Tuesday, June 30, 2015

करदर्शन !!

प्रात: काल उठकर करदर्शन करना चाहिए । कर का अर्थ है , हाथ । अपनी दोनों हथेलियों को देखना चाहिए । करमध्ये वसति लक्ष्मी । 
वास्तव में कर ही नहीं; अपने मुख व पूरे शरीर के दर्शन शीशे में कर लेने चाहिएँ । अगर हम सुबह सुबह अपने चेहरे को ध्यान से देखें , तो आने वाली कई बीमारियों से बचा जा सकता है । सुबह आँखों के नीचे सूजन हो , चेहरे पर सूजन हो , हाथो - पैरों में कुछ विसंगति प्रकट हो रही हो तो एकदम पकड़ में आ जाती है ; और तुरंत उसका उपचार भी किया जा सकता है । बाद में जैसे जैसे हम दैनिक दिनचर्या में व्यस्त हो जाते हैं तो ये लक्षण क्षीण होते जाते हैं । फिर हम बीमारी को बड़े दिनों बाद पकड़ पाते हैं ; जब वह काफी बढ़ जाती है । 
तो यह हमारे शरीर के लिए अच्छा रहेगा , अगर हम सुबह उठते ही करदर्शन के साथ पूरे शरीर को भी आईने में एक बार देख लें । 

सुबह जल्दी क्यों उठें ?

हमारा शरीर वात , पित्त और कफ इन तीनों के संयोग से काम करता है । इनके संतुलन में गड़बड़ होने से शरीर की विभिन्न प्रक्रियाओं पर विपरीत प्रभाव पड़ सकता है ।

वात -   शरीर की सभी क्रियाओं को गति प्रदान करने का कार्य वात करता है । चाहे वह blood circulation की क्रिया हो ,या मल विसर्जन की ; वात ही सभी कार्य संपन्न करता है ।

पित्त - पित्त ऐसे सभी कार्य करता है ; जिसमे अग्नि की आवश्यकता हो । पाचन के कार्य में अग्नि की आवश्यकता होती है ।

कफ - शरीर में चिकनाहट या स्निग्धता बनाए रखना कफ का कार्य है ।

सुबह कफ प्रबल होता है । दिन में पित्त प्रबल होता है । रात्रि में वायु की प्रबलता होती है ।

रात्रि में वायु की प्रबलता बढ़ने से पहले ही सो जाना चाहिए । इससे गहरी नींद आएगी और पाचन तन्त्र भी भली प्रकार कार्य करेगा । लहभग 10 बजे के आसपास तो सो ही जाना चाहिए ।
सवेरे वायु की प्रबलता कम होने से पहले ही उठ जाना चाहिए । यह वाट और कफ का संधिकाल होता है । वायु का वेग मल को नीचे धकेलता है ; जबकि कफ (आँतों की चिकनाहट) मल को सुगमता से बाहर करने में मदद करती है ।

इस प्रकार सुबह उठने पर सुगमता से और भली प्रकार पूरी तरह से मल विसर्जन होता है ।

देर से उठने पर शरीर में वात अर्थात गति का प्रभाव कम हो जाने से मल विसर्जन में कठिनाई आती है । कफ का प्रभाव बढ़ने कारण मल आँतों में  चिपक जाता है । फलत: कब्ज़ की शिकायत होने लगती है ।
इसलिए सुबह देर तक नहीं सोना चाहिए ।


Wednesday, June 24, 2015

मेरी हवाई यात्रा !

हवाई यात्रा का समय बहुत अधिक लम्बा हो तो बड़ी उम्र में कष्टदायक हो सकता है । सीट पर पांव फ़ैलाने के लिए पर्याप्त स्थान ही नहीं होता ; इससे परेशानी यह होती है की पैरों में खून उतर आता है । पांव सुन्न हो जाते हैं और उनमे सूजन भी होने की आशंका रहती है ।  इससे बचने का सबसे उत्तम उपाय यह है की गाया-बगाया  चहलकदमी करते रहा जाए । लघुशंका के लिए या फिर विमानपरिचारिकाओं से गप्पबाज़ी के लिए अथवा पीछे की तरफ जाकर कुछ खाने पीने की सामग्री लाने के लिए ही सही;  यानि कुछ भी क्रियाशीलता  आवश्यक है केवल पैरों को हरकत में रखने के लिए !
             मैं हमेशा ही ऐसी सीट ही बुक कराती हूँ जिससे कि बीच के रास्ते में आराम  आ- जा सकूँ । इस बार बगल के सहयात्री एक अमेरिकन महोदय थे; शिष्टाचार से भरपूर । अमेरिका के लोग भयवश शिष्टाचारी होते हैं , या वंशानुगत तौर पर; यह संशय का विषय हो सकता है । लेकिन यह निर्विवाद सत्य है कि औपचारिक तौर पर  वे शिष्टाचार में भरपूर विश्वास रखते हैं । लेकिन यह भी सच है कि शिष्टाचार निभाने के चक्कर में वे अपने से कोई समझौता भी नहीं करते ।
            बहरहाल, मेरे सहयात्री ने मुस्कुराकर इशारा किया कि मेरे बगल वाली सीट उनकी है । मैं भी उठी और वे महोदय अपने पूरे ताम-झाम के साथ सीट पर बैठ गए । मैंने भी अपना स्थान ग्रहण किया । उन्होंने एक छोटा झोला अपने सामने वाली सीट के पीछे की ओर एक knob को खींचकर उस पर लटका दिया। मुझे तो यह बात पसंद नहीं आई । सीट के पीछे जो टी वी स्क्रीन होता है, मैं तो उस knob का सम्बन्ध उससे लगाती थी । परन्तु इन महाशय ने तो उसे खींचकर उस पर अपना झोला ही टांग दिया ! उसमे से कुछ नमकीन निकालकर उन्होंने  खाना भी शुरू कर दिया । बड़े बेफ़िक़्रे से लग रहे थे । कुछ देर तो मैं सोचती रही । फिर मैंने पूछ ही लिया कि  कहीं वह  knob  टी वी लिए तो नहीं है ? वे महाशय कुछ मुस्कुराते हुए बोले कि वह knob तो कुछ टांगने के लिए ही है । आप भी इसे इस्तेमाल कर सकती हैं।  यह सुनकर मैंने भी अपना बैग knob पर लटका दिया।
         कुछ समय बाद सभी यात्री अपने में व्यस्त हो गए। कोई टी वी देख रहा था , कोई अखबार पढ़ रहा था, कई व्यक्ति गपशप में मग्न थे तो किसी किसी को नींद की झपकियाँ आ रही थीं ।  मैं भी सोने की कोशिश करने लगी । थोड़ी नींद आने को ही थी कि चहल पहल शुरू हो गई। विमान परिचारिकाएं रात्रि का भोजन परोस रहीं थीं । अधिक भूख तो नहीं थी। वैसे भी मुझे भूख कम ही लगा करती है । खैर, जैसे तैसे कुछ खाना खाया और कुछ ऐसे ही छोड़ दिया। सलाद खाना मैंने आवश्यक समझा। इसीलिए सलाद तो खाई ही, साथ में परोसी हुई उबाली हुई लोबिया का भी ज़ायका ले लिया।
                  खाने का कार्यक्रम खत्म होते ही अँधेरा कर दिया गया जिससे कि सभी यात्री सो सकें । मैं भी सोने की कोशिश करने लगी । नींद तो नहीं आई लेकिन आँतों में वायु का बढ़ता तीव्र वेग परेशान करने लगा । विमान की सीट पर वैसे ही 15 घंटे के लिए लगातार बैठना दूभर होता है। आँतों  के तीव्र वायु वेग से मुक्ति पाने के लिए थोड़ा इधर उधर तो होना ही पड़ता है। मुझे आमतौर पर ऐसी कोई समस्या पेश नहीं आती । लेकिन असमय का भोजन , कम नींद और शायद सलाद और लोबिया ;  सभी कारण मिलकर मेरे लिए समस्या को जन्म दे रहे थे ।                                                      
कुछ समय तक तो अमरीकी महाशय सोते रहे । वे लम्बे सफर के आदी थे । बाद में उन्होंने मुझे परेशान सा महसूस किया । उनकी भाव मुद्रा से प्रतीत हो रहा था की शायद वे मेरी परेशानी जानना चाहते थे, मेरी मदद करना चाहते थे । मुझे तो खुद कुछ समझ में नहीं  रहा था । वायुमुक्त होने की मेरी गति में इजाफ़ा होने से उनकी भी परेशानी बढ़ती जा रही थी । अचानक उन्होंने अपने ऊपर डिओडरेंट स्प्रे करना शुरू कर दिया । मुझे डिओडरेंट से अच्छी-खासी एलर्जी है । मेरी समस्या अब दोगुनी हो गई ।  एक तो पहले ही गैस की परेशानी थी ; ऊपर से एलर्जी की समस्या और गले पड़ गई । मेरे सिर में हल्का हल्का दर्द होने लगा और उबकाई सी महसूस हुई । मैं सीट से उठी और झटपट वाशरूम  गई । वहाँ से कुछ राहत पाने  बाद मैं वापिस आकर सीट पर बैठ गई और सोने का प्रयत्न करने लगी ।
                    जैसे तैसे थोड़ी बहुत झपकी आई होगी शायद ! लेकिन सिरदर्द और भारीपन बरक़रार था । वे अमेरिकन महोदय टी वी का मज़ा  रहे थे। अभी दुबई पहुँचने में एक घंटा शेष था। मैंने अपने लिए थोड़ा आम का जूस मंगवाया और धीरे धीरे चुस्कियां लेने लगी ।
       दुबई पहुँचकर थोड़ी जान में जान आई। अन्य यात्रियों के साथ मैं भी उड़ान के प्रस्थान की प्रतीक्षा करने लगी। सिरदर्द बरक़रार था। बैचैनी और उबकाई महसूस हो रही थी । एक महिला यात्री ने उबकाई दूर करने के लिए दवा की पेशकश की। मैंने वह दवा ले ली परन्तु आराम उससे भी न हुआ। तभी मुझे लगा कि मेरा पासपोर्ट और यात्रा का पास कहीं खो तो नहीं गया। मैंने अपना पर्स भली प्रकार टटोला। मुझे कुछ न मिला। मेरे हाथ पाँव फूल गए। एक पल तो लगा कि अब क्या होगा ? सिरदर्द से बेहाल तो थी ही ; उस पर एक और मुसीबत। उफ़ ! मैं सोच रही थी कि अब क्या करूँ ?
             एक युवती ने मुझे परेशान देखकर कारण जानना चाहा। उसने मुझे ढाढ़स बंधाते हुए तसल्ली से एक बार फिर से पर्स को अच्छी तरह खंगालने के लिए कहा। उसने समझाया कि बिना घबराये, इत्मिनान से पर्स की एक एक चीज़ बड़े ध्यान से देखिये। आपको सब कुछ मिल जाएगा। मैंने बड़ी तसल्ली से एक एक पॉकेट ध्यान से देखी। पासपोर्ट और यात्रीपास वहीं पर थे। मेरी रुकी हुई सांस वापिस आई। मैंने उस युवती  धन्यवाद किया। वास्तव में जब हम घबरा जाते हैं ; तो सामने पड़ी हुई वस्तु भी नज़र नहीं आती।
             दुबई से विमान में बैठने के बाद भी तबियत ठीक न हुई । मेरी बगल में एक युवक बैठा था। उसने कहा कि कोई भी परेशानी की बात नहीं है। मैं आपके साथ हूँ । मुझे बता दीजियेगा। मुझे उबकाई आ रही थी । वमन बैग में वमन के बाद मुझे थोड़ी राहत महसूस हुई। विमान परिचारिका मेरे लिए विभिन्न प्रकार के जूस लाई । मैंने उससे आम का जूस लिया और छोटी छोटी चुस्की लेती रही। थोड़ा आराम अनुभव हुआ तो झपकी भी आ गई। उड़ान के गंतव्य तक पहुँचने तक मैं अपने आपको काफी कमज़ोर महसूस कर रही थी। लेकिन फिर भी बेहद खुश थी कि परमपिता की कृपा से मेरी  हवाई यात्रा सकुशल सम्पूर्ण हुई ।