Tuesday, September 30, 2014

त्वचा के रोग (skin diseases)

त्वचा सम्बन्धी रोग किसी भी उम्र में किसी भी व्यक्ति को हो सकते हैं । सोराइसिस , एक्ज़िमा , दाद, खुजली, शीतपित्त , एलर्जी , फोड़े ,फुंसी आदि त्वचा में होने वाली आम बीमारियाँ  हैं । इनसे छुटकारा पाने के लिए कई पेड़ -पौधे हमारे विशेष मददगार हो सकते हैं ।

मेंहदी(henna) ;   मेंहदी और नीम के पत्ते पीसकर प्रभावित त्वचा पर लगाने से आराम आता है । इसके अतिरिक्त 3-4 ग्राम मेंहदी और नीम के पत्ते उबालकर प्रभावित त्वचा को धोना भी चाहिए ।

करेला (bitter gourd); करेला रक्तशोधन का कार्य करता है । करेले के रस के साथ नीम के पत्तों का रस मिलाकर प्रभावित  त्वचा की मालिश करनी चाहिए । करेले के रस के स्थान पर करेले के पत्तों का रस भी ले सकते हैं । करेले या इसके पत्तों का रस थोड़ी मात्रा  में सुबह खाली पेट लेने से भी रक्त शुद्ध होता है और त्वचा संबंधी रोग ठीक हो जाते हैं ।

सदाबहार(periwinkle) ; अगर फोड़े फुन्सी हो गए हों तो सुबह खाली पेट सदाबहार के दो तीन पत्ते चबाकर पानी पी लेना चाहिए । ऐसा कुछ दिन करते रहने से फोड़े फुंसी ठीक हो जाते हैं । पत्ते चबा न सकें तो पत्तों की गोली सी बनाकर पानी के साथ निगल लें ।

गंभारी ; शीतपित्त हो तो गंभारी का फल और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर सुबह शाम 5 -5 ग्राम की मात्रा में लें । झाइयाँ या कील मुँहासे हों तो 5 ग्राम गंभारी की छाल और 5 ग्राम नीम की छाल को 200 गाम पानी में उबालकर, एक चौथाई रहने पर, यह काढ़ा पी लें । ऐसा कुछ दिन करते रहने से कील मुँहासे , झाइयों आदि से तो राहत मिलती ही है, साथ ही पेट भी साफ़ रहता है ।

रुद्रवंती (littoral bindweed ); सोराइसिस , eczema आदि बीमारियों में कायाकल्प क्वाथ के साथ रुद्रवंती मिलाकर काढ़ा बनाया जाए तो यह विशेष लाभ करता है । एलर्जी इत्यादि में भी यह लाभदायक है । थोड़ा नमक का परहेज करना चाहिए ।

पलाश (ढाक) flame of the forest); इसके पत्तों को पीसकर और उसका शरबत बनाकर पीते रहने से त्वचा के रोगों में आराम आता है ।

वरुण (three leaf caper )  ;  यह भी रक्तशोधक है । इसकी 3 ग्राम पत्तियों का काढ़ा या शरबत पीने से खाज , खुजली की बीमारी से मुक्ति मिलती है । यहाँ तक कि शरीर के अन्दर होने वाली खुजली को भी यह ठीक करता है । इसके फूल और कोमल पत्तियों को सुखाकर उसके 3 gm पावडर की चाय लेने से  त्वचागत रोग नहीं होते । 

द्रोणपुष्पी(गुम्मा ) leucas cephalotes ; इसका पंचांग (जड़ ,तना , फल ,फूल , पत्ते आदि ) 5 ग्राम + 3 ग्राम नीम के पत्ते मिलकर काढ़ा बनाकर पीने से eczema और एलर्जी में राहत मिलती है । दो गिलास पानी में यह डालकर पकाएं । जब आधा गिलास बच जाए तो पी लें । सुबह शाम यह काढ़ा लेने से आराम आता है । सांप या अन्य जहरीले कीड़े के काटने पर भी इस काढ़े से काफी राहत मिलती है ।

रतनजोत (jatropha , physic nut) ; इसका तेल प्रभावित त्वचा पर लगाने से आराम आता है । इसकी जड़ + नीम + कत्था(खैर) की लकड़ी को कूटकर , पानी में उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से त्वचा सम्बन्धी रोगों में आराम आता है । jatropha की जड़ ज्यादा न लें ; वरना उल्टी दस्त हो सकते हैं ।

शालपर्णी ; इसकी पत्ती 1 -2 ग्राम + 7 -8 नीम की पत्तियाँ + 2 या 3 काली मिर्च + 2 -3 तुलसी के पत्ते मिलाकर  बनाएं । इसे कुछ समय लगातार लेते रहने से त्वचा की बीमारियाँ ठीक होती हैं । इस काढ़े को लेते  ढीली मांसपेशियां भी ठीक हो जाती हैं ।

बकायन ; इसका प्रयोग करने से रक्त शुद्ध होता है । इसकी 10 ग्राम छाल को 200 ग्राम पानी में उबालें । 50 ग्राम शेष रहने पर प्रात: सायं पीयें ।

थूहर : इस पौधे की डंडी को तोड़ने पर दूध सा निकलता है । इसे सरसों के तेल में अच्छी तरह से मिलाकर , प्रभावित स्थान पर लगाने से खुजली में आराम आता है ।  फोड़े होने पर या सूजन होने पर इसके पत्ते गरम करके बांधे जा सकते हैं . 
            अगर खाज खुजली या चमला की बीमारी है तो 1-2 चम्मच सरसों के तेल में इसके दूध की 4-5 बूँदें अच्छी तरह मिलाकर लगायें . अगर eczema या psoriasis की बीमारी है तो इसका तेल बनाकर लगाएँ. इसे किसी बोरे में कूटकर दो लिटर रस निकालें.  इसे आधा लिटर सरसों के तेल में मिलाकर धीमी आंच पर पकाएँ . जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और त्वचा पर लगाएँ । 

ककड़ी  ;    जलने पर कच्ची ककडी काटकर लगा दें ।  तुरंत आराम आ जायेगा ।   चेहरे पर झाइयाँ हों तो माजूफल , जायफल और ककडी घिसकर , पेस्ट बनाकर चेहरे पर उबटन की तरह लगायें ।  झाइयाँ ठीक हो जाएँगी ।

दारू हल्दी(berberry)  ;    इसकी पत्तियों को पीसकर उनका रस त्वचा पर लगाकर मालिश करने से त्वचा के रोग नहीं होते । 

कूठ (costus) ;   त्वचा की किसी भी परेशानी के लिए इसके पत्ते को पीसकर उसका रस लगाएं ।  इससे eczema , दाद , खुजली , एलर्जी आदि सभी त्वचा के रोग ठीक होते हैं ।  इससे झाइयाँ , कील मुहासे आदि भी ठीक होते हैं ।  पत्ते न मिलें तो इसकी जड़ चन्दन की तरह घिसकर लगायें ।  इसको लगाने से घाव भी भर जाते हैं ।

चांगेरी (indian sorrel)  ;   मांसपेशियां ढीली पद गई हों , या झुर्रियाँ खत्म करनी हों तो चांगेरी के पत्तों के रस में सफ़ेद चन्दन घिसकर नित्यप्रति नियमित रूप से लगायें ।  त्वचा तंदरुस्त हो जायेगी ।  

शिरीष   ;    अगर काँटा निकल न रहा हो इसके पत्ते पीसकर पुल्टिस बाँध दें ।   
 psoriasis या eczema होने पर इसके पत्ते सुखाकर मिटटी की हंडिया में जलाकर राख कर लें ।  इसे छानकर सरसों के तेल में मिलाकर या देसी घी में मिलाकर प्रभावित त्वचा पर लगायें ।  इसके अतिरिक्त चर्म रोगों में , इसकी 10 ग्राम छाल 200 ग्राम पानी में कुचलकर , रात को मिट्टी के बर्तन में भिगोयें और सवेरे छानकर पीयें ।  

सत्यानाशी (argemone,maxican prickly poppy) ;  चर्म रोग या psoriasis को ठीक करने के लिए ताज़ी सत्यानाशी के पंचांग का रस एक किलो लें ।  इसे आधा किलो सरसों के तेल में धीमी आंच पर पकाएं ।  जब केवल तेल रह जाए तो इसे शीशी में भरकर रख लें और प्रभावित जगह पर लगाएँ।  खाज खुजली होने पर इसके पत्ते उबालकर उस पानी से नहाएँ । 

लौकी ( bottle gourd)  ;  त्वचा की किसी भी समस्या के लिए लौकी के पत्तों का रस पीना चाहिए । 

तुंबरु (toothache tree)  ;   अगर कोई रक्त विकार है , त्वचा की समस्या है , त्वचा काली हो गई है , या eczema हो गया है तो इसकी पत्तियों का काढ़ा पीयें ।  फोड़े फुंसी या मुहासे हो गये हों तो इसकी जड या कांटे घिसकर लगा लें । इससे निशान भी मिट जायेंगे ।

पंवाड या चक्रमर्द (foetid cassia)  ;      यह पौधा त्वचा संबंधी बीमारियों के लिए बहुत अच्छा है । कुछ दिन इसकी सब्जी मेथी के साग की तरह खाने से रक्तदोष , त्वचा के विकार , शीतपित्त , psoriasis , दाद खाज आदि से छुटकारा मिलता है । Psoriasis , eczema या खाज खुजली होने पर इसके पत्ते पानी में उबालकर नहायें । 

मुलेठी (licorice root)  ;  सूखी त्वचा ठीक करनी हो या सुन्दरता बढ़ानी हो तो मुलेठी का पावडर +मुल्तानी मिटटी +दूध +गुलाबजल मिलाकर त्वचा पर लेप करें ।  कुछ देर बाद धो लें ।  त्वचा निखर जायेगी ।  

खस (grass )  ;  चर्म रोग या eczema या allergy हो तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ में 2-3 ग्राम नीम मिलाकर काढ़ा बनाएं और सवेरे शाम पीयें । 

  भृंगराज    ;       इसके पत्तों का 10 ग्राम रस दिन में 2 बार लें ।  चर्म रोग में  इसका रस लाभ करता है । 

भारंगी ( turk's turban moon ) ;   इसके पंचांग का या फिर पत्तियों का काढ़ा लें |  यह चर्मदोष और रक्तदोष को दूर करता है | 

बेल   ;    पसीने में बहुत दुर्गन्ध आती हो तो इसके पांच-सात पत्तों का काढ़ा चालीस दिन तक पीयें । आप पाएंगे कि पसीने की दुर्गन्ध पूरी तरह चली गई है ।   

मकोय ( black nightshade)  ;  त्वचा सम्बन्धी बीमारियाँ भी इसके नित्य प्रयोग से ठीक होती हैं । इसकी  सब्ज़ी खाएँ  या इसके 10  ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ । 

तिल (sesme) ;  तिल के तेल में नीम के पत्ते जलाकर त्वचा पर लगाकर मलने से त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं । 

बाकुची (psoralea seeds) ; बाकुची या बावची कुष्ठ रोग और leukoderma के लिए बहुत अच्छी दवाई है . इसके  लिए इसके बीजों को शोधित कर लें . बीजों को गोमूत्र में तीन दिन रखें . तीन दिन बाद गोमूत्र बदल दें. ऐसा 7-10 बार करें . फिर बीजों को छाया में सुखाकर पीस लें . बाकुची के इन बीजों का एक ग्राम पावडर +आँवला पावडर +गिलोय का सत प्रतिदिन लें . इसके अलावा त्वचा पर भी बकुची का पावडर लगायें . परन्तु सीधे नहीं ; इससे फफोले पड़ सकते हैं . नारियल के तेल में बाकुची के बीजों का पावडर +कपूर +अदरक +गेरू ; ये सब मिलाकर लगायें . इससे ये दोनों बीमारियाँ ठीक होती हैं . अगर गोमूत्र में नीम के पत्तों का रस मिलाकर त्वचा पर लगाया जाए तो  सवेरे धूप में बैठने से और प्राणायाम करने से भी लाभ होता है . कुष्ट रोग के लिए आंवले के रस में कत्थे की छाल का काढ़ा छानकर मिलाएं और इसमें आधा ग्राम बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर लें . अगर leukoderma वंशानुगत है और कोई सफ़ेद दाग नज़र आ गया है तो , 100 gram बाकुची के  बीजों  का पावडर +400 ग्राम काला तिल मिलाकर रख लें . इसे प्रात:काल एक चम्मच लें । 

तुलसी (holi basil) ;  कुष्ट रोग में इसके चार -पांच पत्ते नीम के तीन चार पत्तों के साथ मिलाकर खाली पेट लें । दाद -खुजली हो तो नीम्बू और तुलसी का रस 4 : 1 के अनुपात में लें और त्वचा पर लगायें . इससे  त्वचा सुंदर भी होती है । 

आँवला  ;    अगर रक्तपित्त की बीमारी हो तो 10 gram आंवले का पावडर और 5 gram हल्दी मिला लें ।  इसे एक -एक चम्मच सवेरे शाम लें ।  इसके अतिरिक्त आंवला और नीमपत्र मिलाकर 10 ग्राम की मात्रा में लें ।  इसका काढ़ा सवेरे शाम पीने से कुष्ट रोग में भी लाभ होता है और रक्त शुद्ध हो जाता है । 
आमलिकी रसायन थोड़ी मात्रा में प्रतिदिन लिया जाए तो त्वचागत रोग नहीं होते । 

करेला (bitter gourd)  ;  इसका थोडा सा रस खाली पेट ले लिया जाए तो त्वचा सम्बन्धी विकार भी नहीं होते । 
 खाज व खुजली में  नीम का रस और करेले का रस  मिलाकर खाल पर मालिश की जाए तो आशातीत सफलता मिलती है ।   

अरण्ड (castor)  ;  त्वचा  फट जाए  या त्वचा पर काले धब्बे हों, तो  इसके तेल की मालिश करने से त्वचा बिलकुल ठीक हो जाती है । 

हल्दी (turmeric )  ;   त्वचा में कोई विकार है ;  तो एक ग्राम हल्दी सवेरे खाली पेट ले लें । त्वचा पर खुजली है तो aloe vera के गूदे में हल्दी को मिलाकर अच्छे से मलें ।     

मेंहदी (henna )  ;    त्वचा के सभी रोगों के लिए, चाहे वह eczema हो या psoriasis ; पैर की अँगुलियों के बीच में गलन हो , या फुंसियाँ हो ; सभी के लिए मेंहदी और नीम के पत्ते पीसकर लगाइए ।   हाथ में जलन होती हो , पसीना अधिक आता हो , बिवाई बहुत फटती हों तो इसके पत्ते पीस कर लेप करें ।  

छुईमुई (touch me not )  ;  इसका मुख्य गुण संकोचन का है ।  इसलिए अगर कहीं भी मांस या त्वचा का ढीलापन है तो,  इसकी जड़ का गाढ़ा सा काढा बनाकर वैसलीन में मिला लें और मालिश करें । 

गिलोय   ;   प्रतिदिन गिलोय का सेवन करने से त्वचा की बीमारी में लाभ होता है ।

अग्निशिखा  ;   इसके कन्द का लेप local anaesthesia का काम भी काम बखूबी करता है ।  

गूलर (cluster fig)  ;  शरीर पर जले हुए के निशान ठीक नहीं हो रहे हों तो इसके फल को घिसकर उसमें शहद मिलाकर जले हुए स्थान पर लगायें ।  त्वचा जलने से मांसपेशी कमज़ोर हो गई हो और खिंचाव पड़ता हो तो ,इसकी छाल और पत्तियां पीसकर लेप करें ।

पलाश (flame of the forest )  ;  त्वचा का रोग होने पर इसकी पत्तियां पीसकर शर्बत बनाकर पीएँ।  कहते हैं ; इससे कुष्ट रोग तक ठीक होता है ।  उसमें इसका तेल लगाया जाता है । खाज खुजली हो तो इसकी पत्तियां पीसकर लगा लो और पी भी लें ।  

सहदेवी  ;  अगर रक्तदोष है , खाज खुजली है , त्वचा की सुन्दरता चाहिए तो 2 ग्राम सहदेवी का पावडर खाली पेट लें ।  

अपराजिता ;   विशेषकर त्वचा के रोगों में यह बहुत लाभदायक है। इसे भुईनीम भी कहते हैं; क्योंकि यह कडवा बहुत होता है । यह रक्तशोधक है ।  

शीशम  ;  त्वचा का ढीलापन है तो इसके पत्तों को पीसकर लगाएँ।   
Eczema होने पर या खाज , दाद या त्वचा की कोई भी बीमारी होने पर इसकी लकड़ी का तेल लगाएँ।   बनाने की विधि आसान है। पुराने वृक्ष की लकड़ी कूटकर चौगुने पानी में धीमी आंच पर पकाएं।  एक चौथाई रहने पर बराबर का सरसों का तेल मिलाएं।  धीमी आंच पर पकाएं। जब केवल तेल रह जाए , तो शीशी में भरकर रख दें।  इसकी नित्य मालिश से सभी त्वचा संबंधी रोग दूर होते हैं। 

रतनजोत (onosma)  ;  इसका पावडर तेल में मिलाकर मालिश करने से त्वचा का रूखापन खत्म होता है। यदि त्वचा के रोगों से छुटकारा पाना हो तो इसकी जड़ का आधा ग्राम पावडर सवेरे शाम ले लें । 









Monday, September 29, 2014

नटखट नन्हा !


तुम्हें करबद्ध देख ,
प्रसन्नता का आवेग,
दादी रोक नहीं पाई ।
नन्हीं सी अंगड़ाई,
गोद में आने को ,
आतुर हो उठी।
सीने की नरम उष्णता ;
पौत्र  के वात्सल्य में डूबकर ,
असीमित आनन्द की,
सुखद अनुभूति दे ,
स्वयं का एहसास भुला गई।
खोई सी मैं ऋषि को निहारती;
पुचकारती ,दुलारती,
रसमग्न हो जाती हूँ ।
ऋषि , मेरे नन्हें पौत्र !
मैं अधूरी थी।
परिपूर्णता , सम्पूर्णता का आभास,
तुमने अनायास ही करा दिया।
अनुग्रहित हूँ मैं !!
निर्निमेष तुम्हारे नेत्र ,
शीघ्र परिचय को उत्सुक हैं।
शायद हम चिर परिचित हैं ;
यह सच है न ?
तुम मुस्कुरा रहे हो ।
नटखट कहीं के !