Tuesday, December 2, 2014

उबटन या उद्वर्तन

हरे व शरीर को कान्तिमय और स्वस्थ रखने के लिए विभिन्न प्रकार के लेप लगाने का विधान बहुत समय से चला आ रहा है । इसमें एक जाना माना नाम है "उबटन " ।
                       आजकल भी विवाहोत्सव पर उबटन केवल एक परम्परा के रूप में एक बार लगाया जाता है ।
                                            उबटन शब्द "उदवर्तन " का परिवर्तित रूप है ।  शास्त्रों में किसी भी तैलीय बीजों को बारीक पीसकर , पेस्ट बनाकर शरीर पर मलने का विधान है । इसे त्वचा पर मलते मलते जब वह सूखने को हो तो उसे रगड़ रगड़ कर उतार दिया जाता है । इससे सारी पुरानी त्वचा उतर जाती है । बिलकुल नई , स्निग्ध , कोमल त्वचा उभर कर आती है । इस प्रकार उदवर्तन करके लोग अपने शरीर की त्वचा को स्वस्थ व सुकोमल बनाए रखते थे ।
                                                       तैलीय बीजों में सरसों या तिल के बीज मुख्यतया लिए जाते हैं । आजकल सरसों के तेल में जौ का आटा, हल्दी और थोड़ा पानी मिलकर गाढ़ा पेस्ट बनाते हैं । इसे ही उबटन कहते हैं । नहाने से पहले शरीर को उबटन कर लिया जाए तो साबुन की भी आवश्यकता नहीं होती और पूरी त्वचा निखर जाती है । त्वचा की मालिश हो जाने से रक्त संचार बढ़ जाता है । फलत: त्वचा स्वस्थ भी रहती है ।
                                        अगर oily skin है तो उत्साधन की क्रिया अपनानी चाहिए ।यह भी उबटन की एक और क्रिया मानी जाती है ।  इसमें सूखी दरदरी वस्तुओं से त्वचा की मालिश की जाती है जैसे कि त्रिफला या आँवले का बारीक पाउडर । यह पाउडर बहुत अधिक बारीक होना चाहिए ; जिससे कि त्वचा को कोई भी हानि न पहुँचे । उत्साधन की क्रिया से तैलीय त्वचा भी स्वस्थ रहती है । 

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