Monday, February 9, 2015

आसन और व्यायाम !

आसन और व्यायाम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । " सर्वसुखम् आसनम् " । जो सुखपूर्वक क्रिया की जाए ; वह आसन कहलाती है । अगर उसी क्रिया को जल्दी जल्दी और प्रयत्न पूर्वक किया जाए तो वह व्यायाम कहलाता है । उदाहरणत: खड़े होकर , बाँयी हथेली से बाँये पाँव को छूने की कोशिश धीरे से करना त्रिकोण आसन कहलाएगा । लेकिन इसे जल्दी जल्दी बार बार इस तरह दोहराते रहना कि  हल्की सी थकावट भी महसूस हो ;  व्यायाम कहलाएगा ।
         ऋषियों ने विभिन्न प्रकार के प्राणियों का भली भाँति निरीक्षण किया और उससे कई प्रकार के आसनो का विधान किया । कहते हैं कि जितनी प्रकार की संसार में योनियाँ हैं ; उतने प्रकार के आसन भी हैं ।  फिर भी 84  प्रकार के आसन मुख्य माने जाते हैं ।
मण्डूक आसन ( मेंढक से ), मकरासन (मगरमच्छ से ), भुजंगासन (सांप से ) शलभासन (पतंगे से ) , शशकासन (खरगोश से ) , वृश्चिक आसन (बिच्छू से ) , मर्कट आसन (बन्दर से ) , मयूरासन (मोर से ), वृक्षासन (पेड़ से ) , पर्वतासन (पहाड़ से ) ;    आदि कुछ  आसनों के उदाहरण हैं ।
    ऐसा माना जाता है कि एक आसन में लगभग आधा मिनट ही रहना चाहिए । आसन प्रतिदिन करने चाहिएँ ; तभी लाभ होता है ।
व्यायाम भी प्रतिदिन करना चाहिए । सुबह खाली पेट आसन व  व्यायाम किये जाएं तो सर्वाधिक लाभ प्रदान करते हैं । व्यायाम में जब हल्की सी थकावट महसूस होने लगे तब व्यायाम रोक देना चाहिए । शरीर की प्रकृति व क्षमता के अनुसार ही आसन व व्यायाम करने चाहिएँ ।
            व्यायाम के लगभग आधे घंटे बाद ही स्नान करना चाहिए । सर्दियों में नहाने के बाद भी व्यायाम कर सकते हैं ; लेकिन गर्मियों के दिनों में तो स्नान से पहले ही व्यायाम कर लेना उचित रहेगा । इससे व्यायाम के समय आए हुए पसीने भी धुल जाएँगे और शरीर स्वच्छ हो जाएगा ।

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