवन करें । भांग का नशा चढ़ गया हो तो इसके पत्तों का रस पिला दें या फिर अमरुद खिलाने से भी भाँग का नशा उतर जाता है ।                                                               

                                 





Friday, September 7, 2012

तुझे स्वयम को गढ़ना होगा !

मलिन पंक से ऊपर उठकर
पंकज सरिख विकसना होगा
महाकाल की ज्वालाओं में
धधक धधक कर जलना होगा
तप तप कर उज्ज्वल आभा ले
कुंदन सरिस निखरना होगा
धीरज की छैनी से छिलकर
अनुपम रूप निरखना होगा
भूली सी प्रतिभाओं को भी
नित्य प्रकाशित करना होगा
सरस्वती के वरद हस्त को
शिरोधार्य अब करना होगा
तारों की कोमल छाया में
मन में शुचिता भरना होगा
निर्मल मन  उद्दीप्त हो उठे
जग में जगमग करना होगा
धूलि धूसरित अनगढ़ हीरे !
तुझे स्वयम को गढ़ना होगा


Thursday, September 6, 2012

मूली (radish)


 
मूली और उसके हरे -हरे पत्ते पेट को ठीक रखने के लिए बहुत अच्छे होते हैं । हमेशा पानी से अच्छी तरह धोकर ही मूली या उसके पत्ते खाने चाहिए ।
          अगर कान में दर्द है या साँय साँय की आवाज़ आती है तो 200 ग्राम मूली के पत्तों में 50 ग्राम सरसों का तेल मिलाकर धीमी आंच पर पकाएं । जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें । इस तेल की बूँदें कान में डालने से कान की पीड़ा से छुटकारा मिलता है ।
          आँखों में जाला या लालिमा है तो मूली के स्वच्छ रस में कुछ पानी मिलाकर आँखे डुबोकर धोएं ।
    मूली क्षार श्वास के रोगों व खांसी की अचूक दवा है । इसे बनाने के लिए मूली के टुकड़े करके उन्हें छाया में सुखा लें । फिर इनको जलाकर राख बना लें । इस राख में 8 गुना पानी मिलाकर 6-7 घंटे रख दें । बीच बीच में हिलाते रहें ।इसके बाद ऊपर से निथार  दें । नीचे जो मटमैला सा अवशेष बचेगा , वही मूली क्षार है । इसे सुखाकर रख लें । यह श्वास रोगों के लिए बहुत ही लाभदायक है . अगर छोटे बच्चे को खांसी है तो 100 मि0 ग्रा0 पावडर को शहद में मिलाकर चटाएं । बड़ा व्यक्ति 1\2 ग्राम पावडर शहद के साथ ले सकता है ।
                पथरी होने पर मूली क्षार सवेरे सवेरे लें . Kidney stone होने पर मूली का रस एक कप की मात्रा में सुबह सुबह  खाली पेट ले लें । इससे आगे चलकर दोबारा पथरी बनने की संभावना भी कम हो जाएगी । पीलिया या jaundice की बीमारी के लिए मूली अमृत है । मूली का रस सवेरे सवेरे एक कप पी लें । दिन में मूली की सब्जी खाएं ।
                  अगर acidity की समस्या  है तो मूली के पत्तों का सेवन किया जा सकता है । मूली का रस भी इस समस्या से मुक्ति दिलाता है ।
  liver या spleen बढ़े हुए हों , पेट दर्द , या पेट में अफारा हो तो मूली  के चार टुकड़े कर लें । इस के ऊपर 3-4 ग्राम नौशादर बुरक लें । रात भर ऐसे ही रहने दें । सवेरे मूली के टुकड़ों के साथ थोडा पानी भी दिखाई देगा । खाली पेट पहले इस पानी को पी लें । फिर मूली के टुकड़े चबा चबाकर खाएं । बच्चों के लिए नौशादर की मात्रा कम रखें । यह कुछ समय तक ही करना है । इससे शत प्रतिशत लाभ मिलता है । यह संतों द्वारा अनुभूत गोपनीय प्रयोग है और पूरी तरह प्रमाणिक है ।
                            मूली को प्रात:काल सोना , दिन के समय चाँदी , और रात को मल के समान माना गया है । रात को मूली का सेवन भूल कर  भी नहीं करना चाहिए । यह भी कहा जाता है कि  मूली खाकर जंगल जाना चाहिए और अदरक खाकर सभा में बैठना चाहिए । अर्थात मूली के सेवन के बाद थोडा अदरक का टुकड़ा खा लिया जाए तो मूली की डकार नहीं आती और मूली भली भाँति पच भी जाती है । मूली को भोजन से एकदम पहले नहीं लेना चाहिए । यह अपचन का कारण बन सकती है । नाश्ते से आधा घंटा पहले मूली खाई जा सकती है । या फिर आधा खाना खा चुकने के बाद मूली खाएँ । इस प्रकार मूली अधिक लाभकारी रहेगी । मूली खाने के बाद दूध या दही नहीं खाना चाहिए ।
                इसके बीजों के पावडर में मिश्री मिलाकर एक चम्मच सवेरे दूध के साथ लेने से शक्ति में वृद्धि होती है । इसकी सूखी पत्तियों का पावडर सवेरे लेने से बवासीर और अफारे में आराम आता है । पेट के रोग ठीक करने हों तो मूली को काली मिर्च और काला नमक लगाकर खाएँ

                             

Wednesday, August 22, 2012

सरलता सौम्य है !

सिकता कणों को निहारती
ओ कृत्रिम निर्मम मुस्कान !
स्वच्छंद नैसर्गिक हरियाली को देख
मुस्कुराना है ;
तो उन्मुक्त हो कर खिलखिला
नकली आवरण चढाकर
छिपने का प्रयत्न छोड़ दे
सूखे रेत में
पूरे जीवन की परिभाषा
नहीं पढ़ी जा सकती
रेत की चमक में
सुखद प्रतिबिम्ब का
नकली छलावा है
छलावे को छोड़कर
वास्तविक मरूद्यान को ढूंढ
जीवन की कोमलता को
सत्य के दर्पण में
ढूँढने का प्रयास कर
कृत्रिमता स्वयम हट जाएगी
निर्मलता में डूबी
सरल मुस्कान गुनगुनाएगी
जीवन गौरवमय होगा;
और अधिक सुन्दर भी!!
सरलता में ही सौम्यता है
इस तथ्य को पहचान
ओ प्यारी मुस्कान !


Monday, August 20, 2012

मिथ्या आवरण हटा दो !

अनगढ़ पहेली को बूझना कठिन है ,
असंभव नहीं
ओ साकार छलावे !
तुझे पढकर ही दम लूंगी
हर अक्षर के बिखरते वर्ण को
हर टूटे फटे पृष्ठ को
यत्न से जोडकर
समझने का प्रयास
निरंतर करूंगी
करती रहूँगी
छटपटाते वर्ण
बिखरना चाहेंगे
शब्दों से मुक्त हो
उछटना चाहेंगे
होले से उन्हें पकड़
प्रेम से उन्हें जकड़
पुस्तक के पन्नों पर
प्यार से संजो दूंगी
छलावा तब रूष्ट हो
दूर चला जाएगा
अपने ही बंधन में
आप छला जाएगा
सत्य साकार हो
स्पष्ट हो जाएगा
सामने आएगा
प्यार बरसाएगा
खूब पढ़ा जाएगा
अनगढ़ ,अनबूझी पहेली तब
सरल हो जाएगी
पर बहुत सा समय
व्यर्थ ही गवाँएगी

ओ साकार छलावे से भरी
अनबूझ पहेली !
तुम स्वयं स्पष्ट हो जाओ
सत्य को विजयी बना दो
मिथ्या आवरण हटा दो


Thursday, July 5, 2012

भुई आंवला (country gooseberry)


 
भुई आंवले का छोटा सा पौधा होता है . यह बरसात के दिनों में खरपतवार की तरह हर जगह उगा हुआ नज़र आता है . इसकी पत्तियों की डंडी के नीचे बिल्कुल नन्हे नन्हे आंवले की तरह के फल जैसे लगे होते हैं . इसीलिये इस पौधे को भूमि आंवला या भू धात्री भी कहा जाता है .
           Liver या यकृत की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है . लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा . Bilurubin बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पढ़े को जड़ों समेत उखाडकर , उसका काढ़ा सुबह शाम लें . सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ bilurubin ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी .
      अगर वर्ष में एक महीने भी  इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी.
                    Hepatitis -B और C के लिए यह रामबाण है . भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें . ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी  बिलकुल ठीक हो जाती है .
                  कई बाज़ीगर भुई आंवला के पत्ते चबाकर लोहे के ब्लेड तक को  चबा जाते हैं . इसमें शरीर के विजातीय तत्वों को दूर करने की अद्भुत क्षमता है . मुंह में छाले हों तो इनके पत्तों का रस चबाकर निगल लें या बाहर निकाल दें .  . यह  मसूढ़ों के लिए भी अच्छा है और  मुंह पकने पर भी लाभ करता है . स्तन में सूजन या गाँठ हो तो इसके पत्तों का पेस्ट लगा लें पूरा आराम होगा . 
                                      जलोदर या ascitis में लीवर की कार्य प्रणाली को ठीक करने के लिए 5 ग्राम भुई आंवला +1/2 ग्राम कुटकी +1 ग्राम सौंठ का काढ़ा सवेरे शाम लें .  खांसी में इसके साथ तुलसी के पत्ते मिलाकर  काढ़ा बनाकर लें . यह किडनी के infections भी खत्म करती है . इसका काढ़ा किडनी की सूजन भी खत्म करता है . प्रदर या प्रमेह की बीमारी भी इससे ठीक होती है . 
                   पेट में दर्द हो और कारण न समझ आ रहा हो तो इसका काढ़ा ले लें . पेट दर्द तुरंत शांत हो जाएगा . ये digestive system को भी अच्छा करता है . शुगर की बीमारी में घाव न भरते हों तो इसका पेस्ट पीसकर लगा दें . इसे काली मिर्च के साथ लिया जाए तो शुगर की बीमारी भी ठीक होती है . 
             Pus cells बढने पर भी इसे लिया जा सकता है . खुजली होने पर इसके पत्तों का रस मलने से लाभ होता है . पुराना बुखार हो और भूख कम लगती हो तो , इसके साथ मुलेठी और गिलोय मिलाकर ; काढ़ा बनाकर , लें . रक्त प्रदर की बीमारी होने पर इसके साथ दूब का रस  मिलाकर 2-3 चम्मच प्रात: सायं लें. आँतों का infection होने पर या ulcerative colitis होने पर इसके साथ दूब  को भी जड़ सहित उखाडकर , ताज़ा ताज़ा आधा कप रस लें . Bleeding 2-3 दिन में ही बंद हो जाएगी .  




                                      

Saturday, June 30, 2012

ककडी (snake cucumber)


 
ककडी को संस्कृत भाषा में कर्कटी कहा जाता है . यह गर्मी की ऋतु में खूब पैदा होती है  और शरीर की गर्मी और उससे उत्पन्न व्याधियों को समाप्त करती है . इसकी लताएँ होती हैं .प्राचीन काल से ही इसका प्रयोग हमारे देश में होता आया है . प्राचीन ग्रन्थों में इसका वर्णन शाक के रूप में किया गया है . इसकी सब्जी खाने से हमारे शरीर को अनेकों लाभ पहुंचते हैं . अगर किसी भी बीमारी में और चीजों का निषेध हो तब भी इसकी सब्जी को खाया जा सकता है . यह सुपाच्य होती है .
                                           इसका छौंक लगाकर इसे पकाया और खाया जाना चाहिए . छौंक लगाने को संस्कृत में संस्कारित करना कहा जाता है ; अर्थात शाक के सभी दोषों को समाप्त करके उसके गुणों की अभिवृद्धि करना! छौंक ऐसा न लगाया जाए कि शाक के गुण ही समाप्त हो जाएँ .
                                         इसे मधुर रस से युक्त मन गया है ; अर्थात यह पित्त का शमन करती है , पाचन की कमी को ठीक कर देती है , acidity की समस्या को समाप्त कर देती है . पाचन ठीक से न हो रहा हो तो ककडी की सब्जी अवश्य खानी चाहिए . इससे पेट की सभी समस्याएँ ठीक हो जाती हैं . 1 ग्राम ककडी के बीजों के पावडर में 4 ग्राम मुलेठी का पावडर मिलाकर 500 ग्राम पानी मिलाकर रात को मिट्टी के बर्तन में भिगो दें . सवेरे इसका पानी छानकर पीने से acidity ,  के अल्सर और infections ठीक हो जाते हैं .
          यह मूत्रल है . यह किडनी की सफाई कर देती है . पेशाब की जलन और रुककर urine आने की समस्या ठीक हो जाती है .  प्यास अधिक लगती हो ककडी का सेवन कच्चे रूप में नियमित तौर पर करना चाहिए . ककडी को कच्चा सवेरे या फिर मध्यान्ह में ही करना चाहिए . रात्रि को ककडी ,खीरे , टमाटर और मूली आदि का प्रयोग करने से शरीर में वायु की अभिवृद्धि होती है ; अफारा आ सकता है और कफ बढ़ता है .
                  ककडी को कच्चे रूप में खाना हो तो नमक बुरककर न रखें . हाँ , नमक से छुआ छुआकर  खा सकते हैं . इससे स्वाद भी आ जाएगा , और ककडी के आवश्यक तत्व भी सुरक्षित रहेंगे . कच्ची शाक खाने के कुछ देर बाद भोजन खाएं . इससे शाक भी पूरा लाभ देता है ; अच्छे से पच जाता है और भोजन भी कम खाया जाता है , जिससे मुटापा भी नहीं बढ़ता . कच्चा पक्का भोजन साथ साथ लेने से पाचन की क्रिया में बाधा आती है और आवश्यक तत्व भली प्रकार सोखने में अवरुद्धता आती है . ककडी खाने के तुरंत बाद पानी न पीयें . दूध और ककडी विरुद्धाहार हैं .
                            अगर B.P. high होने की समस्या है ; तो ककडी रामबाण है . सवेरे खाली पेट कच्ची ककडी चबा चबाकर खाएं . नियमित रूप से ऐसा करने पर रक्तचाप ठीक होना प्रारम्भ हो जाता है . जलने पर कच्ची ककडी काटकर लगा दें . तुरंत आराम आ जायेगा . चेहरे पर झाइयाँ हों तो माजूफल , जायफल और ककडी घिसकर , पेस्ट बनाकर चेहरे पर उबटन की तरह लगायें . झाइयाँ ठीक हो जाएँगी .
                       इसके बीजीं की गिरी भी शीतल होती है . यह ठंडाई में डाली जाती है . इसके बीज भी मूत्रल होते है . ये शक्ति भी प्रदान करते हैं . इनके बीजों के पावडर को मिश्री में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लेने से कमजोरी दूर होती है . प्रमेह और प्रदर ठीक होते हैं और धातुरोगों का निवारण होता है .
                    Pregnancy में अफारा होने पर ककडी की जड़ों को  धोकर, कूटकर,, काढ़ा बनाकर , नमक मिलाकर लें . Pregnancy या delivery की pain से राहत पानी हो तो delivery के तीन महीने पहले से ही ;  3 ग्राम ककडी की जड़ + 1 कप दूध +1 कप पानी मिलाकर मंदी आंच पर पकाएं . जब आधा रह जाए तो पी लें . ऐसा करने से पीड़ा से तो राहत मिलेगी ही , शिशु भी स्वस्थ होगा .
                             
                           
                                         

Wednesday, June 27, 2012

जौ (barley)


        

 
जौ को यव और धान्यराज भी कहा जाता है . यह सभी अनाजों में सर्वश्रेष्ठ माना  गया है। यह एकमात्र बुद्धि वर्धक  अनाज है . किसी भी रोग के लिए यह निरापद है इसका सेवन बिना झिझके किसी भी रोग के लिए निरापद रूप से किया जा सकता है . यह बहुत  कम परिश्रम से ही बंजर या पथरीली भूमि पर भी  उग जाता है . यह वास्तव में अनाज नहीं बल्कि औषधि है .
                              भुने हुए जौ के आटे से बना हुआ सत्तू शीतल और पौष्टिक पेय होता है . मीठा और ठंडा सत्तू गर्मी के दिनों में पीने से पित्त शांत होता है और शीतलता मिलती है . मिश्री मिलाकर पीने से अधिक शीतलता मिलती है .
जौ  खांसी के लिए अचूक दवाई है . जौ  को जलाकर इसकी राख 1- 1 ग्राम  की मात्रा  में शहद के साथ सवेरे शाम चाटने से खांसी बिलकुल ठीक हो जाती है . इसके पौधे की राख को भी खांसी के लिए 1-1 ग्राम की मात्रा में लिया जा सकता है . श्वास रोगों में भी  यह राख शहद के साथ ली जा सकती है .
                         अगर इस राख को 1-1 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ लिया जाए तो पेशाब खुलकर आता है और किडनी की समस्या ठीक हो जाती है . शुगर की बीमारी में यह अनाज लिया जाए तो दवा का काम करता है . इस बीमारी के उपचार के लिए 10 ग्राम जौ +5 ग्राम तिल +3 ग्राम मेथी दाना ; इन तीनो को दरदरा कूटकर मिट्टी के बर्तन  में  रात को भिगो दें . सवेरे सवेरे इस पानी को छानकर पी लें . इससे गर्मी भी शांत होगी और पेशाब की जलन भी खत्म हो जाएगी . शुगर की बीमारी में जौ चने और गेहूँ की मिस्सी रोटी खानी चाहिए .इससे सभी खनिज , विटामिन, कैल्शियम और लौह तत्व भी भरपूर मात्रा  में मिल जाते हैं। इस रोटी को खाने  से कमजोरी भी दूर होती है
                    इसका दलिया रात को मिटटी के बर्तन में पानी में भिगो दें . सवेरे इसका पानी निथारकर पीने से शीतलता व शक्ति मिलती है . बचे हुए दलिए को ऐसे ही पका लें या फिर खीर बना लें . इससे ताकत बढती है।
                             जौ रक्तशोधक होता है . इससे त्वचा भी सुन्दर हो जाती है . जौ  के आटे को खाने से ही नहीं वरन  लगाने से भी चेहरे की सुन्दरता निखरती है . बारीक जौ के आटे में खीरे और टमाटर का रस मिलाकर चेहरे पर लेप करें . कुछ देर ऐसे ही रहने दें . बाद में धो लें . ऐसा कुछ दिन करने से चेहरा खिल उठेगा .
                    यवक्षार या जौ का क्षार हल्के मटमैले रंग का होता है . यह बहुत सी बीमारियों के लिए रामबाण है . इसे बनाना बहुत आसान  है . आधे पके हुए जौ के पौधों को उखाडकर उनके टुकड़े कर लें . इसको जलाकर राख बना लें . राख में पानी मिलाकर अच्छी तरह से हिलाएं . 10-15 मिनट के लिए रख दें . फिर से हिलाएं और  10-15 मिनट तक रख दें . ऐसा चार पांच बार करें . फिर ऊपर के तिनके निकाल कर पानी को निथारकर फेंक दें . नीचे के बचे हुए सफ़ेद रंग के गाढे द्रव को धीमी आंच पर धीरे धीरे पकाएं . जब यह काफी गाढ़ा हो जाए तो इसे सुखा लें . यही मटमैला सा पाऊडर यवक्षार कहलाता है . इसे  जौ  के बीजों को जलाकर भी प्राप्त कर सकते हैं .  इसकी 1-2 ग्राम की मात्रा शहद के साथ  लेने से खांसी और अस्थमा जैसी बीमारियों से छुटकारा मिलता है . पानी के साथ लेने पर पथरी और किडनी की समस्याओं से राहत मिलती है . भूख कम लगती हो तो आधा ग्राम यवक्षार रोटी में रखकर खाएं . यह कई तरह की दवाओं में प्रयोग में लाया जाता है .
                   इस अनाज को पवित्र माना गया है . हवन में में यव (जौ ) और तिल डाले जाते हैं . इससे वातावरण के बैक्टीरिया आदि समाप्त हो जाते हैं . इसे खाने से शरीर के विजातीय तत्व खत्म हो जाते हैं या बाहर निकल जाते हैं . आजकल के प्रदूषित वातावरण में प्रदूषित खाद्यान्नों का प्रभाव कम करना हो तो जौ का सेवन अवश्य ही करना चाहिए . इसके निरंतर सेवन से कई प्रकार की अंग्रेजी दवाइयां लेने से भी बचा जा सकता है .
               



    

Wednesday, June 13, 2012

नव्य शिशु !














आत्मजा के आत्मज की,
 निर्मल  मुस्कान |
मन को स्पन्दित कर,
छू जाती कोमल प्राण |
भंगिमा भरी चेष्टाएँ,
धीमे से बुदबुदाएं |
आँखों का इशारा पढ़,
अधरों के कोने पर,
स्मित का कम्पन,
लुभाता है मेरा मन |
नन्हे से अरुणिम कर,
पग के संग ठुमक ठुमक,
थिरक थिरक  नृत्य  कर,
आहलादित करते हर पल |
हल्का सा क्रंदन,
कहीं बढ़ न जाए !
लो प्यारी सी थपकी,
निंदिया तुम्हें बुलाए  !!






Tuesday, April 24, 2012

मेरे प्रोफेसर !

भाई ऊपर वाले कमरे में शेव बना रहे थे ; उन्हें ज़ल्दी तैयार होकर दूल्हा जो बनना था ! मैं उन्हें चाय पकडाने के लिए ऊपर पहुंची ही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई . माँ ने दरवाज़ा खोला . मैं ऊपर से देख रही थी . दरवाज़े पर मेरे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर खड़े थे और मेरे बारे में पूछ रहे थे . में हतप्रभ सी देखती ही रह गई !
                    मैंने अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर साहब को भाई के विवाह का निमंत्रण पत्र देकर उन्हें बड़े आग्रहपूर्वक भाई के विवाह में आने का न्यौता अवश्य दिया था . मुझे इस बात का भी पूरा भान था कि कक्षा की उनकी सबसे चहेती शिष्या में ही थी . लेकिन वे सचमुच विवाह में सम्मिलित होंगे ;  ऐसा विचार कल्पनातीत था .
            " देख ! तेरे प्रोफ़ेसर आये हैं ." माँ की आवाज़ से मेरी तन्द्रा टूटी . भाई को चाय पकड़ाकर , लपककर में नीचे गई . मैंने उन्हें नमस्कार किया और घर के सभी मेहमानों से उनका परिचय कराने लगी . मेरे बड़े ताउजी के बेटे भी बारात में जाने के लिए निमंत्रित थे . वे भी बैठक में ही बैठे थे . जैसे ही मैं उन दोनों का परिचय करने के लिए बढी ; वे दोनों पूर्व परिचित की मुद्रा में नजर आने लगे . मेरे अंग्रेजी के प्रोफ़ेसर आगे बढकर मेरे ताउजी के बेटे को नमस्कार कर रहे थे और वे प्रसन्न मुद्रा में उनका अभिवादन स्वीकार कर रहे थे .
                         मैंने अपने प्रोफ़ेसर साहब को नमस्कार किया और उनका परिचय अपने ताउजी के बेटे से करने लगी , " सर! ये रमेश भाईसाहब है ; दिल्ली विश्वविद्यालय ..........." 
                        मैं अपना वाक्य पूरा भी न करने पाई थी कि मेरे ताउजी के बेटे बोल उठे ," अरे भई, ये हमारे ही चेले हैं . आज तेरे प्रोफेसर हैं तो क्या हुआ ? पढ़ाया तो हमीं ने है ." ये कह कर रमेश भाईसाहब ठहाका लगा कर हंस पड़े . मेरे प्रोफेसर साहब भी मुस्कुरा रहे थे बोले , " अजीब इत्तेफाक है ; मैं तुम्हारा प्रोफेसर ,  और तुम्हारे भैया मेरे प्रोफेसर !" 
             आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता से मैं बोली ," सर ! ये बड़े संयोग की बात है . आप कृपया भैया के पास बैठें . मैं आपके लिए जलपान लाती हूँ . "
            मैंने उनके सामने जलपान रखा और फिर माँ के साथ काम में लग गई . भाई की बारात दो घंटे बाद ही रवाना होनी थी . काम बहुत थे , और समय कम था . मैंने सोचा प्रोफेसर साहब बारात में तो साथ ही जायेंगे . फिर उन्हें बातचीत करने के लिए रमेश भाईसाहब भी मिल गए हैं ; इसलिए उनके बोर होने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता . फिर मुझे तैयार भी होना था . मैं अन्दर कमरे में चली गई . 
                   पांच दस मिनट बाद ही प्रोफेसर साहब ने मुझे बुलवाया . वे भाई के विवाह के नाम का शगुन मेरे हाथ पर रखते हुए बोले ,"यह अपनी माताजी को दे देना . मैं चलता हूँ ."
                    मैं सकपका गई . मुझे बहुत अजीब सा लगा . मैंने कहा ," सर!  आप ऐसे कैसे जा सकते हैं ? भाई की बारात में तो साथ जाना ही है आपको ."
                 वे रुकने को तैयार नहीं थे ,  बोले ," अभी तो मुझे कोई काम है . बारात में नहीं जा सकूंगा . ठीक है ; मैं चलता हूँ . "  वे कहकर चल भी दिए और मैं अवाक् सी उन्हें जाते देखती रही .
                         मुझे ऐसा लगा कि शायद उनके स्वाभिमान को ठेस पहुंची . शायद उन्होंने सोचा कि अपने सबसे अच्छे विद्यार्थी के यहाँ समारोह में सम्मिलित होने का उनका फैसला गलत था . शायद उन्होंने सोचा कि मैंने उनका सम्मान नहीं किया . या फिर शायद वे अपने प्रोफेसर से झेंप रहे थे . 
                    कुछ क्षण तो मैं दरवाजे पर ही खडी रही . फिर मैंने सोचा कि सर से बाद में पूछ लूंगी कि कोई गलती तो नहीं हुई मुझसे ? मैं उनसे माफी मांग लूंगी .  ऐसा सोचकर मैंने शगुन के रूपये माँ को थमाए और तैयार होने में लग गई . 
                       विवाह के बाद जब लैक्चर रूम में उन्होंने लैक्चर दिया तो मुझे ऐसा लगा कि शायद वे मुझसे अनमने से हैं . मैंने सोचा तो था कि उनसे अपनी गलती पूछूंगी ; माफी मांग लूंगी ; आदि आदि ,  लेकिन साहस  न कर पाई . 
              आगले दिन मैं सर के लिए विवाह की मिठाई लेकर आई . मैंने कहा , " सर! माँ ने आपके लिए कुछ मिठाई भेजी है ; प्लीज़ ले लीजिये ." उन्होंने मुझे कुछ अजीब सी मुस्कुराहट देते हुए मिठाई ले ली . 
                         मैं उनसे कुछ भी पूछ पाने की हिम्मत न जुटा पाई . परन्तु अगर वे मुझसे नाराज़ हुए थे तो मुझे सचमुच इस बात का अफ़सोस है . आज अगर सर मुझे कहीं मिल जाएँ, तो मैं जरूर पूछ सकती हूँ कि वे मुझसे नाराज़ तो नहीं हैं ना ? क्यों सर ? आप पढ़ रहे हैं क्या ?