Sunday, October 18, 2015

जागी अब ज़िन्दगी!

 ताज़ी सी खुशबू को किरणों में बुनती सी 
धूप में नहाई, मुस्कुराई ज़िन्दगी
जीवन की आस भरी, आशा की सांस लिए
अंगड़ाई तोड़ती, मस्ती भरी ज़िन्दगी
बीते चलचित्रों की परछाई निहारती
निखरे से दर्पण में धुलती हुई ज़िन्दगी
बोझिल से अनुभव की अनचाही गठरी को
कांधे से उतारकर, हल्की हुई ज़िन्दगी
बंधन सब मुक्त हुए, नवस्वप्न उद्दीप्त हुए
नवस्वतंत्र राहों पर चलती ये ज़िन्दगी
चाहों की मस्ती में, गुनगुनाते गीत नए
नवजीवन पाने को आतुर ये ज़िन्दगी
सरलता के प्रांगण में, प्रेमरस फुहार सी
मन-उपवन सिंचित कर, बरसी ये ज़िन्दगी
लक्ष्य कोई बाँध नया, छोटे से जीवन का
उमंग भर साहस में, उमगी ये ज़िन्दगी
आशा के  परदे पर कौतुक के नृत्य दिखा
थिरकती हर पल में, उल्लसित ये ज़िन्दगी
मन के हर बंधन के जीर्ण तार तोड़कर
चाहों की चाह से उन्मुक्त हुई ज़िन्दगी
स्वप्नों के आँचल से तारों को बीनकर
अपने पर वारती, निहारती ये ज़िन्दगी
सूनापन सुप्त हुआ, मन कंचन मुक्त हुआ
झूठी परतंत्रता उतार, जागी अब ज़िन्दगी

No comments:

Post a Comment