Wednesday, February 29, 2012

मिर्गी (epilepsy)

मिर्गी की बीमारी का अंग्रेजी दवाइयों से कंट्रोल तो हो जाता है , लेकिन cure नहीं होता . इसके लिए अंग्रेजी दवाइयां लम्बे समय तक ली जाएँ तो memory कमजोर हो जाती है .
                  ऐसे रोगी सभी तरह के प्राणायाम करें . खास तौर पर अनुलोम-विलोम , भ्रामरी और उद्गीथ प्राणायाम लगातार करते रहने से यह बीमारी ठीक हो जाती है . मेधावटी   (इसमें ब्राह्मी , शंखपुष्पी , वचा , गाजवान, अश्वगंधा आदि होते हैं )  की एक एक गोली सवेरे शाम लेने से अद्भुत लाभ होता है और यह बीमारी पूरी तरह से cure हो जाती है . बड़े लोग दो दो गोली ले सकते हैं .
                                          पीपल या बड़ की जटा या दाढी को उबालकर ले सकते हैं . मेधाक्वाथ का एक चम्मच का काढ़ा सवेरे शाम ले सकते हैं ( अगर मेधावटी न ले रहे हों ) . सारस्वतारिष्ट का प्रयोग कर सकते हैं . तीन से पांच बादाम (खाली पेट )पीसकर ले सकते हैं . अखरोट लेना भी लाभप्रद रहता है . 
                 अंगूठे के top पर pressure से दबाते रहें . इसी तरह ring finger के top पर दबाना भी इस रोग से मुक्ति पाने में सहायक रहता है . 

Monday, February 27, 2012

गठिया (arthritis)

 गठिया के रोग में हरेक जोड़ पर सूजन आ जाती है और गाँठ बन जाती है . R.A factor 20 से ऊपर चला जाता है , E S R 15 से ज्यादा हो जाता है  और uric acid 7 से ऊपर हो जाता है . कभी कभी तो हड्डियाँ भी टेढ़ी मेढ़ी हो जाती हैं . इसके लिए एक चम्मच मेथी रात को भिगोकर या फिर अंकुरित करके सवेरे सवेरे खाएं . इसके अलावा हल्दी +मेथी +सौंठ + तिल बराबर मात्रा में मिलाकर भी  एक एक चम्मच सवेरे शाम लिया जा सकता है  . Acidity , ulcer या piles की समस्या हो तो यह मिश्रण कम मात्रा में लें .
                                                   लहसुन के छोटे छोटे टुकड़े करके सवेरे खाली पेट ले सकते हैं . मोथा घास की जड़ का पावडर एक एक चम्मच लेने से तो अदभुत लाभ होता है . Aloe Vera जूस चार चार चम्मच सवेरे शाम लेने से भी गठिया में बहुत आराम आता है . Aloe  Vera जूस या गूदा सभी के लिए कारगर रहता है ; चाहे कोई उष्ण प्रकृति के व्यक्ति हों या फिर  शीत प्रकृति के .
                                   इस बीमारी में बहुत सी औषधियां काम में लाई जाती हैं , जैसे कि पुनर्नवादि मंडूर , वृहतवाद  चिंतामणि (1-2 ग्राम ) , सिंहनाद गुग्ग्लु  , त्रिद्शाम गुग्ग्लु , प्रवालपिष्टी , मुक्ताशुक्ती, दशमूल क्वाथ , पीडान्तक क्वाथ आदि .  निर्गुन्डी का रस भी इसमें बहुत लाभदायक होता है .
                ज्यादातर गठिया की बीमारी में योगराज गुग्ग्लु +चन्द्रप्रभावटी+ शिलाजीत रसायन की एक एक गोली दिन में दो बार या तीन बार दी जाती है . इससे ही गठिया में बहुत आराम आ जाता है .
             इस बीमारी में खट्टी और भारी चीज़ों से परहेज बताया जाता है . आधा घंटा कपालभाती और अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से जल्द ही आराम आना प्रारम्भ हो जाता है . Ring finger की top पर दबाने से और हथेलियों के पीछे अँगुलियों के बीच के channels की मालिश करने से भी अच्छे परिणाम आते हैं .

कील-मुंहासे

पन्द्रह बीस वर्ष की उम्र में चेहरे पर अक्सर कील मुंहासों की समस्या आ घेरती है . इसे ठीक करने के लिए जरूरी है  कि पानी की मात्रा  बहुत अधिक ली जाए . दिन में कम से कम तीन चार लिटर पानी अवश्य लेना चाहिए . सुबह उठते ही एक गिलास गुनगुना पानी पीना सर्वोत्तम रहेगा . हरी सब्जियां अधिक खानी चाहिएँ. सुबह खाली पेट लौकी का जूस (कडवा न हो ) +आंवले का रस ले लें . नमक कम खाएं.  गर्म मसाले न लें . समय पर भोजन करें .
             सवेरे सवेरे नीम के कोमल पत्ते चार-पांच खा लें . ऊपर से पानी पी लें . चिरायता या गिलोय का पानी लेने से भी कील मुंहासे ठीक होते हैं . Aloe Vera का जूस पीयें और इसका गूदा चेहरे पर मलें . इसका गूदा रूखी त्वचा के लिए भी अच्छा है और चिकनी त्वचा के लिए भी .
                  खदिरारिष्ट और महामंजीठारिष्ट ; दोनों में से किसी भी आरिष्ट का सेवन लाभदायक है .  कायाकल्प क्वाथ लें या कायाकल्प वटी दो दो गोली सवेरे शाम लें . कान्तिलेप को शहद , कच्चे दूध या aloe vera  के गूदे में मिलाकर चेहरे पर लगायें . इसके अतिरिक्त मसूर की दाल के पावडर का लेप , केले , खीरे या पके पपीते के लेप से भी चेहरे की त्वचा ठीक हो जाती है .
                           तनावमुक्त रहें . प्राणायाम अवश्य करें . अनुलोम विलोम-प्राणायाम , भ्रामरी , उद्गीथ , कपालभाति आदि प्राणायाम तो सवेरे 15 मिनट अवश्य ही करें .




सूजन होने पर ..........

हाथों पैरों में सूजन हो या घुटनों में ; यह इस बात का संकेत है कि infections हो गये हैं . पैरों में सूजन इस बात को इंगित करता है कि शायद किडनी ठीक नहीं हैं . थायराइड की समस्या से भी सूजन हो सकती हैं . अगर immune system ठीक हो जाए तो सूजन ठीक हो सकती है . इसके लिए अनुलोम विलोम और कपालभाति प्राणायाम नियमित रूप से करें
                                                  सूजन होने पर water retention को कम करने के लिए , नमक बिलकुल कम खाएं या फिर कुछ दिनों के लिए नमक बंद ही कर दें . जौ का प्रयोग करें . जौ का पानी , दलिया , आटा, रोटी या भुने हुए जौ खाएं . सूजन को कम करने के लिए गोखरू , पुनर्नवा , वरुण छाल , नि:शोथ , मकोय आदि जड़ी बूटी प्रयोग में लाई जाती हैं . गोखरू को उबालकर उसका पानी लें , पुनर्नवा की जड़ का काढ़ा लें , पुनर्नवारिष्ट भी ले सकते हैं , या फिर पुनर्नवामंडूर की एक एक या दो दो  गोली अपने वजन व उम्र के अनुसार लें .  वरुण की छाल का काढ़ा भी बहुत उपयोगी रहता है .
                             इसके अतिरिक्त किडनी के कारण सूजन है तो सर्वक्ल्प क्वाथ या वृक्कदोषहर क्वाथ भी ले सकते हैं . गोक्षरादी गुग्ग्लू और चंद्रप्रभावटी का प्रयोग कर सकते हैं . सवेरे नीम के पत्तों का रस व शाम को पीपल  के पत्तों का रस लेने से भी किडनी के रोगों में आराम आता है . खाली पेट हो तब हथेली के बीच के point को दबाएँ . छोटी अंगुली के top पर दबाने से भी किडनी के रोग जल्दी ठीक होते हैं . सभी प्रकार के प्राणायाम करते रहने से तो बहुत जल्द ही सूजन उतरनी प्रारम्भ हो जाती है . 

आँखों के लिए ..........

आँखों में जलन हो , थकन हो ,  काला मोतिया (ग्लूकोमा ) हो , नजर कमजोर हो, तो सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर मुंह में पानी भरें और दोनों आँखों में पानी के छींटे मारें . फिर मुँह का पानी बाहर निकाल दें . अनुलोम -विलोम प्राणायाम प्रतिदिन 15-15 मिनट नियमपूर्वक करें . ताज़े  आंवले के रस का सेवन करें . ताज़े आंवले के रस की दो दो बूँद आँखों में डालने से भी नेत्रज्योति बढती है .
                                                               ताज़ा आंवला न मिले तो 200 ग्राम आम्लिकी रसायन (concentrated आंवले के रस का सूखा पावडर ) +20 ग्राम सप्तामृत लौह + 10 ग्राम मुक्ताशुक्ति भस्म को मिलाकर एक एक ग्राम सवेरे शाम लें .इसे शहद के साथ लिया जा सकता है .  एक चम्मच सफ़ेद प्याज का रस +एक चम्मच अदरक (छिलका उतार कर) का रस +एक चम्मच नीम्बू का रस +तीन चम्मच शहद मिलाकर रख लें . सभी रस स्वच्छता और शुद्धता से छानकर लेने हैं . इस की एक एक बूँद रात को सोते समय आँख में ड़ाल लें . कभी कभी हथेली का First finger और middle finger के बीच का point (खाली पेट होना चाहिए)  दबा लें . आँखों के व्यायाम के लिए;  पहले बहुत दूर देखें , फिर एकदम बिलकुल पास देखें .फिर से बहुत दूर देखें . इसी तरह कई बार करें . इस प्रक्रिया को प्रतिदिन नियमित रूप से करें .

Tuesday, February 14, 2012

दीपक क्यों बुझ गया ?

रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला में जब मैं शशि खुराना मैडम से मिलने गई तो मुस्कुराते चेहरे से उन्होंने मेरा अभिवादन स्वीकार किया . " तो कल चंडीगढ़ जाने की तैयारी कर ही ली आपने ?" कहते हुए उन्होंने मुझे कुर्सी पर बैठने का इशारा किया .
 "हाँ . बिटिया के पास जाऊँगी तो मुझे भी अच्छा लगेगा ; और वह भी खुश हो जायेगी ."
 " चलो जैसे आप और बच्चे खुश रहें ; वैसे ही करना चाहिए . अब पता नहीं कब मिलोगी ?"
      मैंने कहा ," आप ऐसा क्यों कहती हैं ? घर तो आस पास ही हैं . जब दिल किया , मिलने चली आऊँगी ."
 थोडा उदास होते हुए वे बोलीं ," किसके पास टाइम होता है ? कोई किसी से खास तौर पर घर पर मिलने नहीं आता . ये तो स्कूल ही है ; जहाँ हर रोज़ मिल लेते हैं . "
 मैं इस बात से काफी हद तक सहमत थी . मैंने कहा," कहती तो आप ठीक ही हैं ; लेकिन फिर भी समय निकालकर आपसे मिलती जरूर रहूँगी ."
  उन्होंने मुस्कुराकर मेरा हाथ पकड़ा . बच्चों को अपना खूब खूब आशीर्वाद और प्यार देने के लिए  कहा . मैं उनसे विदा लेकर विद्यालय के आफिस में आकर अपने बाकी काम निपटाने में व्यस्त हो गई .
                                      अब अचानक वे संसार से ही विदा हो जायेंगी ; यह तो स्वप्न में भी कल्पना नहीं की थी . बहुत जबर्दस्त धक्का लगा , जब बजाज मैडम ने बताया कि शशि खुराना मैडम इस दुनिया में नहीं रही .
                              ऐसा कैसे हो गया ! अब तक विश्वास ही नहीं हो रहा . कहीं मैंने गलत तो नहीं सुन लिया ? शाम को दोबारा बजाज मैडम को फोन किया तो उन्होंने बताया कि अमुक मंदिर में क्रिया की तिथि भी निश्चित हो चुकी है .
       मैं तो जब से इस विद्यालय में आई थी , तभी प्रथम दिन से ही उनके स्नेह की पात्र बन गई थी . अपने मन की बहुत सी बातें वे किया करती थी . पिछले विद्यालयों की , अध्यापिकाओं की , हमारी कुछ परस्पर मित्र अध्यापिकाओं की , या फिर वे जहां जहां घूमने गईं , अपने बच्चों की , मेरे बच्चों की ;   स्कूल से वापिस घर की ओर जाते हुए अक्सर यही बातें होती थी . अक्सर वे हमारे लिए कभी गुजरात के थेपले लाती और कभी किसी अन्य प्रदेश की मिठाई . वे कहतीं ," मेरे husband के tour जगह-जगह लगते  रहते हैं . तुम सब भी इन मिठाइयों का स्वाद चखो . बाद के दिनों में तो वे अपनी प्रयोगशाला में ही लंच कर लेती थी . स्टाफ रूम ऊपर था और रसायन प्रयोगशाला नीचे थी . ऊपर नीचे चढने उतरने में उन्हें दिक्कत होती थी .
                       श्रीनाथद्वारे के मंदिर में एक बार उनका जाना हुआ . तब वे वहां से प्रसाद लाई और एक बहुत सुन्दर श्रीनाथजी की छोटी सी प्यारी प्रतिमा भी मुझे दी . मैंने उसे अब तक अपने मंदिर में रखा हुआ है . मैं उनसे अक्सर कहती थी कि मंदिर में वह प्रतिमा मुझे उनकी याद दिलाती रहेगी . वे बड़ी खुश होती थी यह सुनकर !  वे कहती थी ," चलो किसी बहाने तो मुझे याद करोगी ."
                   रिक्शा में जब हम साथ साथ बैठते , तो मेरा हाथ उनके हाथ को स्पर्श करता . ऐसा लगता मानो हाथ तप रहा हो . मुझे अच्छा नहीं लगता था कि उन्हें निरंतर हल्का बुखार बना रहे . मैं उनके पीछे पड़ी रहती थी ," शशि मैडम आप गिलोय क्यों नहीं पीती ? उससे बुखार बिलकुल ठीक हो जाएगा ."
                वे मुस्कुराती हुई कहती ," आप गिलोय मंगवा दो . फिर पी लूंगी ."
   मैं रामनरेश (लैब असिस्टैंट ) के पीछे पड़ पड़ कर उनके लिए गिलोय मंगवाती . अगले दिन पूछती ," आपने गिलोय पीयी ?"
   वे मुस्कुरा भर देती . मुझे लगा कि इनका बुखार ऐसे तो ठीक होगा ही नहीं .  मैं एक दिन खास तौर पर उनके साथ उनके घर गई . उनकी बेटी घर में ही थी . मैंने उससे शिकायत लगाई," बेटे ! तुम्हारी मम्मी बिलकुल भी अपना ध्यान नहीं रखती हैं . इन्हें कब से हल्का बुखार चल रहा है ! गिलोय लेने के लिए कह रही हूँ . ये सुनती ही नहीं हैं . तुम कुछ करो ."
           उनकी बेटी भी बहुत चिंतित थी . उसने मेरी बात से सहमति जताई . वह बोली ," आंटी! ये मेरी बात भी नहीं मानतीं . परन्तु आप मुझे बताइए कि गिलोय किस तरह से देनी है ? मैं इन्हें पिलाऊंगी गिलोय !"
     शशि मैडम हंसने लगी . बोली ," दोनों मिलकर मेरे पीछे पडोगी ; तो कहना मानना ही पड़ेगा ."
   अगले दिन उन्होंने मुझे बताया कि अब हर रोज़ उनकी बेटी उन्हें डांट लगा लगाकर गिलोय पिलानेवाली है . मुझे हंसी आ गई .
       आठ दस दिन के बाद उनके हाथ को मैंने छू कर देखा तो बुखार नहीं था . वे भी खुश थी . मुझे अच्छा लगा कि उनका बुखार उतर गया है . उन्होंने कहा ," आपने मेरी बेटी ऐसा मेरे पीछे लगाया कि दिन रात वह मेरी पूरी तरह सेवा करती रही . " मैंने कहा ," बस आपकी किडनी की परेशानी ठीक हो जाए तो आप पूरी तरह स्वस्थ हो जाओगी ." वे मुझसे पूर्णतया सहमत थीं .
              एक दिन अचानक वे washroom में गिर गईं . तब हम सभी को उनके बारे में बहुत चिंता हो गई . सभी ने उन्हें कुछ दिनों पूर्ण विश्राम लेने की सलाह दी . लेकिन वे अगले दिन ही फिर विद्यालय में आ गईं . उन्हें लगता था कि विज्ञान के विद्यार्थियों का पढाई का हर्जा होगा .कभी भी वे अधिक छुट्टियाँ नहीं लेती थीं  . उनके चेहरे पर हल्की सूजन भी आने लगी थी . लेकिन वे कहती थीं कि उन्हें कुछ नहीं हुआ है .
                 बारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों की प्रयोग की वार्षिक परीक्षा सोमवार को होनी थी . लेकिन उससे तीन चार दिन पहले ही उनकी तबीयत काफी खराब हो गई . फिर भी अस्पताल में भर्ती होने से वे मना करती रही . उनका कहना था कि बच्चे उनके बिना परीक्षा कैसे देंगे ? बहुत मनाने पर इस शर्त पर वे अस्पताल में दाखिल हुई कि सोमवार को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल जायेगी . लेकिन वो दिन आने से पहले ही दीपक बुझ गया .
                    इतनी कर्तव्यनिष्ठ, अनुराग से परिपूर्ण , सौम्य अध्यापिका को परमात्मा ने क्यों हमसे छीन लिया ? उनकी आत्मा को भगवान शांति प्रदान करें और परमधाम में स्थान दें ; बस यही प्रार्थना है .
           



Monday, February 13, 2012

जब मैंने चोरी की !

दादी की तेरहवीं थी . मैं चतुर्थ कक्षा की छात्रा थी . घर में पगड़ी की रस्म चल रही थी . हम बच्चे घर में बहुत बोर हो रहे थे . हमारी तरफ किसी का विशेष ध्यान भी नहीं था . मेरे ताऊजी की बेटी कान्ता ने सुझाव दिया कि घर से बाहर जाकर कुछ देर घूम आते हैं . वह मुझसे डेढ़ साल बड़ी थी और पंचम कक्षा की छात्रा थी . मुझे उसकी बात पसंद आई . हम घर से बाहर जाकर इधर उधर घूमते रहे .
                                                       कुछ देर बाद कुछ खाने का मन किया . कान्ता को शरारत सूझी . बोली ," सामने हलवाई की दुकान है . उसकी बड़ी परात में नमकपारे रखे हैं . तू नीचे खडी होकर चुपके से नमकपारे ले आ . किसी को भी पता नहीं चलेगा ." मुझे भी यह बात अच्छी लगी . किसी को पता नहीं चलेगा और नमकपारे भी खाने को मिलेंगे . लेकिन डर लग रहा था . मैंने कहा," कोई पकड़ लेगा तो कितना बुरा लगेगा . चल घर वापिस चलते हैं ."   कान्ता ने हौसला बढाते हुए कहा ," मैं तेरे पास ही तो रहूँगी . कोई देखेगा तो तुझे बता दूंगी . तू चुस्ती से नमकपारे उठा कर, फटाफट मुझे पकड़ा दियो ."
                                                                          यह काम रोमांच से परिपूर्ण था . कान्ता तो साथ थी ही . मुझे भी पूरा जोश आ गया . लपककर मैं , नमकपारे की परात के नीचे वाले, ऊंचे से बड़े पत्थर पर चढ़ गई और फटाफट एक तरफ के नमकपारे मुट्ठी में उठाये दूर तक दौड़ गई . कान्ता मेरे पीछे-पीछे भागी भागी आई . वह बहुत खुश थी . मेरे हाथ से आधे नमकपारे उसने लिए . हम दोनों ने खूब मज़े लेकर नमकपारे खाए .
              कान्ता ने कहा ," ये तो बड़ी मजेदार बात है . पैसे भी नहीं देने पड़े ; और मुफ्त में चीज़ भी खा ली . किसी को कुछ पता भी नहीं चला . "  मैं भी बड़ी खुश थी .   "हाँ कान्ता ! मज़ा तो बहुत आया ." मैंने कहा .
  कान्ता ने सामने देखा .फलवाले की दुकान में  एक बड़े से झाबे में बड़े बड़े संतरे रखे थे . रसीले संतरे देखकर कान्ता के मुंह में पानी आ गया . वह बोली ," देख कितने सुन्दर और रसीले संतरे हैं . एक भी मिल जाए तो मज़ा आ जायेगा ." मुझे ये बात कुछ खास पसंद नहीं आई . मैंने कहा ," नहीं कान्ता ! हम संतरे नहीं चुरायेंगे ."      कान्ता मुझे समझाने लगी ," यह चोरी थोड़े ही है . हम तो बच्चे हैं . बच्चे कोई एक चीज़ ले भी लें तो कोई बुरा नहीं मानता . तू तो छोटी सी है . चुपके से एक संतरा ले आ . संतरे वाला तुझे देख भी लेगा , तो बच्चा समझ कर छोड़ देगा . जा जल्दी से उठा ले ."  मुझे लगा कि नमकपारे उठाते समय भी तो किसी ने नहीं देखा था . कोई खास ध्यान तो देता नहीं है . चलो, एक संतरा उठा ही लिया जाए .
                      कान्ता वहीं खडी रही . मैं चुपके से आगे बढी और एक संतरा उठाया ही था; कि झटाक से एक भारी हाथ, मेरे छोटे से हाथ पर पड़ा और संतरेवाले ने मुझसे संतरा छीन लिया . उसने गुस्से में एक जोर का करारा थप्पड़ मेरे गाल पर रसीद कर दिया . वह साथ में कहे जा रहा था कि अपने छोटे छोटे बच्चों को, लोग चोर बना देते हैं . शर्म भी नहीं आती .
                मुझे बहुत बुरा लगा . कान्ता वहीं खडी रही . मेरे पास आने पर वह चुपचाप मेरे साथ साथ चलने लगी . मेरा गाल तो लाल था ही आँख भी लाल हो गयी थी . जब हम घर पहुंचे तो सभी मेहमान जा चुके थे . माँ ने मेरे लाल गाल और लाल आँख देखी तो वे बड़ी परेशान हुई . वे मुझे अन्दर कमरे में ले गई . वहाँ मेरे बड़े भाई भी बैठे थे . माँ ने वहाँ ले जाकर पूछा ,"क्या हुआ ? आँख और गाल लाल कैसे हो गए ?"
           मैं चुप खडी रही . कान्ता पीछे खडी थी . वह बोली ," ये संतरा चुरा रही थी . संतरे वाले ने इसकी पिटाई कर दी ."
 मैंने कान्ता को देखा . मुझे बहुत गुस्सा आया उस पर ! लेकिन वह कह तो सच ही रही थी . मैं नीचे, जमीन की ओर देखने लगी . भाई और माँ के सामने आँख उठाने की हिम्मत बिलकुल नहीं हो रही थी .
                                                                                      माँ ने कान्ता को बाहर भेज दिया . उसके बाद गुस्से से डांटते हुए बोली ," बता , चोरी किसने सिखाई तुझे ?"  भाई भी मेरे पीछे पड़ गए बोले , " किससे सीखा चोरी करना ? बता किससे सीखा ?"   वे झकझोरते हुए मुझसे पूछते जा रहे थे . मैं बहुत परेशान थी कि किसका नाम लूं . मुझे तो पता ही नहीं था कि किससे चोरी सीखी . मैंने तो कांता के कहने पर और अपनी मर्जी से ही यह सब किया था . नाम लूं तो किसका ? मैंने सोचा कि कैसे पीछा छुडाऊँ ? एक तरकीब सूझी; कि झूठमूठ बता देती हूँ कि किससे सीखी चोरी, तो पीछा छूट जाएगा . मैंने कहा," मैंने एक आदमी से चोरी करना सीखा ."  माँ और भाई यह सुनकर बड़े हैरान और परेशान हुए . उन्होंने उस समय मुझे समझाया कि चोरी करना गलत बात है . बहुत अपमान की बात है . अच्छे घरों के बच्चे चोरी नहीं करते . जो चीज़ लेनी है , वह पैसे देकर ही लेनी चाहिए .
                                                               मैंने उनसे वायदा किया कि ऐसा ही करूंगी . तब जाकर मेरा पीछा छूटा . वैसे सबक तो मैं संतरेवाले से ही सीख गई थी . मैंने मन ही मन यह भी निश्चय कर लिया था कि कान्ता जैसे धोखेबाजों से बचकर रहूँगी .

Sunday, February 12, 2012

. निराला फेरीवाला !

शाम को पांच बजे के बाद जब हम खेलने के लिए गली में निकलते , तो आवाज़ आती ,"चना जोर गरम !चना जोर गरम !!" . एक सौम्य व्यक्तित्व वाला स्वस्थ व्यक्ति सफ़ेद टोपी सिर पर लगाये , कंधे पर बड़ी सी पोटली लटकाए , मंदी चाल से चलता हुआ, गली के अन्दर आता . हम सभी उसके चारों और घेरा लगा लेते . कोई इकन्नी के चने खरीदता , तो कोई दो आने की मीठी खील . उसके पास फीके चने भी होते थे और हरे हरे नमकीन चने भी . मीठी खील के अतिरिक्त वह परमल (मक्की के दाने जो कि मुरमुरे की तरह भुने हुए होते हैं ) भी रखता था और मूंगफली भी  . उसके पास, पोटली में ही, एक छोटी तराजू और बाट भी होते थे .
                                                     कोई बच्चा चने खरीदता तो वह तुरंत तराजू में चने तौलता और तराजू के पलड़े में ही चने फटक कर , फूंक मार कर , छिलके उड़ा देता . उसके बाद एक कागज़ के लिफाफे में चने डालकर ,बड़े प्यार से बच्चे के हाथ में थमा देता . बच्चे उससे चीज़ें खरीदकर बहुत खुश होते थे . मंगलवार को तो बड़े मज़े आते थे . जो भी बच्चा उस फेरीवाले को कहता ,"सीताराम, राम ! राम !!"  ; उस बच्चे को ही थोड़ी सी मीठी खील , प्रसाद के तौर पर वह फेरीवाला देता . मंगलवार को तो उसके आते ही कई नन्ही हथेलियाँ उसके सामने होती . सभी बच्चे बोल रहे होते ,"सीताराम , राम ! राम !!". वह बहुत खुश होता;  बच्चों के मुंह से यह सुनकर , और मीठी खील बांटकर !
                                    बहुत से दिन बीत गए . एक दिन वह नहीं आया . दूसरा दिन बीता और फिर तीसरा दिन . उसके बाद वह आया ही नहीं . हम बच्चे तो धीरे-धीरे उसे भूल ही गये थे . एक दिन मुझे उसके बारे में पता चला कि उसे दिल का दौरा पड़ा था ; जिससे उसकी आकस्मिक मृत्यु हो गई . बड़ा दु:ख हुआ यह जानकर ! यह भी पता चला कि वह दिन में बिरला मिल में मजदूर के तौर पर कार्यरत था . बाद में शाम को वह चने आदि बेचकर अतिरिक्त आमदनी करता था . आज के समय में तो शायद किसी भी फेरीवाले का ऐसा व्यक्तित्व पाया जाना  कठिन है . उस समय में भी वह निराला ही व्यक्ति था . अब भी मुझे वह घनी मूछोंवाला, रौबीला , आत्मविश्वास और आनन्द से दमकता मुखमंडल ; भुलाए  नहीं भूलता !

Saturday, February 11, 2012

एक अविस्मरणीय अनुभव !

अपने बोरी बिस्तर के साथ हमारे पूरे कालेज की छात्राएं , हजरत निजामुद्दीन के गर्ल्स गाइड्स कैम्प परिसर में डेरा जमाने लगीं . आठ - आठ छात्राओं को एक बड़ा टैन्ट दिया गया था . इसी में अपना सभी सामान करीने से लगाकर दिन रात पन्द्रह दिन गुज़ारने थे . हरेक टैन्ट में एक बाल्टी और एक परात(आटा गूंधने की बड़ी थाली ) दी गई थी . सर्दी के दिन थे . जमीन पर दरियाँ बिछी हुई थी .एक घंटे बाद ही माननीया श्रीमती गौरी को हमारे टैंटों का मुआयना करने के लिए आना था . हर कोई अपना टैन्ट सबसे सुन्दर दिखाना चाहता था . हमारे ग्रुप ने अपनी रजाईयां इस तरह से तह करके लगाईं कि सोफा सैट नज़र आने लगा . उस के ऊपर सुन्दर सी चादर बिछा दी . श्रीमती गौरी थी तो बहुत कडक ; लेकिन हमारे टैन्ट की प्रशंसा किए बिना न रह सकी . 
                                                                                 शाम ढलते ढलते सबको पता चला कि खाना स्वयं ही बनाना है . एक जगह पर सूखी लकड़ियाँ पडी थी . उन्हें चूल्हे में जलाकर , परात में आटा गूंधकर , हाथ से ही रोटी बेलनी थी और चूल्हे पर सेकनी थी . न तो चकला बेलन था और न ही चिमटा ! कितना कठिन था , इस प्रकार रोटी बनाना ?  लेकिन भूख जोरों से लग रही थी . कोई चारा न था . हमने जैसे तैसे कच्ची पक्की रोटियाँ बनाई . कुछ देर बाद एक चपरासी आलू मसाले और बड़ा पतीला भी दे गया . चाकू , प्लेटें और गिलास वगैरह हम सभी घर से ही लाये हुए थे . हमने आलू की सब्जी बनाई . उस रात जो मज़ा उन कच्ची और जली रोटियों में आया ; उसका तो कहना ही क्या ! चटखारे ले ले कर हम आलू की सब्जी और रोटी चट कर गये .
                                                                        थक हार कर बिस्तर में घुसना ही चाहते थे कि श्रीमती गौरी ने सबको इकट्ठा होने के लिए कहा . उन्होंने बताया कि रात को हर टैन्ट के बाहर दो दो घंटे के लिए एक एक गर्ल गाइड को पहरा देना है . कैसे ख़तरे पर कैसी सीटी बजानी है . खतरा होने पर क्या क्या करना है ; यह सभी विस्तार से समझाया . नींद के झोंके तो आ रहे थे , लेकिन पहरा भी देना था . हमने अपनी अपनी बारी बाँध ली .मैंने तो अपना नम्बर सबसे पहले लगा लिया . दो घंटे बाद रजाई में घुसी और चैन की नींद सो गई . 
                                              सवेरे गर्म पानी के लिए लाइनें लग गई . एक नल से ही गर्म पानी मिल रहा था . अपनी अपनी बाल्टी में सब पानी ला रहे थे और बाथरूम में जा कर नहा रहे थे . पहले दिन तो मुश्किल से ग्यारह बजे नहाने का नम्बर आया . परन्तु अगले दिन से ही हमारे टैन्ट की लडकियाँ सबसे पहले उठने लगी . चार लडकियाँ चूल्हे पर खाना बनाती , तब तक बाकी चार नहा धो चुकती . और बाद में बाकी चार लडकियाँ भी नहा आती , तब तक पहले वाली लडकियाँ खाना बनाने का काम पूरी तरह निपटा देती .
                            बारह बजे से चार बजे तक  हमें गाइड्स की पूरी ट्रेनिंग दी जाती . तीन या चार प्रवक्ता पूरा प्रशिक्षण देते कि किस प्रकार परेशानी में मदद के लिए अपने को हरदम तैयार रखना है . फिर वापिस टैन्ट में आकर हम खूब धमाचौकड़ी मचाते कुछ आराम करते और फिर शाम के खाने की तैयारी शुरू हो जाती ; वही चूल्हा , वही रोटी .
                        प्रशिक्षण के आखिरी दिन रात को कैम्प फायर का प्रोग्राम था . खाना खाने के बाद सभी जलती हुई लकड़ियों  के ढेर के चारों और घेरा बनाकर बैठ गए. खूब रंगारंग प्रोग्राम हुआ . श्रीमती गौरी ने भी एक मधुर गीत सुनाया . किसी ने नृत्य दिखाया , तो किसी ने हँसा हँसा कर लोट पोट कर दिया . बहुत रात गए हम सब सोने के लिए गए .
                      सवेरे विदाई के क्षण समीप आ गए . सब एक दूसरे के गले मिले . श्रीमती गौरी ने सबसे हाथ मिलाया . हमने दायाँ हाथ बाहर निकाला तो उन्होंने समझाया कि गाइड्स बायाँ हाथ मिलाती हैं . बायाँ हाथ दिल के ज्यादा करीब होता है न . उन्होंने हमें बहुत प्यार किया और उनकी आँखों में भी आंसू आ गए . उन्होंने कहा कि अब तक का उन्हें यह सबसे अच्छा बैच लगा . बसों में सामान लादने से लेकर हमारे आँखों से ओझल होने तक वे वहीं खडी रहीं . सचमुच वह गाइड्स ट्रेनिंग का पूरा समय चिरकाल तक अविस्मरणीय रहेगा .

Friday, February 10, 2012

अर्भक का अधिकार !

नन्हे से अर्भक ने अंगडाई ली 
माँ के अंतर्मन ने ममता से स्पन्दित हो 
अनुभव किया हल्की, भोली सरसराहट का 
नि: शब्द मौन अस्फुट चेतना के अस्तित्व का 
सुखद अनुभूति एक पल की 
झुरझुरा गई तन मन 
बोध कराती हुई अलौकिक , अनुपम आनन्द 
सरल स्पर्श से 
कोमल भाव भंगिमाओं से    
 कुछ कही अनकही चेष्टाओं से 
अवबोध कराती हैं 
अपने अधिकार का 
माँ के ममत्व पर 
सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर
माँ तुम मेरी हो 
बस मेरी !!


Thursday, February 9, 2012

चांगेरी (indian sorrel)

 
चांगेरी को अम्लपत्रिका भी कहते हैं . इसे खटमीठी घास , तिनपतिया या खट्टी बूटी भी कहा जाता है . इसके पत्तों का स्वाद खट्टापन लिए हुए होता है .यह हर जगह पाई जाती है और बारहमास पैदा होती है . खेतों में खरपतवार की तरह उगी यह घास , बहुत से औषधीय गुणों से परिपूर्ण है . यह बड़ी और छोटी , दोनों प्रकार की हो सकती है . इसके पीले रंग के छोटे छोटे फूल होते हैं . ये बैंगनी रंग के भी हो सकते हैं . 
                        सिरदर्द हो तो इसके पत्तों को पीसकर माथे पर लगा लें . कफ , sinus , बलगम या एलर्जी हो तो इसके पत्तों के रस में थोडा सा पानी मिलाकर दो दो बूँद नाक में डालें . पानी न मिलाया जाए तो इसका रस नाक में बहुत लगता है . भूख कम लगती हो , बच्चों को मन्दाग्नि की शिकायत हो तो , पुदीने और अदरक मिलाकर इसके पत्तों की चटनी खिलाएं . इसमें प्राकृतिक तौर पर खट्टापन होता है ; इसलिए यह चटनी स्वादिष्ट भी खूब लगती है .  विषम अग्नि में (अर्थात कभी भूख कम हो और कभी ज्यादा लगती हो ) भी यह चटनी बड़ी कारगर रहती है . आँतों में infection हो जाए , तो भी इसके पत्तों की चटनी लें या इसके पत्तों का रस ले लें . 
                                              रक्त प्रदर होने पर या over bleeding होने पर,  इसके पत्तों को पीसकर मिश्री मिलाकर पीयें . बवासीर या piles की बीमारी में इसको ताज़ी लें , या फिर इसकी सूखी पत्तियों का पावडर 1-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . कहीं पर चोट लग जाए तो इसके पत्ते पीसकर लुगदी बांधें . दांतों को मजबूत करना है तो , चांगेरी +लौंग +हल्दी +सेंधा नमक +फिटकरी ;  इन सबको मिलाकर महीन पावडर करें और नित्यप्रति मंजन करें . इससे मसूढ़े भी मजबूत होंगे . मसूढ़ों में पस हो जाए तो इसके पत्तों के रस से मसूढ़ों की मालिश करें या फिर इसके पत्तों के रस में फिटकरी मिलाकर कुल्ले करें . 
                                      अगर  Uterus या anus बाहर निकलने की समस्या हो तो , 5-10 ग्राम चांगेरी के पत्ते के रस को छानकर उसमें फिटकरी मिलाकर रुई से अच्छी तरह धोएं . मूलबन्ध लगाकर प्रतिदिन प्राणायाम करें . इससे आशाजनक  परिणाम आ सकते हैं . मांसपेशियां ढीली पद गई हों , या झुर्रियाँ खत्म करनी हों तो चांगेरी के पत्तों के रस में सफ़ेद चन्दन घिसकर नित्यप्रति नियमित रूप से लगायें . त्वचा तंदरुस्त हो जायेगी . अगर नशे की लत  हो ; चाहे भांग , अफीम की या कोई और भी क्यों न हो ; और उसे छुड़ाना चाहते हैं  तो , चांगेरी के पत्तों का रस प्रतिदिन थोड़ी मात्रा में पिलायें . इससे नशा करने की इच्छा ही नहीं होगी . 
                          

Tuesday, February 7, 2012

प्यारा दुलारा रूम्बा !

 
इधर से उधर अपनी ही धुन में पूरे घर में टहलता हुआ रूम्बा बहुत प्यारा लगता है . कभी बिजली के तारों में हल्का सा उलझता , अपने को बचाता , मेज के पाए के चक्कर काटता , दीवारों के साथ -साथ चलता रूम्बा सबका मन मोह लेता है . ऐसा लगता है कि वह परिवार का ही एक अंग हो . अचानक ही एक स्थान पर खड़ा होकर शोर मचाता है कि, "मुझमें कुछ फंस गया है . साफ़ कर दो न !'. जब उसे साफ़ कर दिया जाता है, तो फिर चल देता है ; मुस्तैदी से पूरे घर को साफ़ करने के लिए . और पूरा घर साफ़ करने के बाद अपने charging unit पर जाकर चुपचाप बैठ जाता है .
                   वास्तव में ये रूम्बा नन्हा सा vacuum cleaner है . दिखने में गोल weighing machine जैसा दिखता है . अपने कार्य में इतना इतना दक्ष है कि मजाल है घर के किसी भी कोने में कचरा रह जाए ! रूम्बा को अंदर चलाकर कमरा बाहर से बंद कर दीजिए . ढूंढ ढूंढ कर पूरी धूल मिटटी निकाल लाएगा . बाद में बता भी देगा कि काम पूरा हो गया है . तब भी कोई न सुने तो कोई बात नहीं ; चुपचाप कमरे के कोने में बैठ जाएगा . सीढ़ियों के पास जाते ही रूम्बा को पता चल जाता है कि आगे नहीं जाना है. बस; वापिस मुड़कर पीछे आ जाता है और बाकी के काम में लग जाता है . फर्श गलीचे वाला है तो अलग ब्रुश से काम लेगा ; और टाइलों वाले फर्श के आते ही तुरंत ब्रुश बदल लेगा . कभी कभी बीच में ही बेचारे रूम्बा की charging खत्म होने वाली होती है , तब वह किसी की नहीं सुनता . सब काम छोडकर सीधा charging unit पर जाकर बैठ जाता है रूम्बा ! इतना थकने के बाद आराम तो चाहिए न प्यारे दुलारे रूम्बा को !

Saturday, February 4, 2012

अमलतास (purging cassia)

 
अमलतास के नाम से कौन परिचित न होगा ? इसके सोने जैसे पीले पुष्प होने के कारण इसे हेमपुष्पा भी कहा जाता है . इसकी मोटी फलियों के बीच का गूदा मीठा होता है . यह कब्ज़ के लिए , पेट को ठीक रखने के लिए और पाचन तंत्र को दुरुस्त रखने के लिए अति उत्तम है . अगर पेट को और पाचन तंत्र को ठीक रखना है तो अमलतास की पकी फलियों का 15-20 ग्राम गूदा +8-10 मुनक्का रात को भिगोकर रखें . सुबह इसे मसलकर, छानकर , खाली पेट पीयें . यह इतना सौम्य और मृदु विरेचक है कि छोटे बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए भी सुरक्षित है .  अगर 2-3 महीने के बच्चे के पेट में अफारा हो जाए तो , अमलतास के गूदे में थोडा हींग मिलाकर नाभि के आसपास लगा दें . 
                           आँतों में घाव , सूजन या संक्रमण हो , acidity की समस्या हो या ulcerative colitis की समस्या हो तो , इसके 15-20 ग्राम गूदे में , 1-2 ग्राम धनिया मिलाकर , रात को मिटटी के बर्तन में भिगो कर रख दें . सवेरे खाली पेट ऊपर का पानी निथारकर पी लें . धनिया अधिक न मिलाएं . इससे ठण्ड लग सकती है . सर्दी-जुकाम हो सकता है . मुंह में छाले हों , घाव हों या स्वर भंग की समस्या हो तो , अमलतास की पत्तियाँ उबालकर , नमक मिलाकर , गरारे करें . श्वास रोगों में , इसके गूदे में काली मिर्च और तुलसी के पत्ते पकाकर छानकर , गर्म गर्म पीयें . White discharge की समस्या में या यौन दुर्बलता होने पर अमलतास के फली का 15-20 ग्राम गूदा रात को भिगो दें व सवेरे मिश्री या शहद मिलाकर लें . Delivery के समय इसकी 20-30 ग्राम फली को कूटकर 400 ग्राम पानी में पकाएं . जब रह जाए 100 ग्राम ; तो छानकर सुविधापूर्वक 1-2 बार ले लें . इससे delivery के समय आसानी हो जाती है . 
                                          धातुक्षीणता या दुर्बलता होने पर इसकी फलियों के बीजों को भूनकर , पावडर करके , बराबर मिश्री मिला लें . इसे सवेरे शाम एक -एक ग्राम ले सकते हैं . बुखार होने पर , 10 ग्राम अमलतास  का गूदा +2 ग्राम बहेड़ा + 2 ग्राम नागरमोथा +1 ग्राम कुटकी ; ये सभी मिलाकर , 400 ग्राम पानी में पकाएं . जब रह जाए 100 ग्राम , तो छानकर पीयें . यह सवेरे शाम लेने से बुखार तो ठीक होता ही है , साथ ही लीवर भी ठीक रहता है . सारा body system भी ठीक हो जाता है . इससे बेचैनी भी दूर होती है .
                                           अमलतास रक्तशोधक भी है . इसकी छाल को चन्दन की तरह घिसकर कील मुंहासों पर लगाया जा सकता है . इसे लगाने से चकत्ते भी ठीक होते हैं . इसके फूलों का गुलकंद शीतल , सौम्य एवं स्वास्थ्यवर्धक होता है . यह कफ रोग , पेट के रोगों में लाभकारी होता है . इसके फूलों की चटनी और सब्जी पेट के रोगों को ठीक करती है . इसके फूलों को सुखाकर उनका पावडर करके , सवेरे शाम लिया जाए , तो पेट ठीक रहता है , पाचन ठीक रहता है . 
                                 यह पवित्र वृक्ष माना जाता है . इसे घर के आस पास अवश्य लगाना चाहिए . इससे घर में शुभता रहेगी . यहाँ तक कि केवल इसकी फलियों को ही घर में रखा जाए , तो भी घर में शुभता रहती है .