Tuesday, October 28, 2014

infertility and uterine diseases

गर्भाशय में संक्रमण हो या pregnancy न होने की समस्या हो ; कुछ पौधों की मदद से हम इन समस्याओं का निदान पा सकते हैं ।

महानिम्ब (बकायन) ;  किसी भी प्रकार का विकार अगर uterus में है तो इसके पत्तों को धोकर उनका रस 5-5 ग्राम की मात्र में प्रात: सायं लें । इससे सभी infections ,मासिक स्राव का अवरोध , अति रक्त स्राव ,अनियमितता आदि समस्याओं से छुटकारा मिलेगा । इसकी पत्तियां पानी में उबालकर , फिटकरी मिलाकर , उस पानी से अच्छी तरह से धोने पर infections खत्म होते हैं । इसके पत्ते , बीज और छाल को मिलाकर , 5 ग्राम की मात्रा में लें । इसका काढ़ा बनाकर सुबह शाम पीने से भी infections खत्म होते हैं । 
कायाकल्प वटी लेने से भी infections समाप्त  हो जाते हैं ।


कण्टकारी (कटैली) ;  इसके बैंगनी रंग के फूल होते हैं । अगर pregnancy न हो पा रही हो तो सफ़ेद फूलों वाली कंटकारी का पौधा इस्तेमाल करना बेहतर रहता है । वैसे बैंगनी फूलों वाली कंटकारी भी ठीक रहती है । periods आने से तीन  पहले इसकी 5 ग्राम जड़ का काढ़ा  खाली पेट लेना है और यह periods आने के 5 दिन बाद तक लेते रहना है । यह प्रयोग बिलकुल निरापद है । 
pregnancy होने के बाद उल्टी , खाँसी , जी मिचलाना , भूख न लगना आदि कई समस्याएँ हैं । तब इसके 5 ग्राम पंचांग ( गीला या सूखा ) को लेकर उसमे 5--6 मुनक्का मिलकर काढ़ा बनाएं । इसे पीने से इन समस्याओं से तो छुटकारा मिलेगा ही साथ में गर्भ की रक्षा भी होगी । 

धतूरा ;  बार बार abortion हो जाता हो तो धतूरे की जड़ को धागे के साथ कमर में बाँध लें । इससे abortion नहीं होगा । 

तुलसी ; संतान सुख के लिए 200 ग्राम तुलसी के बीजों में 500 ग्राम मिश्री मिलकर ; इस मिश्रण को 5-5 ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ सुबह शाम लें । इससे infertility की समस्या ठीक होती है । 

पुनर्नवा (साठी) ;  इस पौधे को शोथाग्नि भी कहते हैं । uterus में सूजन के लिए इसके छाया में सूखे हुए पंचांग के पाउडर को सुबह शाम 5-5 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी या दूध के साथ लें । इससे सूजन और संक्रमण ठीक हो जाएँगे ।

इलायची    ;     नपुंसकता की समस्या हो तो  इलायची + बला के बीज + तुलसी के बीज  मिलाकर प्रात:, शाम सेवन करें । 

अगस्त्य ( sesbania) ;    Uterus में infections  हों ,सूजन हो ,या फिर खुजली हो तो इसकी पत्तियों के रस को रुई में भिगोकर लगाना चाहिए । इससे vaginal infections  और swelling भी ठीक होती है ।  इसके पत्तों में नीम के पत्तों का रस मिलाकर धोने से हर प्रकार के infections खत्म होते हैं । 

कूठ (costus)  ;  पुरुषों को कमज़ोरी हो तब भी यह लाभदायक है । 

चांगेरी ( indian sorrel)  ;   अगर  Uterus या anus बाहर निकलने की समस्या हो तो , 5-10 ग्राम चांगेरी के पत्ते के रस को छानकर उसमें फिटकरी मिलाकर रुई से अच्छी तरह धोएं ।  मूलबन्ध लगाकर प्रतिदिन प्राणायाम करें।  इससे आशाजनक  परिणाम आ सकते हैं । 

अमलतास ( indian sorrel)  ;  यौन दुर्बलता होने पर अमलतास के फली का 15-20 ग्राम गूदा रात को भिगो दें व सवेरे मिश्री या शहद मिलाकर लें ।  धातुक्षीणता या दुर्बलता होने पर इसकी फलियों के बीजों को भूनकर , पावडर करके , बराबर मिश्री मिला लें । इसे सवेरे शाम एक -एक ग्राम ले सकते हैं ।  

सत्यानाशी (argemone, maxican prickly poppy) ;  अगर शक्ति का ह्रास महसूस होता हो तो इसकी जड़ का पावडर मिश्री के साथ लें । नपुंसकता के लिए इसके जड़ के टुकड़े को बड़ के रस की एक भावना (भिगोकर सुखाना)  दें ।  पान के पत्तों के रस की दो भावनाएं दें ।  फिर चने जितना भाग सुबह शाम दूध के साथ लें ।  

दूधी, दूधिया घास,(milk hedge) ;     गर्भधारण में समस्या आ रही हो तो इसका पावडर नियमित रूप से लें या इसका काढ़ा बनाकर लें ।   

धातकी (woodfordia)  ;  अगर संतानप्राप्ति न हो पा रही हो तब यह पेड़ लाभदायक है ।   नील कमल का फूल और धातकी  का फूल बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री के साथ कुछ समय लेने से गर्भस्थापन  होने में आसानी रहती है |  

तेजपत्ता (bay leaves) ;  गर्भाशय की शुद्धि के लिए अजवायन +सौंठ +तेजपत्ता उबालकर पिलायें । 

भारंगी ( turk's turban moon)  ;   Fibroid या cyst खत्म करनी हो तो , 3 ग्राम भारंगी के पंचांग में थोडा तेल मिलाकर लगा लें ।   हर्पीज़ की बीमारी में पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें ।   

तिल (sesame )  ;  हर्पीज़ की बीमारी में इसके पत्ते पीसकर लगा दें और पत्तों का काढ़ा पीयें ।  

बथुआ (chenopodium)  ;  यौनदुर्बलता हो तो 20 ग्राम बीजों का काढ़ा शहद के साथ लें ।  या फिर 5 ग्राम बीज सवेरे दूध के साथ लें । 

सफ़ेद प्याज (white onion)  ;  नपुंसकता खत्म करने के लिए 3 प्याज 250 ग्राम दूध में पकाएं । मावा बनने पर देसी घी में भूनें ।  फिर 3-4 चम्मच शहद मिलाएं और रोज़ दूध के साथ लें । 
  
पीपल (sacred fig )  ;  इसके फल का पावडर लेने से sperm count बढ़ जाता है , गर्भाशय का संक्रमण खत्म होता है ।  अगर संतान सुख न हो तो भी इसके फल का पावडर लाभ करता है । पीपल पुरुष जाति का हो तो पुराना होने पर इसकी जड़ें नीचे लटक जाती हैं ; इसे इसकी दाढ़ी कहते हैं ।  अगर संतान न हो रही हो तो इसकी दाढ़ी 1 gm +3gm फल का पावडर लेकर  गाय के दूध के साथ सेवन करें ।  यह periods शुरू होने के 15 दिन तक लेना है । अगर बेटा चाहिए तो बछड़े वाली गाय का दूध लें और अगर बेटी चाहिए तो बछिया वाली गाय का दूध लें । 

धतूरा (prickly poppy)  ;   पैर के तलुओं पर इसका तेल मलने से नामर्दी का इलाज़ किया जाता है ।  

कंटकारी , कटैली (yellow berried nightshade )  ;    अगर pregnancy नहीं हो पा रही , तो इसकी पांच ग्राम जड़ को चार सौ ग्राम पानी में उबालकर काढ़ा बनायें ।  इसे periods के तीन दिन पहले से शुरू करें ;  और लगातार आठ दिन तक लें ।  

छुईमुई (touch me not)  ;   uterus बाहर  आता  है  तो इसकी पत्तियां पीसकर रुई से उस स्थान को धोएँ ।  Uterus में कोई विकार है तो , इसके एक ग्राम बीज सवेरे खाली पेट लें ।

अपामार्ग , लटजीरा  ;   अगर uterus में सूजन है तो इसके पत्तों का रस लगायें और इसके पत्तों के काढ़े से धोएं । 
                                                            गर्भ धारण नहीं होता तो , periods के शुरू के चार दिनों तक इसकी दस ग्राम जड़ को 200 ग्राम दूध में पकाकर लें . यह खाली पेट लेना है ; केवल पहले, दूसरे और तीसरे महीने तक.  फिर अच्छा परिणाम सामने आ सकता है | 

पलाश (flame of the forest )  ;   फूल का पावडर विषनाशक और पौष्टिक होता है . यह कामोद्दीपक होता है और sexual disorders भी ठीक करता है |  इसका  पावडर मिश्री के साथ मिलाकर 1 चम्मच दूध के साथ ले सकते हैं . इससे प्रमेह , white discharge आदि भी ठीक होते है| 
संतानहीनता होने पर, इसके बीज के पावडर में मिश्री मिलाकर 1-1 चम्मच सवेरे शाम लें ।    

 अपराजिता ;  गर्भाशय बाहर आता हो तो इसके पत्ते +चांगेरी घास (खट्टा मीठा) +फिटकरी उबालकर , उस पानी से धोएं।  सूजाक या संक्रमण हो तो इसके पत्ते उबालकर धोएं।  

कचनार  ;  कचनार की छाल शरीर की सभी प्रकार की गांठों को खत्म करती है ।  10 gram गीली छाल या 5 ग्राम सूखी छाल 400 ग्राम पानी में उबालें जब आधा रह जाए तो पी लें।  इससे सभी तरह की गांठें ऊपरी या भीतर की , कैंसर की गांठ, गर्भाशय की गांठें तो खत्म होती ही हैं । साथ ही हारमोन भी ठीक हो जाते हैं ।   

गोखरू  ;  इसका काढ़ा गर्भाशय के विकारों को ठीक करता है।  अगर 10 ग्राम गोखरू के बीज और 2 ग्राम अजवायन मिलाकर काढ़ा पीया जाए तो delivery के बाद गर्भाशय को शुद्ध करता है। 




Monday, October 27, 2014

periods and pregnancy related problems

कुछ महिलाओं को प्रत्येक माह समस्याओं से गुजरना पड सकता है ; जैसे कम periods आना , इस दौरान बहुत दर्द होना , इसकी अधिकता या अनियमितता होना । इन सभी परेशानियों के निदान कुछ जड़ी बूटियों में हैं ;


श्योनाक (अरलू) ;  इस वृक्ष की छाल वातशामक होती है । यह प्रसूतजन्य बीमारियों को दूर करती है । इसकी छाल को दशमूल क्वाथ में मुख्य घटक के रूप में डाला जाता है । Periods की अनियमितता हो या कम periods आने की समस्या हो तो दशमूल क्वाथ के साथ रज: प्रवर्तिनी वटी भी लें । केवल इसकी छाल का काढ़ा नियमित रूप से लेने से भी आराम आता है ।

तिल ;   तिल उष्ण प्रकृति के होते हैं । ये बहुत पौष्टिक भी होते हैं । काले तिल को 5 ग्राम की मात्रा में लेकर , उन्हें मोटा मोटा कूट लें । periods के 4 -5 दिन पहले इसका काढ़ा बनाकर सवेरे शाम लें । इससे periods के दौरान होने वाले दर्द से राहत मिलती है । periods regular हो जाते हैं । इसके कोई भी side effects नहीं होते । इस दौरान कोई भी pain killer न लेकर , यह काढ़ा पीना चाहिए । इससे महिलाओं के hormones का असंतुलन भी ठीक हो जाता है ।

उलट कम्बल (योनिपुष्पा)  ;  स्त्री रोगों के लिए यह पौधा एक अचूक दवा है । periods की परेशानियों में इसकी मोटी टहनी का छिलका या जड़ का छिलका लें । इसे 5 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 400 ग्राम में उबालकर ,काढ़कर ,इसका काढ़ा बनाकर सवेरे शाम पीएँ । दर्द अधिक होता है तो 5-7 काली मिर्च भी मिला लें फिर काढ़ा बनाएँ । इसके प्रयोग से स्त्रियों के hormones सम्बन्धी सभी विकृतियाँ दूर होती हैं । स्वभाव में आई उग्रता व चिड़चिड़ापन भी ठीक हो जाता है । स्त्री रसायन नामक दवाई में भी इसी का प्रयोग होता है ।
 ज़्यादा भयानक दर्द या over bleeding की परेशानी हो तो इसकी पत्तियों का रस 2-3 चम्मच की मात्रा में सवेरे शाम लें ।

चित्रक ;  पंचकोल में चित्रक मुख्य द्रव्य होता है । periods सम्बन्धी समस्याओं के लिए , चित्रक की छाल का काढ़ा , या पंचकोल का काढ़ा , या दशमूल क्वाथ का काढ़ा लिया जा सकता है । असमय periods हों , कम हों या अधिक हों , या देरी से हों तो 200 ग्राम दशमूल क्वाथ + 100 ग्राम पंचकोल ;  इन दोनों को मिला लें । इस पाउडर  को 7-8 ग्राम की मात्रा में लेकर काढ़ा बनाएँ। इसे सुबह शाम दोनों समय पीयें ।
अधिक दिक्क्त है तो रज: प्रवर्तिनी वटी भी ले लें ।

पीपल ;  पीपल के पेड़ के नीचे 3 -4 घंटे  बैठने से ही over bleeding की समस्या ठीक होने लगती है ।
इसकी कोमल पत्तियों का 5-6 चम्मच रस मिश्री या शहद मिलाकर लेने से भी periods सम्बन्धी समस्याएँ ठीक हो जाती हैं ।   ताज़ा पत्ती न मिलें तो एक चम्मच पत्तियों का पावडर लें ।  इससे दुर्बलता भी दूर होती है । 

सफ़ेद प्याज ;  अगर periods अनियमित हों या दर्द अधिक होता हो तो सफ़ेद प्याज के रस को गर्म करके शहद के साथ ले लें ।

शरपुंखा (प्लीहशत्रु ) ; अगर regular periods नहीं आ रहे हैं तो इसके पंचांग का काढ़ा सुबह शाम पीने से आराम आता है ।

गुलदाउदी (सेवती , चंद्रमल्लिका) ;  periods में दर्द होता हो या नियमित रूप से न आता हो तो इसके फूल व पत्तियां घोटकर पीएँ । अगर ताज़ा न मिले तो इसकी  पांच ग्राम सूखी फूल पत्तियाँ लें । उनका काढ़ा बनाकर , छानकर पीएँ ।

अकरकरा ; कोई भी periods सम्बन्धी समस्या हो या hormones की अनियमितता हो तो अकरकरा +गाजर के बीज +शिवलिंगी के बीज +पुत्रजीवक के बीज  , ये सभी बराबर मात्रा में मिलाकर एक एक चम्मच सवेरे शाम लें ।

बथुआ ;  pregnant महिलाओं के लिए बथुए का साग निषेध होता है । यह गर्म प्रकृति का होता है । लेकिन अगर periods रुके हुए हैं या अनियमित हैं , तो इसका प्रयोग करना चाहिए । इसके लिए बथुए के बीज + सौंठ मिलाकर कूट लें । 15-20 ग्राम पाउडर लेकर उसका काढ़ा बनाकर पीएं । periods खुलकर होंगे ।
अगर periods के समय दर्द बहुत अधिक होता हो तो इसके 10 ग्राम बीज का काढ़ा बनाकर पीएँ । ऐसा दिन में  2-3 बार करें । अगर रक्त की कमी हो गई है तो 25-50 ग्राम बथुए के रस में पानी मिलकर पिएं । बहुत अधिक बथुए का रस नहीं पीना चाहिए अन्यथा दस्त लग सकते हैं ।

गाजर  ;  Periods में दर्द होता हो या समय पर न आते हों तो नियमित रूप से गाजर की सब्जी खानी चाहिए । इससे हारमोन की सभी गडबडी दूर होती हैं । Delivery के बाद अजवायन और गाजर के बीजों का काढ़ा लिया जाए तो uterus की ठीक प्रकार शुद्धि होती है और infections नहीं होते ।

ककड़ी  ;    Pregnancy में अफारा होने पर ककडी की जड़ों को  धोकर, कूटकर, काढ़ा बनाकर , नमक मिलाकर लें ।  Pregnancy या delivery की pain से राहत पानी हो तो delivery के तीन महीने पहले से ही ;  3 ग्राम ककडी की जड़ + 1 कप दूध +1 कप पानी मिलाकर मंदी आंच पर पकाएं । जब आधा रह जाए तो पी लें ।  ऐसा करने से पीड़ा से तो राहत मिलेगी ही , शिशु भी स्वस्थ होगा ।

बन्दा (curved mistletoe);  periods में excess bleeding हो रही हो तो इसकी 1-2 पत्ती पीसकर , शर्बत बनाकर , कुछ दिन तक लें . इसका अधिक प्रयोग न करें ।

कूठ (costus)  ;   Periods में दर्द होता हो या कम होता हो तो , periods शुरू होने से 10-15 दिन पहले इसे एक एक ग्राम सुबह शाम लेना प्रारम्भ कर दें ।  अनियमित periods होने पर भी इसे लेने से आराम आता है। 

चांगेरी ( indian sorrel)  ;   रक्त प्रदर होने पर या over bleeding होने पर,  इसके पत्तों को पीसकर मिश्री मिलाकर पीयें। 

अमलतास (purging cassia);  Delivery के समय इसकी 20-30 ग्राम फली को कूटकर 400 ग्राम पानी में पकाएं ।  जब रह जाए 100 ग्राम ; तो छानकर सुविधापूर्वक 1-2 बार ले लें ।  इससे delivery के समय आसानी हो जाती है ।  

गंभारी ( verbenaceae) ;  यह दशमूल के द्रव्यों में से एक है ।  प्रसव के बाद इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए । 
गर्भधारण  न होता हो तो , मुलेठी और गंभारी की छाल मिलाकर 5 ग्राम लें ।  इसे 200 ग्राम पानी में मिलाकर काढ़ा सवेरे शाम लें ।

शिरीष  ;   periods में बहुत दर्द हो तो period शुरू होने के चार दिन पहले इसकी 10 ग्राम छाल का 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें । इसे period शुरूहोने पर लेना बंद कर दें ।

बबूल या कीकर ;     Periods की समस्या होने पर कीकर की छाल का काढ़ा पीयें। 

निर्गुण्डी (vitex negundo) ;   Periods में दर्द होता हो तो इसकी 4-5 पत्तियों को छाया में सुखाकर 600 ग्राम पानी में उबालें |  जब रह जाए 150 ग्राम तो पीयें |  यह सवेरे शाम कुछ दिन पी लें |  अगर अधिक परेशानी है तो इसके बीजों का पावडर 2-2 ग्राम की मात्रा में सवेरे शाम लें |  कमर दर्द में इसके पत्तों का काढ़ा लें | 

नागदोन  ;    इसके तीन छोटे पत्ते काली मिर्च के साथ सवेरे सवेरे पांच दिन तक खा लें या फिर एक चम्मच रस सवेरे खाली पेट लें । मासिक रक्तस्राव अधिक हो तब यह प्रयोग किया जा सकता है।   

जलजमनी (broom creeper)  ;    .Periods जल्दी आते हों , overbleeding हो पेशाब में जलन हो , गर्मीजन्य बीमारी हो , स्वप्नदोष हो या फिर धातुक्षीणता हो तो इस रस को 10-15 दिन तक भी लिया जा सकता है।  इसके अतिरिक्त टहनियों समेत इसे सुखाकर , कूटकर 2-2 ग्राम पावडर मिश्री मिलाकर दूध के साथ लिया जा सकता है ।  

पिप्पली (long pepper)  ;  कम periods  होने पर पिपली + पीपलामूल (पिप्पली की जड़)  डेढ़- डेढ़ ग्राम मिलाकर,  काढ़ा बनाकर ,  पीयें ।  इससे दर्द भी नहीं  होता  periods भी नियमित हो जाते हैं ।  थोडा गर्म होता है तो गर्मी में कुछ कम मात्रा में लें ।

चित्रक (leadwort)  ;   मासिक धर्म अनियमित हों या देर से आते हों तो दशमूल 200 ग्राम और पंचकोल(चित्रक , चव्य, पीपल ,पीपलामूल , सौंठ ) 100 ग्राम मिलाकर रख दें । इस मिश्रण का 7-8 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम पीयें । प्राणायाम करें ।  रज:प्रवर्तिनी वटी भी सवेरे शाम लें . इससे अवश्य लाभ होता है ।  

भृंगराज   ;  इसका 2-3 चम्मच रस और मिश्री मिलाकर शर्बत कुछ दिन लेने से गर्भपात के समस्या हल हो जाती है ।  

 बेल   ;    दशमूल में भी बेल की छाल का प्रयोग होता है ।  दशमूल का काढ़ा वात की बीमारियों में सूजन में और दर्द में बहुत लाभकारी है ।  नव प्रसूता इसका सेवन कर लें तो शरीर तो जल्दी सामान्य हो ही जाता है ; साथ ही कोई प्रसूत जन्य रोग भी नहीं होता ।  इसके लिए 10 ग्राम काढ़े को 400 ग्राम पानी में पकाएं । जब रह जाए एक चौथाई , तो पी लें ।   

शरपुंखा  ;    Abnormal periods की समस्या इसके पंचांगके काढ़े को लेने से ठीक होती है ।  

गुलदाउदी (chrysanthemum)  ;   मासिक धर्म अनियमित हो या दर्द रहता हो तो इसके फूलों व पत्तियों का काढ़ा पीयें ।  

दूब ( grass)  ;  गर्भपात की आशंका हो तो इस घास के 4-5 चम्मच रस में मिश्री मिलाकर दिन में तीन चार बार लें ।  

तिल (sesame)  ;   हारमोन ठीक न हों या फिर मासिक धर्म की परेशानी हो तो , 5 ग्राम काले तिल मोटा कूटकर काढ़ा बनाकर पीयें . निश्चित तिथि से 5-6 दिन पहले लेना प्रारंभ कर दें . Periods  के दौरान दर्द कम होगा ।  

अकरकरा (pellitory root)  ;  मासिक धर्म की समस्या हो या हारमोन का असंतुलन हो तो अकरकरा . गाजर , शिवलिंगी और पुत्रजीवक के बीज बराबर मात्रा में मिलाकर 1-1 ग्राम सवेरे शाम लें ।  

बथुआ (chenopodium) ;  गर्भवती महिलाओं को बथुआ नहीं खाना चाहिए ।  
Periods रुके हुए हों और दर्द होता हो तो इसके 15-20 ग्राम बीजों का काढ़ा सौंठ मिलाकर दिन में दो तीन बार लें ।  
Delivery के बाद infections  न हों और uterus की गंदगी पूर्णतया निकल जाए ; इसके लिए 20-25 ग्राम बथुआ और 3-4 ग्राम अजवायन को ओटा कर पिलायें।  या फिर बथुए के 10 ग्राम बीज +मेथी के बीज +गुड मिलाकर काढ़ा बनायें और 10-15 दिन तक पिलायें ।  एनीमिया होने पर इसके पत्तों के 25 ग्राम रस में पानी मिलाकर पिलायें । 

सफ़ेद प्याज (white onion) ;  Periods में दर्द या अनियमितता हो तो  इसका रस गर्म करके शहद के साथ लें । 

भुट्टा (corn ) ;  भुट्टे के बालों का प्रयोग periods की समस्या को ठीक करता है । 

करेला (bitter gourd)  ;  करेले के सब्जी नियमित रूप से लेने पर  नई माताओं को भरपूर दूध आता है ; साथ ही गर्भाशय की सूजन और संक्रमण से छुटकारा मिलता है । 

अरण्ड (castor)  ;  गर्भिणी  स्त्री या नव  प्रसूता  के स्तनों  पर इसकी  गिरी को पीसकर लेप किया जाए तो  गांठें नहीं पड़ती और दूध भी अधिक आता है.Nipple अगर crack हो जाए तो इसका तेल लगा लेना सर्वोत्तम इलाज है ।  गर्भिणी स्त्री को अगर पीलिया हो जाए तो इसके 5 ग्राम पत्तों का रस  या  काढ़ा ले  सकती है ।  
मासिक धर्म की पीड़ा में इसके एक पत्ते को दो सौ ग्राम पानी में पकाएँ ।  जब रह जाए पचास ग्राम; तो पी लें ।  उबलते समय अजवायन भी डाल दें तो अच्छा रहेगा ।  पेट पर इसका पत्ता गर्म करके बाँध लें , तो  दर्द बिलकुल ही समाप्त हो जाएगा । 

मेथी (fenugreek)  ;  delivery के बाद  मेथी और अजवायन को मिलाकर बनाया हुआ काढ़ा लिया जा सकता है । 

धनिया (coriander)  ; अगर bleeding ज्यादा हो रही हो धनिए के पत्तों का चार पांच चम्मच जूस थोडा कपूर मिलाकर ले लें।  pregnency  में उल्टी आती हो तो धनिए का पावडर और मिश्री मिलाकर एक चम्मच पानी या दूध के साथ लें । 

धतूरा (prickly poppy) ;   इसकी जड़ को कमर में बाँध लेने भर से गर्भपात की समस्या खत्म हो जाती है । 

 घृतकुमारी (aloe vera )  ;  इसके गूदे को खाने से शरीर के हारमोन भी संतुलित रहते हैं ।  यदि पीरियड के दौरान अधिक bleeding हो तो प्रात:काल 20 ग्राम गूदे में 3 ग्राम गेरू का पावडर मिलाकर ले लें ।  

कंटकारी , कटैली (yellow berried nightshade )  ;  गर्भावस्था में उलटी आती हों , जी मिचलाता हो या फिर बार बार abortion होने की समस्या हो तो , इसे सूखा पांच छ: ग्राम लेकर उसमें पांच छ: मुनक्का मिलाएं।  इसे चार सौ ग्राम पानी में पकाएं ।  एक चौथाई रहने पर खाली पेट पी लें ।

पालक (spinach )  ;   ऐसा कहा जाता है कि pregnancy में इसे नहीं खाना चाहिए ।  शायद इससे नवजात शिशु के वर्ण पर कुछ असर होता हो ।  

अंजीर (fig)  ;   periods irregular हों तो दशमूलारिष्ट के साथ साथ अंजीर भी लेते रहें ।

छुईमुई (touch me not )  ;   hydrocele  की समस्या हो या सूजन हो तो  पत्तियों को उबालकर सेक करें या पत्तियां पीसकर लेप करें ।   
यदि अधिक bleeding हो रही है periods की, तो इसकी 3-4 ग्राम जड़ पीसकर उसे दही में मिलाकर प्रात:काल ले लें ,या इसके पांच ग्राम पंचांग का काढ़ा पीएँ। 
                                                           

अपामार्ग , लटजीरा  ;    गर्भ धारण नहीं होता तो , periods के शुरू के चार दिनों तक इसकी दस ग्राम जड़ को 200 ग्राम दूध में पकाकर लें . यह खाली पेट लेना है ; केवल पहले, दूसरे और तीसरे महीने तक.  फिर अच्छा परिणाम सामने आ सकता है . और अगर delivery होने वाली है तो इसकी जड़ कमर में बाँध लें ; नाभि की तरफ . Delivery होते ही तुरंत इसे हटा दें .    इससे आसानी रहेगी 


अग्निशिखा   ;    Delivery के समय नाभि पर इसके कन्द का लेप करें तो बहुत आसानी से delivery हो जाती है ।    

गूलर (cluster fig)  ;  कहीं से भी रक्त जाता हो तो इसकी पत्तियों का रस मिश्री के साथ लें । गर्भावस्था में गर्भपात होने का डर हो तो इसकी दूध की 2-3 बूँद बताशे में डालकर खाएं या फिर इसकी कोमल पत्तियों का रस लें ।  इसका प्रयोग निरापद है । 

पलाश ( flame of the forest )  ;  इसके गोंद को कमरकस कहते हैं . रक्त प्रदर(bleeding ) हो तो इसे आधा ग्राम की मात्रा में लें |  

अपराजिता ;   गर्भाशय बाहर आता हो तो इसके पत्ते +चांगेरी घास (खट्टा मीठा) +फिटकरी उबालकर , उस पानी से धोएं।   Overbleeding  हो या जल्दी जल्दी periods आते हों , तो इसकी 4-5 पत्तियों का रस लेते रहें।  Delivery होने वाली हो तो इसकी जड़ धागे में बांधकर कमर में बाँध लें और बाद में तुरंत हटा दें।  सूजाक या संक्रमण हो तो इसके पत्ते उबालकर धोएं।  

श्योनाक , टोटला  ;   Delivery के बाद uterus में infections  न हों और यह अपनी पहली अवस्था में आ जाए ; इसके लिए  2 ग्राम श्योनाक +1 ग्राम सौंठ +2-3 ग्राम गुड का काढ़ा पीयें।  इससे भूख भी ठीक हो जाती है।  यह दशमूल का मुख्य घटक है।  delivery के बाद इसकी छाल का काढ़ा लेने से गर्भाशय ठीक रहता है और periods भी ठीक होते हैं । 
                     
इन सभी जड़ी बूटियों के प्रयोग के साथ साथ प्राणायाम भी अवश्य करें ; विशेषकर कपालभाति प्राणायाम ।


Friday, October 24, 2014

दाँत व मसूढ़े (teeth and gum)

दाँत में दर्द होना , मसूढ़ों से खून आना , पायरिया आदि कुछ ऐसी बीमारियाँ हैं जो व्यक्ति को बहुत परेशान कर सकती हैं । कुछ जड़ी बूटियाँ ऐसी हैं , जो इससे काफ़ी राहत दिलाती हैं :

अकरकरा ; अगर देखना है कि आयर्वेद तुरन्त चमत्कार दिखा सकता है तो दाँत में दर्द होने पर , एक अकरकरा का फूल दाँतों में रखकर चबाएँ और लार बाहर निकालते रहें । आप देखेंगे कि दांत का दर्द तुरन्त ठीक हो जाता है । अगर प्रतिदिन सुबह सुबह अकरकरा का एक फूल दांतों से चबाएँ और उसी लार से मसूढ़ों की मालिश करें , तो दांतों और मसूढ़ों की समस्या ही नहीं आएगी । इससे मुँह की सफाई भी अच्छी तरह से हो जाती है ।
अकरकरा के फूल + फिटकरी (इसे गर्म तवे पर फुला लें ) + लौंग + नमक ; इन सबका बिलकुल बारीक मंजन बनाकर हर रोज़ दांतों पर करने से दांतों में कोई भी विकार नहीं होने पाते ।
अकरकरा के फूल पत्ते आदि उबालकर काढ़ा पीएँ और कुल्ले करें , तो मुख की दुर्गन्ध खत्म होती है । इस काढ़े के गरारे करने से गला भी अच्छा हो जाता है ।
तुलसी ;  अगर दांतों में दर्द या पायरिया आदि बीमारी है तो तुलसी के पत्ते , काली मिर्च और नमक मिलकर थोड़ा कूटकर , एक रुई के फाहे में रखें । अब इस फाहे को दांत में दबा लें और लार बाहर निकल दें । इससे आराम आता है । इस लार से मसूढ़ों की मालिश भी कर सकते है । 3-4 पत्ते तुलसी +3-4 काली मिर्च +2-3 लौंग + नमक मिलाकर उबालें । इस पानी से कुल्ले करें और मसूढ़ों की मालिश करें। इससे दांत और मसूढ़े स्वस्थ होंगे । इससे गरारे करने पर गला भी ठीक रहेगा ।

गन्ना ; सुबह सुबह थोड़ा सा गन्ना रोज़ चूसा जाए तो दांत और मसूढ़े तो स्वस्थ होते ही हैं ; हाजमा भी ठीक रहता है ।

वचा ;   बच्चों के दांत निकलते समय बहुत परेशानी होती है । वचा की जड़ का पाउडर  आधा ग्राम + सुहागे की खील फुलाकर , बिल्कुल बारीक करके , बच्चे के मसूढ़ों पर हल्के हल्के मलें । इससे दाँत  निकलते समय कोई परेशानी नहीं होगी । दाँत निकलते समय बच्चों को जो दस्त लगते हैं , उनसे भी छुटकारा मिलेगा । कोई परेशानी या कष्ट नहीं होगा ।

बावची (बाकुची) ;  बावची जंगल में खूब मिलती है । इसकी जड़ पीसकर , उसमें फिटकरी की खील मिलाकर , बारीक मंजन बना लें । इस मंजन को हर रोज़ दांतों पर करने से दांतों में कीड़े नहीं लगते , पायरिया नहीं होता और दांतों का दर्द दूर हो जाता है ।

अपामार्ग (चिरचटा)  ;  यह seasonal पौधा है । इसकी डंडी की दातुन हर रोज़ करने से बुढ़ापे तक दांत बिल्कुल सही सलामत रह सकते हैं । संस्कृय के ग्रंथों में तो अपामार्ग की दातुन को ही सर्वश्रेष्ठ बताया गया है । ताज़ी दातुन मिल सके तो बहुत अच्छा है , अन्यथा इसकी डंडियाँ सुखाकर रख दें । रात को पानी में भिगोकर रखें और सुबह उठकर उस डंडी से दातुन करें । वैष्णवी परम्परा में तो अपामार्ग को बहुत पवित्र भी माना गया है । बहुत से आदिवासी और ग्रामीण लोग इसी से ही दातुन करते हैं और उनके दांत बुढ़ापे तक स्वस्थ रहते हैं । कई शहरों में तो अपामार्ग का नाम ही दातौन है ।
मसूढ़ों या जाड़ में दर्द हो या पायरिया हो ; इसकी दातुन को पांच मिनट तक चबाते रहें । इसकी लार मसूढ़ों में अच्छी प्रकार लगने दें । मसूढ़ों की मालिश करें ।
अगर मुँह में छाले हो गए हैं तो इसकी पत्तियाँ अच्छी तरह चबाकर थूक दें । छाले ठीक हो जाएँगे । दांत में cavity है तो इसके पत्तों का रस रुई में लगाकर cavity में रख दें ।  cavity भर जाती है । 

पियाबासा ;  जंगलों में चार प्रजातियों का पियाबासा मिलता है । इसमें से सफेद , काला और पीला ; ये तीन प्रजातियां अधिक प्रयोग में लाई जाती हैं । इसकी 8-10 पत्तियां पानी में उबालकर , कुल्ला व गरारे करने से दाँत का दर्द , मसूढ़ों का दर्द आदि ठीक हो जाते हैं ।
इसकी पत्तियों का स्वाद थोड़ा तीखा होता है । इसकी 1-2 पत्तियाँ + आधा अकरकरा का फूल ; दोनों मिलाकर चबाएँ और लार को बाहर निकाल दें । इससे मुख की शुद्धि होती है , दुर्गन्ध दूर होती है , मसूढ़ों का infection खत्म होता है और मुंह में कम लार बनती हो तो वह भी ठीक हो जाती है ।
इसके पत्ते पीसकर उसमें सरसों का तेल + हल्दी +नमक मिलाकर पेस्ट बनाएँ । इस पेस्ट से रोज़ दांत साफ़ करने से दांतों और मसूढ़ों की कोई परेशानी नहीं होती ।

अमरुद ;  अगर मसूढ़ों में दर्द हो तो इसकी पत्तियाँ कूटकर , उसमे 1-2 लौंग और नमक मिला लें । इसे पानी में उबालकर , उस पानी से कुल्ले व गरारे करें । यह बाजार के सभी mouthwash से बेहतर है । इससे मसूढ़े ठीक हो जाते हैं और मुंह की दुर्गन्ध दूर होती है।
अगर मुंह में छाले हो गए हों तो अमरुद की कोमल पत्तियाँ चबाएँ । इसकी लार चाहे तो निगल लें या फिर बाहर निकाल दें । इससे मुंह के छाले ठीक हो जाएंगे । इसके पत्तों को चबाने से दांत का दर्द भी ठीक हो जाता है । अमरुद के पत्तों के साथ लौंग मिलाकर , कूटकर , काढ़ा बनाएं । इस पानी से कुल्ले करने से दांत का दर्द ठीक होता है ।


पित्त पापड़ा ( hedgi  fumitori )   ;    दाँत में दर्द है या मसूढ़ों में संक्रमण है तो इसे चबा चबाकर मसूढ़ों के चारों तरफ अच्छी तरह घुमाएँ ।  फिर इसे निगल लें ।  इससे पेट भी ठीक रहेगा । 

चांगेरी (indian sorrel)  ;   दांतों को मजबूत करना है तो , चांगेरी +लौंग +हल्दी +सेंधा नमक +फिटकरी ;  इन सबको मिलाकर महीन पावडर करें और नित्यप्रति मंजन करें . इससे मसूढ़े भी मजबूत होंगे । मसूढ़ों में पस हो जाए तो इसके पत्तों के रस से मसूढ़ों की मालिश करें या फिर इसके पत्तों के रस में फिटकरी मिलाकर कुल्ले करें ।  

कीकर या बबूल   ;    दांतों को स्वस्थ रखने के लिए इसकी दातुन बहुत अच्छी मानी जाती है . मसूड़े फूल गये हों तो इसकी पत्तियां चबाकर मालिश करने के बाद थूक दें . इससे मुंह के छाले भी ठीक होते हैं ।                

ममीरा ( gold thread cypress)  ;    दांत दर्द हो या मुंह में घाव और छाले हो गये हों तो इसकी पत्तियां चबाएं . इससे मसूढ़े भी मजबूत होंगे ।  

तुम्बरू (toothache tree) ;    इसके दातुन से दांत साफ़ करते रहने से लारग्रंथियों का स्राव बढ़ जाता है ।  इसके दो चार बीजों को मुंह में रखने से भी लार का स्राव बढ़ जाता है जो कि दांतों को भी स्वस्थ रखता है और पाचन में भी सहायक है ।  दांतों में दर्द हो ,पायरिया हो या मसूढ़े ठीक न हों तो तुम्बरू के बीजों का पावडर लिया जा सकता है । 

धातकी (woodfordia) ;   दांतों के लिए इसके फूल और पत्ते लेकर उनका काढ़ा बनाकर कुल्ले करें । 

भृंगराज   ;   अगर जाड में दर्द है तो इसके पत्तों का चार बूँद रस विपरीत कान में डालने से तुरंत लाभ होता है । 

तिल (sesame) ;  दांत स्वस्थ रखने हों तो , सवेरे -सवेरे 10 ग्राम काले तिल खाली पेट चबाचबाकर  खाएं ।  एक बार में 2 ग्राम तिल अच्छी तरह चबाएं और निगल जाएँ । इससे मसूढ़े तो स्वस्थ होंगे ही ; शक्ति भी प्राप्त होगी । 

बाकुची (psoralea seeds)  ; दन्त रोग में या पायरिया में बाकुची की जड़ के पावडर के साथ फिटकरी की खील मिलाकर मंजन करें । 

हल्दी (turmeric)  ;  मसूढ़ों की परेशानी है तो हल्दी सरसों का तेल और नमक मिलाकर हौले हौले मसूढ़ों पर मलें ।  मुंह से दुर्गन्ध आने पर नमक और हल्दी मिलाकर कुल्ले करें ।  

कंटकारी , कटैली ( yellow berried nightshade)  ;  जाड में दर्द हो तो इसका रस रुई में लगाकर जाड के नीचे रखें ।  इसको पानी में उबालकर उस पानी के कुल्ले करें | 

गेंदा (african merigold )  ;  दांत या मसूढ़ों में सूजन या दर्द है तो इसके फूलों की पत्तियां या इसकी हरी पत्तियां चबाकर , उँगलियों से मसूढ़े की मालिश करें ।  बाद में अच्छे से कुल्ला कर लें इसके अतिरिक्त इसके फूलों के रस में सेंधा नमक मिलकर मसूढ़ों की मालिश करने से भी आराम मिलता है । 

अग्निशिखा  ;     अगर दाँयी जाड में दर्द है , तो बाँये हाथ के अंगूठे की जड़ में इसका कन्द घिसकर लेप करें तो दर्द में आराम मिलता है | 

देसी गुलाब (rose)  ;    इसके फूल चबाने से मसूढ़े और दांत अच्छे रहते हैं । .
   
अनार (pomegranate )  ;  अनार के छिलके का पावडर करके उसमें हल्दी ,नमक और सरसों का तेल मिलाकर मंजन करने से मसूढ़े मजबूत होते हैं ।  

मरुआ  ;   मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इसके पत्ते मुंह में चबाएं ।  मसूढ़ों में सूजन हो तो इसके पत्ते पानी में उबालकर नमक मिलाकर कुल्ले करें ।  

कचनार  ;   दन्त रोग हो तो इसकी छाल के कोयले को महीन कर के मंजन करें । 
  मुंह पक जाए , या मुंह में छाले हों या मुंह से दुर्गन्ध आती हो तो इसकी छाल का काढ़ा पीयें और कुल्ले भी करें । 

जामुन  ;  दांत मजबूत करने हैं तो इसकी छाल की राख में नमक मिलाकर मंजन करें। 

Saturday, October 18, 2014

नन्हें ऋषि! सो जा !!




















गर्दन और ठोड़ी के बीच ,
नन्हा सा मुख दुबचाए ,
तीव्र गति से श्वासों को ,
समेटता बिखेरता शिशु ,      
अचानक नन्हीं गर्दन उचकाता है ।
आँख बंद किए नन्हा मुख खोले ,
दुग्धपान की आशा से ,
वह मेरे गले पर,
कोमल ओष्ठ का,
मृदु प्रहार करता है ।
फिर गर्दन उठाकर,
पुन: प्रयत्न करता है ।
कुछ न पाने पर ,
व्याकुल हो उठता है ।
ऊँ - आँ ; ऊँ - आँ की ध्वनि ,
गुंजरित हो जाती है ।
मेरा विचलित मन,
पुकार उठता है ;
"ओ नन्हें शिशु !
तनिक रुको तो !
शीघ्र ही मधुर दुग्ध ,
तुम्हारे मुख में आएगा ।
थोड़ा ठहरो न ,
 धैर्य तो धरो !
अच्छा तो, तुम्हें सहला देती हूँ ।
लो प्यारी कोमल थपकियाँ भी दूँगी ।
अरे, लोरी भी सुनाऊँ क्या ?
देखो ! नन्हें खगशावक जैसी,
नन्हीं सी चोंच बंद करो।
मेरी गोद में आ जाओ।
होले-होले, हिलते-डुलते ,
मम्मा के आने तक,
चुपके से सो जाओ।"

Friday, October 10, 2014

पीलिया (jaundice) और lever संबंधी रोग !

सामान्यत; शरीर में बिलुरुबिन की मात्रा 1.0  होनी चाहिए । लेकिन यह 2.5 या इससे अधिक हो जाए तो पीलिया रोग हो सकता है ।  यह लीवर के ठीक तरह से काम न करने पर हो सकता है । इसके अतिरिक्त जलोदर (ascites ) , तिल्ली (spleen ) बढ़ना आदि बीमारियों के लिए कई  बूटियाँ प्रयोग में लाई जाती हैं :

मेंहदी ; इसकी 3-5 ग्राम पत्तियों को रात को कूटकर 300-400 ग्राम पानी में मिटटी के बर्तन में भिगो दें । इस पानी को छानकर सवेरे खाली पेट पी लें । इससे पाचन क्रिया को बल मिलेगा , लीवर सम्बन्धी सब समस्याएँ भी दूर हो जाएँगी ।

ममीरा : इसका काढ़ा सवेरे शाम पीने से बढ़ा हुआ बिलुरुबिन ठीक हो जाता है ।

मूली ; इसकी सब्ज़ी खाते रहें तो पेट ठीक रहता है । इसके पत्तों की सब्ज़ी भी लाभकारी होती है ।
पीलिया रोग होने पर मूली का रस एक कप सवेरे खाली पेट पीने से लाभ होता है ।
spleen बढ़ जाए या जलोदर के रोग से पेट फूल जाए ; तो मूली बहुत लाभदायक रहती है । जितनी मूली खाई जा सके; उतनी लें । उसके चार टुकड़े करके प्लेट में रखें । उस पर केवल 3-4 ग्राम नौशादर बुरक दें । इसे रात को खुले में रख दें । सवेरे मूली कुछ पानी छोड़ देगी । पहले पानी पीएँ , फिर मूली चबा चबा कर खा लें । यह प्रयोग खाली पेट करना है । इससे शत प्रतिशत आराम आता है ।

पुनर्नवा ; पुनर्नवा शरीर को पुन: नया कर देती है । अगर बिलुरुबिन down नहीं जा रहा तो इसकी जड़ का रस पिला दें । या इसकी सूखी जड़ मिले तो उसका काढ़ा पिला दें । पीरे सूखे हुए पौधे को पंचांग कहते हैं । इसके पंचांग को 5-7 ग्राम की मात्रा में लेकर उसे पानी में उबालकर , काढ़कर , काढ़ा सवेरे शाम पीने से पीलिया रोग में आराम आता है । इसकी जड़ के टुकड़ों की माला गले में पहनने से भी आराम आता है ।

शिरीष ; जलोदर(ascites) रोग में , पेट में पानी भर जाता है । इस रोग में इसकी छाल को 10 ग्राम की मात्रा में लें । उसे 300-400 ग्राम पानी में पका कर , काढ़कर इसका काढ़ा सवेरे शाम पीयें । इससे शरीर के विजातीय तत्व बाहर निकल जाएंगे और जलोदर रोग में आराम आएगा । यह प्रयोग निरापद है ।

सफ़ेद प्याज ; इसके 3-4 चम्मच रस रोज़ पीने से पीलिया ठीक होता है । प्याज़ को काटकर , उसमे काला नमक लगाकर , नीम्बू का रस निचोड़ लें । इस तरह से रोज़ प्याज़ खाने से बढा हुआ लीवर ठीक होता है । बढ़ी हुई spleen में भी इस तरह प्याज़ खाने से आराम आता है ।

अरण्ड ;  पीलिया में दिन में तीन बार तीन से पांच दिन तक अरंड के पत्तों का दो चम्मच रस लें . रस लेने के एक घंटे बाद कुछ हल्का खाएं ; जैसे मक्की या चने की रोटी छाछ आदि ।   ascities  (जलोदर) की बीमारी में   पेट   फूल जाता है ।  इसमें अरंड के पंचांग (पाँचों अंग ) बीस ग्राम लेकर पचास ग्राम गोमूत्र में पकाएं . जब आधा रह जाए छानकर सवेरे खाली पेट पिएँ । 

आक ;    अगर आक की एक बिलकुल छोटी सी कोंपल को पान के पत्ते में रखकर तीन दिन खाया जाए तो इससे पीलिया ठीक होता है । 

श्योनाक (सोना पाठा, टोटला) ;    श्योनाक की लकड़ी  के गिलास में रात को 200 ml पानी रखें . सवेरे सवेरे पी लें . Lever संबंधी सभी बीमारियाँ ठीक हो जायेंगी और कभी होंगी भी नहीं। 

मुलेठी (licorice roots) ;  पीलिया होने पर , मुलेठी और पुनर्नवा की जड़ को मिलकर , काढ़ा बनाकर पीएँ । 

गाजर   ;  गाजर का रस पीते रहने से पीलिया जल्दी ठीक होता है । 

गन्ना ;       पीलिया रोग में इसका रस लिया जाए तो पीलिया जल्द ठीक होता है । इसके रस में धनिया और अदरक भी मिला लें तो और भी अच्छा रहेगा । इसका छिलका उतारकर , रात को ओस में रखकर अगर सवेरे इसे चूसा जाए तो लाभ और भी अधिक होता है । गन्ने के रस में अनार का रस मिलाकर लिया जाए तो पीलिया भी जल्द ठीक होता है और शरीर में खून की भी कमी भी नहीं होती ।     

अमरुद ;   लीवर damage हो गया हो या भूख कम लगती हो ; तब अमरुद को टुकड़े करके, नमक लगाकर, आग में भूनकर, खाना चाहिए । खाना खाने से कुछ देर पहले इस फल को खाया जाए तो यह आँतों और liver के लिए बहुत अच्छा रहता है । 

भुइं आंवला  ;    Liver या यकृत की यह सबसे अधिक प्रमाणिक औषधि है ।  लीवर बढ़ गया है या या उसमे सूजन है तो यह पौधा उसे बिलकुल ठीक कर देगा ।  Bilurubin बढ़ गया है , पीलिया हो गया है तो इसके पूरे पढ़े को जड़ों समेत उखाडकर , उसका काढ़ा सुबह शाम लें ।  सूखे हुए पंचांग का 3 ग्राम का काढ़ा सवेरे शाम लेने से बढ़ा हुआ bilurubin ठीक होगा और पीलिया की बीमारी से मुक्ति मिलेगी । 
      अगर वर्ष में एक महीने भी  इसका काढ़ा ले लिया जाए तो पूरे वर्ष लीवर की कोई समस्या ही नहीं होगी । 
                    Hepatitis -B और C के लिए यह रामबाण है ।  भुई आंवला +श्योनाक +पुनर्नवा ; इन तीनो को मिलाकर इनका रस लें । ताज़ा न मिले तो इनके पंचांग का काढ़ा लेते रहने से यह बीमारी  बिलकुल ठीक हो जाती है । 


दारुहल्दी (berberry)  ;    पीलिया की बीमारी में अक्सर पीली वस्तु नहीं देते , परन्तु इसका काढ़ा पीलिया को ठीक करता है । लीवर पर भी इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं होता । 

रेवनचीनी  ;   लीवर में सूजन हो तब भी इसका पावडर लेते रहने से वह ठीक हो जाता है ।  

अमलतास (purging cassia) ;  10 ग्राम अमलतास  का गूदा +2 ग्राम बहेड़ा + 2 ग्राम नागरमोथा +1 ग्राम कुटकी ; ये सभी मिलाकर , 400 ग्राम पानी में पकाएं   जब रह जाए 100 ग्राम , तो छानकर पीयें  यह सवेरे शाम लेने से  लीवर ठीक रहता है   सारा body system भी ठीक हो जाता है   इससे बेचैनी भी दूर होती है।   

शिरीष  ;    पेट फूल जाए या लीवर का  infection हो तो इसी छाल का पावडर या काढ़ा लें।   

बबूल या कीकर ;    lever की समस्या है तो इसकी फलियों का पावडर +मुलेठी +आंवला मिलाकर , काढ़ा बनाकर पीयें । 

द्रोणपुष्पी ( गुम्मा ) ;   लीवर ठीक न हो ,SGOT , SGPT आदि बाधा हुआ हो तो इसके काढ़े में मुनक्का डालकर मसलकर छानकर पीयें ।

 ममीरा ( gold thread cypress)  ;    Lever की समस्या में सुबह शाम इसकी जड़ का काढ़ा लें | 

निर्गुण्डी (vitex negundo)  ;  जलोदर या ascites होने पर नाभि के आसपास इसका रस मलें . वातज रोग हों , arthritis हो और सूजन आई हुई हो तो इसके पत्ते उबालकर सिकाई करें . बहुत जल्द आराम आएगा . सूजन होने पर इसके पत्ते उबालकर पीयें और इसके पत्तों को कूटकर , सरसों के तेल में गर्म करके पेस्ट बनाएं और उसे रुई में रखकर घुटनों पर बांधें |  

 धातकी ( woodfordia) ;   lever या spleen के लिए फूल और पत्तियों को काढ़ा बनाकर ले लें ।  थोडा कुटकी का पावडर भी थोडा मिला लें ।  मिश्री या शहद भी मिला सकते हैं | Ascites या जलोदर होने पर इसके फूल व् पत्तियों का काढ़ा लें , या केवल फूलों का शर्बत लें ।  इसके सूखे फूलों का पावडर भी लिया जा सकता है ।  यह पौष्टिक तो होता ही है । 

मुलेठी (licorice root) ;  पीलिया होने पर , मुलेठी और पुनर्नवा मूल को मिलाकर काढ़ा बनाकर पीयें ।  

पिप्पली (long pepper)  ;  लीवर बढ़ा हुआ है तो  5 gram पिप्पली +एक ग्राम पीपलामूल मिलाकर लें |  यह दर्द के लिए भी अच्छा है ।   

भृंगराज   ;    पीलिया होने पर इसके पत्तों का 10 ग्राम रस दिन में 2-3 बार लें ।  3-4 दिन में ही आराम आ जाता है ।  

शरपुंखा   ;      इसे प्लीहा शत्रु भी कहते है क्योंकि  यह spleen को ठीक करती है ।  इसके पंचांग को मोटा मोटा कूटकर 5-10 ग्राम लें और 200 ग्राम पानी में काढ़ा बनाकर पीयें।  इस काढ़े से जिगर या लीवर भी ठीक होता है ।  यह काढ़ा खून की कमी को भी दूर करता है । 

मकोय (black nightshade)  ;   लीवर ठीक नहीं है ,  पेट खराब है , आँतों में infection है ,  spleen बढ़ी हुई है या फिर पेट में पानी भर गया है ;  सभी का इलाज है मकोय की सब्जी । रोज़ इसकी सब्जी खाएं । या फिर इसके 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पीयें ।
                  पीलिया होने पर  इसके पत्तों का रस 2-4 चम्मच पानी मिलाकर ले लें ।  

बाकुची (psoralea seeds) ;  पीलिया होने पर 10 mg पुनर्नवा की जड़ का रस लेकर उसमें 250 mg बाकुची के बीजों का पावडर मिलाकर लें ।  

बथुआ (chenopodium) ;  अगर लीवर की समस्या है तो , पूरे पौधे को सुखाकर 10 ग्राम पंचांग का काढ़ा पिलायें ।   कहीं पर सूजन हो लीवर की समस्या हो तो इसका साग बहुत लाभकारी है ।  पीलिया होने पर बथुआ +गिलोय का रस 25-30 ml तक ले सकते हैं । 


सफ़ेद प्याज (white onion) ;  Ascites या जलोदर की बीमारी है तो , प्याज भूनकर खानी चाहिए ।  पीलिया होने पर 3-4 चम्मच प्याज का रस लें . लीवर या spleen की समस्या हो तो प्याज में काला नमक और नीम्बू मिलाकर लें ।  

नागफनी (prickly pear) ; लीवर , spleen बढ़ने पर , कम भूख लगने पर या ascites होने पर इसके 4-5 ग्राम रस में,  10 ग्राम गोमूत्र , सौंठ और काली मिर्च मिलाएं ।  इसे नियमित रूप से लेते रहने से ये सभी बीमारियाँ ठीक होती हैं ।  

घृतकुमारी (aloe vera)  ;  अगर पाचन ठीक तरह से नहीं हो रहा या लीवर खराब है तो इसे सब्जी या लड्डू बनाकर खाएं ; या फिर इसका गूदा खाली पेट खा लें ।  E S R ज्यादा है तब भी यह बहुत मददगार है ।  इसके एक लिटर गूदे में पचास ग्राम काला नमक डालें और दस ग्राम काली मिर्च !   फिर 60 ml निम्बू का रस मिलाकर कांच के  मर्तबान में रखकर दस-पन्द्रह दिन धूप में रखें ।  यह स्वादिष्ट गूदा एक चम्मच सवेरे शाम लेते रहने से liver ठीक रहता है ।  

आँवला   ;  पीलिया हो तब आंवले का रस बहुत लाभदायक है । 

करेला (bitter gourd)  ;   अगर  सोंठ, पीपल,और  काली मिर्च को करेले के जूसके साथ मिलकर लिया जाए तो लीवर ठीक होता है ।  पीलिया भी ठीक होता है । 

घृतकुमारी (aloe vera )  ;   किसी प्रकार की लीवर की समस्या हो तो aloe vera  का प्रयोग करें । 

कंटकारी , कटैली (yellow berried nightshade)  ;   सूखे पौधे को पांच ग्राम लें और चार सौ ग्राम पानी में उबालें ।  जब एक चौथाई रह जाए तो खाली पेट पी लें ।  लीवर में सूजन होने पर यह काढ़ा सवेरे शाम लें । 

अंजीर (fig )  ;   लीवर ठीक नहीं है तो अंजीर रात को भिगोकर सुबह चबा चबा कर खाएं और जिस पानी में भिगोया है ; वह भी पी लें ।  अगर पीलिया हो गया है तो सर्वक्ल्प क्वाथ में अंजीर डालकर काढ़ा बनाएं ।  पीलिया बहुत जल्द ठीक होगा । 

गिलोय  ;  अगर पीलिया है तो इसकी डंडी के साथ  ;  पुनर्नवा  (साठी;  जिसका गाँवों में साग भी खाते हैं)  की जड़ भी कूटकर काढ़ा बनायें और पीयें । liver की बीमारी में भी इसे लेने से लाभ होता है ।  

सहदेवी  ;  यह बड़ी कोमल प्रकृति का होता है ।  इसका 1-3 ग्राम पंचांग और 3-7 काली मिर्च मिलाकर काढ़ा बना कर सवेरे शाम लें । यह लीवर के लिए बहुत अच्छा है । 

अपराजिता ;  इसके जड़ के टुकड़े लाल धागे में माला की तरह पहनें ; इसकी जड़ का काढ़ा पीयें।  पीलिया होने पर ऐसा करने से यह बीमारी ठीक होती है । 

श्योनाक, टोटला ;   इसकी लकड़ी का खोखला गिलास जैसा बर्तन लें।  रात को इसमें 200-300 ml पानी भर दें।  इसे सवेरे सवेरे पीयें ।  इससे लीवर ठीक होता है ।  S.G.O.T. और S.G. P. T. आदि normal हो जाते हैं ।  पहाड़ों में तो इस पानी से मलेरिया तक ठीक किया जाता है। 
                           पीलिया हो तो इसकी ताज़ी छाल लेकर (बच्चा है तो 4-5 ग्राम बड़ा है तो 10-12 ग्राम )  कूटकर मिटटी के बर्तन में रात को 200 ml पानी में भिगो दें।  सवेरे मूंग जितना खाने वाला कपूर खिलाकर ये पानी पिला दें।  यह प्रयोग तीन दिन करें। ध्यान रहे श्योनाक अधिक मात्रा में ली तो खुजली हो सकती है और कपूर अधिक मात्रा में लिया तो चक्कर आ सकते हैं। 
                 Hepatitis-B या C होने पर श्योनाक +भूमि आंवला +पुनर्नवा (साठी) का रस लेते रहें। ये बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं। 


कचनार  ;   इसकी पत्तियों का रस 100 ग्राम सवेरे शाम लें तो लीवर ठीक रहता है और पीलिया भी ठीक हो जाता है।