Wednesday, March 14, 2012

दारुहल्दी (berberry)


 
दारुहल्दी पर्वतीय क्षेत्र में पाया जाने वाला बहुत ही उपयोगी पौधा है . इसे दारुहरिद्रा और हेमकान्ता के नाम से भी जाना जाता है . दारु लकड़ी को कहा जाता है . इसकी लकड़ी चीर कर देखें तो वह अन्दर से हल्दी जैसे गहरे पीले रंग की होती है . इसकी जड़ की लकड़ी को टुकड़े टुकड़े कर के सोलह गुना पानी में पकाएं . जब वह एक चौथाई रह जाए तो उसे छानकर किसी बर्तन में पकाएं . जब वह गाढ़ा होकर ठोस आकार लेने लगे , यो उसे उतार लें . यह पदार्थ रसौंत कहलाता है .
                 हमारे देश में पुराने समय में रसौंत घर घर में आमतौर पर आवश्यक रूप से रखी जाने औषधि थी . नन्हे शिशुओं को दांत निकलते समय आमतौर पर dysentery या infections हो जाते हैं . तब रसौंत को थोडा घिसकर बच्चे को चटा देने से बहुत आराम आ जाता है . यह कई बार नकली भी मिलती है . यह निश्चित कर लेना चाहिए कि असली रसौंत का ही सेवन किया जाए . यह वर्षों तक भी खराब नहीं होती .
                      बवासीर या bleeding हो , या फिर आँतों में सूजन हो तो , दारुहल्दी की 5-10 ग्राम जड़ों को 400 ग्राम पानी में धीमे धीमे पकाएं . जब एक चौथाई रह जाए तो छानकर पी लें . इस काढ़े को सुबह शाम नियमित रूप से लेने पर ये बीमारियाँ ठीक होती हैं .
                अगर आँखें लाल हो रही हैं या किसी भी प्रकार का संक्रमण हो गया है तो , रसौंत को या दारुहल्दी की जड़ की लकड़ी को घिसकर आँख में अंजन करें . आँखें ठीक हो जायेंगी .
                Indigestion की शिकायत हो तब भी इसका काढ़ा लेने से आराम आता है . कितना भी पुराना बुखार क्यों न हो , दारुहल्दी की मदद से ठीक हो जाता है . अगर हल्का बुखार चलता ही जा रहा हो , किसी भी तरह आराम न आ रहा हो तो , 5 ग्राम दारुहल्दी +5 ग्राम सूखी गिलोय +5 तुलसी के पत्ते ; इन्हें 400 ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर , सवेरे शाम पीयें .
            पीलिया की बीमारी में अक्सर पीली वस्तु नहीं देते , परन्तु इसका काढ़ा पीलिया को भी ठीक करता है . लीवर पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता . इसकी डालियों और पत्तियों के पास कांटे होते हैं . अत: ध्यान से पत्ते तोड़ने चाहियें. इसके पत्तों को पीसकर अगर लुगदी को फोड़े फुंसियों पर लगाया जाए , तो या तो फुंसियाँ पककर फूट जाती हैं या फिर बैठ जाती हैं .
                       इसकी पत्तियों को पीसकर उनका रस त्वचा पर लगाकर मालिश करने से त्वचा के रोग नहीं होते .
         यह शरीर की रोग प्रति रोधक क्षमता को बढाती है . लीवर को ठीक रखती है और आँतों के infections को खत्म करती है .

 

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