Wednesday, March 28, 2012

पथरी (stones)

                  पथरी  की  समस्या कम पानी पीने से हो सकती है . शारीरिक व्यायाम कम होना और तली भुनी वस्तुएं अधिक खाना भी इसके कुछ कारण हो सकते हैं .
                                       तेज़ चलना,  तेज़ दौड़ना इसमें लाभदायक है . कपालभाति प्राणायाम पथरी को ठीक करने में अद्भुत लाभ करता है . छाछ पीना भी पथरी के रोग को ठीक करने में लाभदायक है . कुल्थी की का काढ़ा भी इसमें लाभदायक होता है . एक दो चम्मच कुल्थी की दाल को एक गिलास पानी में अच्छे से उबालें. जब खूब पक जाए तो घोट कर पी लें .
                                                              मूली का सेवन करते रहने से पथरी की समस्या नहीं होती . पथरी होने पर भी मूली पथरी हटाने में मददगार होती है . जौ के आटे के नियमित प्रयोग से भी पथरी नहीं होती और पथरी की समस्या होने पर भी जौ का नियमित सेवन लाभदायक होता है . जौ का क्षार अर्थात यवक्षार और मूली क्षार लेने से पथरी की समस्या से मुक्ति मिल सकती है .
                             अश्मरिहर रस  1 -1  ग्राम या अश्मरिहर क्वाथ का काढ़ा लेते रहने से भी पथरी निकल जाती है  पत्थर चट के 2-3 पत्ते सवेरे खाली पेट कुछ दिन लेते रहने से भी पथरी निकल जाती है . Gal bladder की पथरी की प्रारंभिक अवस्था में कपालभाति प्राणायाम निरंतर रूप से करते रहने से, और उपर्युक्त प्रयोगों को अपनाने से , बहुत अच्छे परिणाम सामने आते हैं .
                                     केवल कपालभाति प्राणायाम ही नियमित रूप से निरंतर किया जाए, तो भी पथरी की समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सकता है और दोबारा होने से रोका जा सकता है .

Monday, March 26, 2012

इलायची (cardamom )


 

 
                     इलायची दो तरह की होती है ; छोटी इलायची , और बड़ी इलायची . यह सुगन्धित होने के साथ साथ क्षुधावर्धक भी है . भूख कम लगती हो तो इसके दाने या पावडर भोजन में डाल दें . इससे मन्दाग्नि की समस्या भी ठीक हो जाती है .
                                            दूध में इसे पीसकर डालने से दूध सुपाच्य हो जाता है और अफारा होने की सम्भावना कम हो जाती है . यह पाचक रसों को बढाता है . आँतों को बल देता है .
                गुटका , तम्बाकू , पान मसाला, खैनी  आदि व्यसनों से छुटकारा पाना हो तो इलायची बहुत मददगार है . दालचीनी के टुकड़े  +इलायची के दाने +लौंग+भुनी हुई सौंफ +भुनी हुई अजवायन ; इन सभी को उचित मात्रा में मिलाकर रख लें . इसका सुबह शाम प्रयोग करें .
                      नशा छुड़ाना हो तो ,5 ग्राम इलायची +250 ग्राम अजवायन को मिलाकर दो लिटर पानी में पका लें . जब रह जाए आधा लिटर तो बोतल में भरकर रख लें . सवेरे शाम भोजन के बाद एक कप (200 ml) पी लें . इससे शराब पीने की इच्छा तो छूट ही जायेगी ; साथ ही नशे के कारण शरीर या पेट को पहुंची सभी परेशानियों से भी मुक्ति मिलेगी . पेट का अफारा , indigestion आदि सभी समस्याओं से छुटकारा मिलेगा .  अफीम आदि के नशे से भी यह पानी छुटकारा दिलाता है .
               बड़ी इलायची के दानों का पावडर अर्जुन की छाल  के काढ़े में डालकर पीने से एंजाइना , हृदय की समस्या में भी लाभ होता है . मुंह में अधिक लार बनती हो तो इसका प्रयोग उसे ठीक कर देता है . नपुंसकता की समस्या हो तो  इलायची + बला के बीज + तुलसी के बीज  मिलाकर प्रात:, शाम सेवन करें .  इससे प्रदर(white discharge) और प्रमेह की समस्या भी दूर होती है .
                              सर्दी , ज़ुकाम , कफ को ठीक करने के लिए लौंग ,तुलसी और इलायची की चाय या काढ़ा बनाकर पीयें . इलायची का सेवन करने से आँखों की ज्योति भी बढती है . बेल का पावडर 10  ग्राम +1  ग्राम इलायची सुबह शाम लेने से पेट की सभी बीमारियों , जैसे colitis , गैस , अफारा आदि से छुटकारा मिलता है .
        इलायची का नित्य प्रति सेवन करने से शरीर में सुगन्धि आती है . यह केवल मसाला ही नहीं औषधि भी है . यह बहुत ऊँचाई पर पैदा होती है . लेकिन अपने गमले में भी इसे उगाया जा सकता है . इसके पुष्प बहुत सुन्दर होते हैं .

सरसों (mustard)


 
 
सरसों के पीले पीले फूलों से भरपूर लहलहाती फसल सबका मन मोह लेती है .
                  सरसों को संस्कृत भाषा में रजिका या तीक्ष्णगंधा भी कहते हैं .एक कहावत है ; "शाकेन रोगा: वर्धन्ते" . अधिक शाक के प्रयोग से रोग बढ़ते हैं . अत: उचित मात्रा में ही सरसों के साग का प्रयोग करना चाहिए . यह वायुकारक होता है ; इसीलिए इसमें अदरक इत्यादि मिलाकर इसका प्रयोग किया जाता है . इसके पत्तों पर कीटनाशक भी होते हैं , इसलिए इसके पत्तों का साग बनाने से पहले भली प्रकार गर्म पानी से इसे धो लेना चाहिए .
             शुद्ध सरसों का तेल प्रयोग में लाया जाए तो बहुत स्वास्थ्यवर्धक होता है . खाज खुजली के लिए 100 ग्राम तेल में 10 ग्राम देसी कपूर मिलाकर मालिश करें . इसकी मालिश से मांसपेशियाँ मजबूत होती हैं . इसके इस्तेमाल से बाल भी झड़ने बंद हो जाते हैं . जोड़ों के दर्द में इसके तेल में सौंठ या अदरक को पकाकर मालिश की जाए तो लाभ होता है .
               20 -25 ग्राम लहसुन +20-25 ग्राम अदरक लेकर 100 ग्राम सरसों के तेल में पकाएं . जब लहसुन और अदरक सुर्ख लाल या काली सी पड़ जाएँ , तो तेल छान लें . यह तेल घुटनों के दर्द के लिए बहुत अच्छा है . इसे घुटनों पर अच्छी तरह मलकर घुटनों पर कोई मुलायम कपडा बाँध लें .
                     सरसों के तेल से कान के दर्द , किसी प्रकार का संक्रमण या कम सुनने की समस्या भी ठीक होती है . स्नान करने से पहले सरसों का तेल कान में डालना लाभदायक बताया जाता है .
                   पक्षाघात होने पर दो भाग सरसों के दाने +एक भाग सौंठ को मिलाकर , बारीक पीसकर , कपडछन कर लें . इस बारीक चूर्ण से प्रभावित हिस्से की खूब मालिश करें . इससे लाभ होता है .



                 

Sunday, March 25, 2012

आलू (potato)


 

आलू सबको बहुत ही प्रिय होता है . इसके चिप्स , बर्गर , फ्रेंच फ्राई आदि बहुतायत से खाए जाते हैं . लेकिन  इसको तलकर खाना सबसे हानिकारक होता है . इससे colitis ,कैंसर , gastric trouble अदि हो सकते हैं .
                               अगर इसे उबालकर या बिना तेल के भूनकर खाया जाए तो यह बहुत लाभकारी है . अगर अपच की शिकायत हो तो आलू को कोयले या उपलों में भूनकर , छीलकर , नीम्बू और नमक लगाकर सेवन करें . इसका यदि कम मात्रा में सेवन किया जाए, तो यह शक्ति वर्धक , पौष्टिक और स्फूर्ति वर्धक होता है . यह शुक्र की भी वृद्धि करता है . खांसी होने पर इसकी ताज़ी पत्तियों का काढ़ा पीया जा सकता है . यह सूप की तरह स्वादिष्ट भी लगेगा और खांसी भी दूर कर देगा .
                           शरीर में कहीं पर भी खुजली की शिकायत है तो इसकी पत्तियों को पीसकर उसका रस लगायें . मुंह पर झाइयाँ या कील मुंहासे हो गये हों तो , आलू को पीसकर उस पर लगायें . अगर uric acid बढ़ने से सूजन आ गई हो तो , इसके पत्तों को उबालकर उसमें नमक मिलाकर सिकाई करें . लेकिन uric acid बढने पर आलू खाना नहीं चाहिए . यह uric acid को बढाता है .
                   अगर कहीं पर जल जाएँ तो तुरंत आलू काटकर लगा लें.
           यह सम्पूर्ण भोजन है ; अत: फलाहार में भी इसे सम्मिलित किया जाता है .
                       . अधिक मात्रा में सेवन करने से यह मल की मात्रा को बढ़ाता है , शरीर की स्थूलता बढ़ाता है और आलस्य पैदा करता है . इसलिए इसका कम मात्रा में सेवन करना चाहिए.

Wednesday, March 21, 2012

गंजापन और इन्द्र्लुप्त

सिर में गंजेपन की समस्या अनुवांशिक हो सकती है या फिर कुछ और कारण भी हो सकते हैं . इसको रोकने के लिए  सिर में सुगन्धित तेल या शैम्पू लगाना बन्द कर देना चाहिए . कैमिकल युक्त तेल भी बालों को नुक्सान पहुंचाते हैं .
                भृंगराज , शंख पुष्पी , ब्राह्मी , आंवला आदि विभिन्न जड़ी बूटियों से युक्त तेल घर में ही बनाये जा सकते हैं . बाज़ार से जड़ी बूटियों वाला तेल खरीदते समय निश्चित कर लें कि वह सुगन्धियुक्त न हो . बालों में तेल की हल्की मालिश सप्ताह में दो दिन अवश्य ही करनी चाहिए . चाहे रात को तेल लगाकर सवेरे धो लें .
                         अगर हृदय रोग नहीं है और उच्च रक्त चाप की बीमारी भी नहीं है , तो नियमित रूप से शीर्षासन और सर्वांग आसन करने से गंजापन रोका जा सकता है . ध्यान रखना चाहिए कि बड़ी उम्र में ये आसन किसी विशेषज्ञ के परामर्श से ही करें . लौकी का जूस और आंवले का रस प्रतिदिन लिया जाए तो बढ़ा हुआ पित्त शांत होता है और बाल झड़ने बंद हो जाते हैं . जिनको पित्त की समस्या नहीं है , वे भी काली मिर्च मिलाकर इस जूस को ले सकते हैं .
                     बहुत से लोगों ने गंजेपन को दूर करने के लिए एक उपाय अपनाया . 200 ग्राम नारियल का तेल लेकर उसमें ततैये के एक बड़े छत्ते को (छोटे छोटे हों तो तीन चार) डालकर पकाया . जब छत्ता काला पड़ने लगा तो उसे छानकर उसमें 200 ग्राम गूलर के पत्तों का रस को मिलाकर पकाया . जब केवल तेल रह गया तो इस तेल की सवेरे शाम सिर पर मालिश की . इससे सिर पर काफी हद तक बाल वापिस आ गये . Alopecia ( इन्द्र्लुप्त) की बीमारी में इस तेल में एक प्याज का रस मिलाकर ,  रात के समय , सोने से पहले सिर पर अच्छे से लगा लें और सवेरे सिर धो लें . इन उपायों से गंजेपन और इन्द्र्लुप्त की बीमारियों से काफी हद तक राहत मिलती है .
                      Alopecia के लिए एक उपाय और भी किया जा सकता है . कौड़ी को नीम्बू के रस में भिगो दें . कौड़ी नीम्बू के रस में गल जायेगी . इस लेप को रात को सोने से पहले सिर पर लगायें और सवेरे धो लें . इससे भी alopecia की बीमारी ठीक होती है .
                      नियम पूर्वक कपालभाति और अनुलोम विलोम प्राणायाम करने से भी लाभ होता है . आम्लिकी रसायन 200 ग्राम +सप्तामृत लौह 20 ग्राम +मुक्ताशुक्ति भस्म 10 ग्राम ;  इन तीनो को मिलाकर एक एक ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . चिंता और तनाव से बचें . प्रसन्न रहें . नाखूनों को  एक दो मिनट , पीछे से थोडा थोडा आपस में घिस लें.  





Monday, March 19, 2012

बाल सफ़ेद होना

                  बुढापे में तो अक्सर सभी के बाल सफ़ेद हो सकते हैं , परन्तु असमय बाल सफ़ेद हो जाएँ तो परेशानी की बात है .    
         असमय बाल सफेद होने शुरू हो गये हों तो चिंता न करें . अधिक से अधिक आंवले का प्रयोग प्रारम्भ कर दें . ताज़ा आंवला और उसका जूस तो सर्वोत्तम है . अगर आप शीत प्रकृति के हैं तो इसमें काली मिर्च मिला लें . आंवले का मुरब्बा , कैंडी भी खा सकते हैं . आंवले का चूर्ण पानी या शहद के साथ ले सकते हैं . आम्लिकी रसायन को सवेरे शाम शहद के साथ लिया जा सकता है . सर्दियों में च्यवनप्राश का प्रयोग भी कर सकते हैं .
                               सुबह शाम अनुलोम विलोम और कपालभाति प्राणायाम नियम पूर्वक करें . भ्रामरी प्राणायाम भी इसमें मदद करता है . अगर उम्र बहुत कम है और कोई अन्य बीमारी नहीं है ; तो शीर्षासन और सर्वांगआसन बालों को काला रखने में बहुत मददगार होता है . नाखूनों को पीछे से रगड़ने पर भी अपेक्षित परिणाम प्राप्त होते हैं .
                           

सिर की रूसी (dandruff )

dandruff या रूसी सिर की ऐसी समस्या है , जिससे अधिकतर व्यक्ति परेशान रहते हैं . इसे ठीक करने के लिए एक उपाय है .
  एक चम्मच सुहागे (टंकण भस्म , boric acid ) की खील (गर्म तवे पर सुहागा रखें तो फूल जाता है )+ एक चम्मच नारियल का तेल + दो तीन चम्मच खट्टी दही या छाछ + एक चम्मच नीम के पत्तों का रस ;  इन सभी को अच्छे से मिलाकर बालों की जड़ में लगायें और अच्छी तरह से मालिश करें . थोड़े समय तक लगा रहने दें . बाद में रीठे , शिकाकाई से या किसी हर्बल शैम्पू से सिर को धो लें .
                      ऐसा दो या तीन बार करने से ही सिर की dandruff बिलकुल खत्म हो जाती है . बालों में सप्ताह में कम से कम दो बार कोई शद्ध तेल अवश्य लगाना चाहिए . सरसों के तेल में भृंगराज का रस और आंवले का रस मिलाकर,  केवल तेल रह जाने तक,  इसे मंदी आंच पर पकाएं . यह बन गया; आंवला भृंगराज केश तेल ! इसे लगाने से तो बाल भी मजबूत रहते हैं और आँखें भी अच्छी रहती हैं .
                   रात को बालों में तेल लगाकर , सवेरे बालों को धो लें . Chemicals वाले शैम्पू या तेल बालों व आँखों के लिए खतरनाक हो सकते हैं . 

Friday, March 16, 2012

पित्त पापड़ा (hedgi fumitory)


 
पित्त पापड़ा को संस्कृत में खसेतरा पर्पटी भी कहा जाता है . यह हरे धनिए जैसा लगता है . इसके पत्ते भी वैसे ही होते हैं परन्तु कोमल और पतले होते हैं , इसकी डंडी थोड़ी मोटी और सख्त होती है . यह हरे धनिए के साथ ही बाज़ार में मिल जाता है . कई लोग इसे सोया भी कहते हैं . यह seasonal पौधा है . यह वर्ष में दो बार आता है ; वर्ष ऋतु में और सर्दियों में .  यह थोडा सा कडवापन लिए हुए होता है . इसकी महक मनमोहक होती है .
                                      यह पित्त सम्बन्धी रोगों के लिए बहुत लाभदायक है . Acidity हो या शरीर में toxins  इकट्ठे हो गये हों , यह सभी विजातीय तत्वों को शरीर से बाहर निकाल देता है . यह कफ और वायु शामक है . अगर किसी ने कोई जहरीली वस्तु खा ली हो या food poisoning हो गई हो तो यह बहुत ही लाभकारी है . Arsenic poisoning तक के असर को यह खत्म करने में सक्षम है . कई बार किसी इलाज के चलते बहुत बुरे side effects हो सकते हैं . अगर पित्त पापड़ा का सेवन किया जाए तो side effects को बहुत हद तक कम किया जा सकता है . इसके लिए ताज़े पित्त पापड़ा का दो -तीन चम्मच रस पानी के साथ खाली पेट सुबह शाम ले सकते हैं . ताज़ा न मिले तो सूखे पित्त पापड़ा को 5 ग्राम की मात्र में लें . इसे 200 ग्राम पानी में धीरे धीरे काढकर काढ़ा बनाएं . इसे सवेरे शाम दो तीन महीने तक लेते रहें . शरीर से सारा विष निकल जाएगा .
                      यह पसीने को बाहर निकलता है , परन्तु गर्म नहीं होता . अगर गर्मीजन्य बुखार है तो गिलोय और तुलसी के साथ इसका काढ़ा बनाकर लें . यदि बुखार सर्दीजन्य है तो इसी में काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बनाएं . पुराने से पुराना बुखार भी, इस काढ़े में थोड़ी नीम की पत्तियाँ मिलाकर काढ़ा बनाकर सवेरे शाम सेवन करने से ; बिलकुल ठीक हो जाता है
                             एसिडिटी हो तो इसकी पत्तियाँ चबाएं . इससे आंत के घाव , infections आदि सब खत्म हो जाते हैं .
यह रक्तशोधक भी है . पित्त पापड़ा के साथ नीम की पत्तियों को मिलाकर काढ़ा बनाकर लेने से , फोड़े , फुंसियाँ , दाद, खाज , खुजली , eczema , psoriasis आदि सब ठीक हो जाते हैं . अगर सरसों के तेल में इसे अच्छे से पकाकर ; जब केवल तेल रह जाए तब छानकर , उस तेल को त्वचा पर लगायें तो ये बीमारियाँ और भी जल्दी ठीक हो जाती हैं .
           यह शरीर के अन्दर के घाव भी भरता है , और बाहर के भी .  यह सभी तरह के infections को खत्म करता है ; चाहे वे lungs के हों या liver के . अगर  Kidney की परेशानी हो तो वृक्कदोषहर क्वाथ में इसको मिलाकर काढ़ा बनाकर लें .
             दाँत में दर्द है या मसूढ़ों में संक्रमण है तो इसे चबा चबाकर मसूढ़ों के चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएँ . फिर इसे निगल लें . इससे पेट भी ठीक रहेगा . यह पाचन क्रिया को ठीक करता है और आँतों के infections को भी खत्म करता है . पेट दर्द भी इससे ठीक होता है . अगर पेट में कीड़े हो गए हों तो इसमें वायविडंग मिलाकर बच्चों को एक एक ग्राम की मात्रा में दें . बड़े दो दो ग्राम भी ले सकते हैं . सिर्फ पित्त पापड़ा को ही खाली पेट लेने से पेट के कीड़े खत्म हो जाते हैं .
                 उल्टी हो तो पित्त पापडा का काढ़ा लें या एक एक ग्राम शहद के साथ चाट लें . हृदय रोगों में इसको अर्जुन की छाल के साथ मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम लें . इसका रस लगाने से घाव भी भर जाते हैं .



















                   

Wednesday, March 14, 2012

दारुहल्दी (berberry)


 
दारुहल्दी पर्वतीय क्षेत्र में पाया जाने वाला बहुत ही उपयोगी पौधा है . इसे दारुहरिद्रा और हेमकान्ता के नाम से भी जाना जाता है . दारु लकड़ी को कहा जाता है . इसकी लकड़ी चीर कर देखें तो वह अन्दर से हल्दी जैसे गहरे पीले रंग की होती है . इसकी जड़ की लकड़ी को टुकड़े टुकड़े कर के सोलह गुना पानी में पकाएं . जब वह एक चौथाई रह जाए तो उसे छानकर किसी बर्तन में पकाएं . जब वह गाढ़ा होकर ठोस आकार लेने लगे , यो उसे उतार लें . यह पदार्थ रसौंत कहलाता है .
                 हमारे देश में पुराने समय में रसौंत घर घर में आमतौर पर आवश्यक रूप से रखी जाने औषधि थी . नन्हे शिशुओं को दांत निकलते समय आमतौर पर dysentery या infections हो जाते हैं . तब रसौंत को थोडा घिसकर बच्चे को चटा देने से बहुत आराम आ जाता है . यह कई बार नकली भी मिलती है . यह निश्चित कर लेना चाहिए कि असली रसौंत का ही सेवन किया जाए . यह वर्षों तक भी खराब नहीं होती .
                      बवासीर या bleeding हो , या फिर आँतों में सूजन हो तो , दारुहल्दी की 5-10 ग्राम जड़ों को 400 ग्राम पानी में धीमे धीमे पकाएं . जब एक चौथाई रह जाए तो छानकर पी लें . इस काढ़े को सुबह शाम नियमित रूप से लेने पर ये बीमारियाँ ठीक होती हैं .
                अगर आँखें लाल हो रही हैं या किसी भी प्रकार का संक्रमण हो गया है तो , रसौंत को या दारुहल्दी की जड़ की लकड़ी को घिसकर आँख में अंजन करें . आँखें ठीक हो जायेंगी .
                Indigestion की शिकायत हो तब भी इसका काढ़ा लेने से आराम आता है . कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो , दारुहल्दी की मदद से ठीक हो जाता है . अगर हल्का बुखार चलता ही जा रहा हो , किसी भी तरह आराम न आ रहा हो तो , 5 ग्राम दारुहल्दी +5 ग्राम सूखी गिलोय +5 तुलसी के पत्ते ; इन्हें 400 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर , सवेरे शाम पीयें .
            पीलिया की बीमारी में अक्सर पीली वस्तु नहीं देते , परन्तु इसका काढ़ा पीलिया को भी ठीक करता है . लीवर पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता . इसकी डालियों और पत्तियों के पास कांटे होते हैं . अत: ध्यान से पत्ते तोड़ने चाहियें. इसके पत्तों को पीसकर अगर लुगदी को फोड़े फुंसियों पर लगाया जाए , तो या तो फुंसियाँ पककर फूट जाती हैं या फिर बैठ जाती हैं .
                       इसकी पत्तियों को पीसकर उनका रस त्वचा पर लगाकर मालिश करने से त्वचा के रोग नहीं होते .
         यह शरीर की रोग प्रति रोधक क्षमता को बढाती है . लीवर को ठीक रखती है और आँतों के infections को खत्म करती है .

 

Tuesday, March 13, 2012

बन्दा (curved mistletoe)


 
बन्दा को बन्दा पाठा और संस्कृत में वृक्षरूह भी कहा जाता है . यह पराश्रित पौधा है . जब किसी पेड़ के पत्ते झड़ जाते हैं , तो यह उस पर पुष्पित और पल्लवित हो जाता है . इसे किसी पेड़ पर स्वयम लगाना चाहो तो नहीं लगता परन्तु अपनी मर्ज़ी से किसी भी पेड़ पर खुद लग जाता है . अगर वह पेड़ मर जाए तो यह भी खत्म हो जाएगा .इसके नन्हे नन्हे से फूल बहुत सुन्दर लगते हैं . अमर बेल की तरह यह भी जिस पेड़ पर की टहनी पर लिपट जाता है , उसी से अपना भोजन प्राप्त करता है .
                  यह पूरी तरह निरापद नहीं है . इसका औषधि के तौर पर उचित व कम मात्रा में प्रयोग करना चाहिए . ऐसा पाया गया है कि कैंसर की बीमारी में यह अत्यंत गुणकारी है . इस दिशा में अभी अनुसन्धान चल रहे हैं .
                          इसकी हड्डी जैसी आकृति की गाँठ का प्रयोग टूटी हड्डी को जोड़ने के लिए प्रयोग में लाया जाता है . यद्यपि हड्डी जोड़ने के लिए , हडजोड और विधारा का भी इस्तेमाल किया जाता है ; परन्तु बन्दा हड्डी जोड़ने के लिए अभूतपूर्व और विलक्षण गुणों से परिपूर्ण है . इसकी गाँठ पत्तियां और और टहनी को सुखाकर , पावडर करके 3-3 ग्राम सवेरे शाम लेने से हड्डियों की कमजोरी दूर होती है और टूटी हड्डियाँ जल्दी जुड़ जाती हैं . इसकी पत्तियों को तोडकर टूटी हड्डियों पर बाँध दें तो वे और भी जल्दी जुड़ेंगी .
                      Arthritis , osteoporosis हो या हड्डियाँ गल गई हों , या फिर हड्डियाँ कमजोर पड़ गई हों तो , इसकी सूखी पत्तियों का पावडर 2-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . इसके अलावा 1-2 ग्राम बंदा+2 ग्राम पंचकोल को मिलाकर , 400 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर,  सवेरे शाम ले सकते हैं .
         रक्त स्राव हो , दस्त लगे हों या हैजा हो गया हो या फिर periods में excess bleeding हो रही हो तो इसकी 1-2 पत्ती पीसकर , शर्बत बनाकर , कुछ दिन तक लें . इसका अधिक प्रयोग न करें . अगर दमा या खांसी हो तो , इसके पत्तों का पावडर 1-2 ग्राम की मात्रा में अदरक और शहद के साथ मिलाकर सुबह शाम लें . ये भी कुछ दिन ही लें .
              दर्द या सूजन हो तो इसके पत्ते उबालकर सिकाई करें .
                           इस पौधे में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक है . इस पौधे के स्पर्श से आती हुई वायु भी लाभकारी होती है . इसकी लकड़ी को घर में रखने से रोग नहीं बढ़ते . यह बंदा बन्दों के रोगों के लिए विचित्र किन्तु अभूतपूर्व पौधा है .

Monday, March 12, 2012

रेवनचीनी (rhubarb)


 
रेवनचीनी का पौधा हिमालय क्षेत्र में 8000 - 10000 फुट की ऊंचाई पर पाया जाता है .इसे आमभाषा में अर्चा भी कहते हैं . इसका क्षुप मूली की तरह होता है . शायद इसीलिए इसे संस्कृत भाषा में पित्तीमूलिका कहते हैं . यह बहुवर्षीय seasonal पौधा है . बर्फ पड़ने पर इसके पत्ते खत्म हो जाते हैं और जड़ें बनी रहती हैं .वर्षा ऋतु में इसके पुष्प आते हैं . इसके चौड़े चौड़े खट्टे पत्तों की चटनी बनाई जाती है . यह स्वादिष्ट होने के साथ आंत, पेट और गले के लिए हर प्रकार से लाभदायक होती है .
                            इसकी छोटी जड़ों को रेवनखटाई और बड़ी जड़ों को रेवनचीनी कहते हैं . संत महात्मा पेट के रोगों में इसकी जड़ों का बहुत प्रयोग करते हैं . वे इसकी जड़ के दो तीन टुकड़ों को दाल या सब्जी में उबाल लेते हैं . फिर उन जड़ों को चबा चबाकर खाते हैं . ये थोड़ी कसैली अवश्य लगती हैं ; परन्तु पेट के रोग , पेट के अल्सर , पेट के घाव और पेट के सभी संक्रमणों के लिए लाभकारी हैं .
                          अगर कहीं पर घाव हों तो इसकी जड़ को चन्दन की तरह पानी में घिसकर लगा लें . घाव बहुत जल्द भर जाएगा और संक्रमण भी नहीं होगा . शुगर की बीमारी में जो घाव नहीं भर पाते , वे भी इसे लगाने से भर जाते हैं . चेहरे पर कील -मुंहासे हों तो इसकी जड़ को पानी घिसकर पेस्ट की तरह बना लें और कील मुंहासे पर लगायें . कुछ देर बाद मुंह धो लें .
                इसकी जड़ों की शुद्धता की परख अवश्य कर लेनी चाहिए . इसकी जड़ें हल्की पीली और हल्की खुशबू वाली होती हैं . यह कब्ज़ को भी ठीक करता है . यह मृदु विरेचक है . रेवनचीनी +सौंफ + हरड+त्रिफला बराबर मात्रा  में लेकर सवेरे शाम दो दो ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें . इससे पेट साफ़ तो होता ही है साथ ही आँतों में कम खुश्की होती है . आँतों के घाव भी भरते हैं . केवल रेवनचीनी की जड़ का पावडर दो तीन ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लेने से भी आंतें ठीक रहती हैं . इससे colitis भी ठीक होता है .
                    अगर acidity है तो धनिया +मिश्री मिलाकर सवेरे शाम गुनगुने पानी से ले लें . अगर दस्त लगे हों तब इसे नहीं लेना चाहिए . शीतपित्त या urticaria की बीमारी में इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर 2-2 ग्राम की मात्रा में सुबह शाम पानी के साथ लें . इसको लेने से urine भी ठीक तरह से आता है . प्रमेह , धातु रोग आदि भी इसको लेने से ठीक हो जाते हैं .इसको लेने से kidney भी ठीक होती हैं . इसकी प्रकृति गर्म है , फिर भी इसे लेने से acidity खत्म होती है .
                            Arthritis या joint pain की समस्या है या फिर कमर में दर्द रहता है तो , रेवनचीनी +मेथी +सौंठ +अश्वगंधा +हल्दी बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें . वैसे वातारी चूर्ण भी जोड़ों के दर्द में बहुत मददगार है . इससे सूजन भी कम होती है .
                      बहुत छोटे बच्चे को अफारा हो ; चाहे वह 10 दिन का ही क्यों न हो ; तब भी इसे घिसकर शहद के साथ दिन में दो तीन बार चटा सकते हैं . इससे बच्चे का दूध हजम हो जाता है और उल्टी भी नहीं होती .
                  यह कैंसर की प्रारम्भिक स्थिति में भी लाभकारी रहता है . चाहे कितने भी सड़े गले घाव क्यों न हों , इसे घिसकर लगाने से वे ठीक हो जाते हैं . सूजन भी ठीक होती है .
                    श्वास या खांसी की बीमारी में भी इसका एक ग्राम पावडर शहद के साथ चाटने से आराम आता है . Migraine की बीमारी में इसे घिसकर माथे पर लगा लें . लीवर में सूजन हो तब भी इसका पावडर लेते रहने से वह ठीक हो जाता है .