Friday, December 25, 2015

दिल्ली में snowfall!

न्यूज़ चैनल में समाचार देखने में मेरी बड़ी रूचि है । "आज कश्मीर में snowfall हुआ । सभी को snow गिरते देख बहुत मज़ा आया ।" यह समाचार सुनकर हम सबको और अधिक सर्दी महसूस होने लगी। लेकिन नन्हा रुद्रांश भी तो यह सब सुन रहा था । वह बहुत खुश हो रहा था।
वह अक्सर अपने पापा के साथ दिल्ली मेट्रो से घूमता रहता है । रास्ते में कश्मीरी गेट नाम का एक स्टेशन आता है । अपनी कल्पना से शायद नन्हें रुद्रांश ने कश्मीर और कश्मीरी गेट में सामंजस्य बिठा लिया। उस समय तो वह मन में ही शायद कुछ सोच रहा होगा। परन्तु वह कुछ बोला नहीं ।
दोपहर को बाहर धूप में चारपाई बिछाकर मैंने उसे बैठाया। अनार के दाने निकालकर मैं उसे खिला रही थी। तभी रुद्रांश की आवाज़ सुनकर साथ वाले घर से हमारे पडोसी भी बाहर धूप सेकने के लिए आ गए। उन्हें रुद्रांश से बहुत प्यार है। रुद्रांश बहुत ही बातूनी है । वह उनको अपने मन की सारी बात बताता रहता है। कोई नया डांस स्कूल में सीखता है, तब भी वह उन्हें अवश्य ही करके दिखाता है । वे भी उत्सुक रहते हैं कि रुद्रांश आज क्या नई बात बताएगा ? उन्हें देखते ही रुद्रांश बोल उठा," आज हम snowfall देखने जाएँगे । "
"अच्छा! कब?" वे हैरान होकर बोले ।
"बस अभी-अभी! मेट्रो से जाएँगे। " रुद्रांश जल्दी से बोल गया।
वे और भी ज़्यादा हैरान हो गए । "मेट्रो से? मेट्रो से snowfall देखने कैसे जाओगे? snowfall तो कश्मीर में होता है।"
" हाँ! हाँ! हम कश्मीरी गेट जाएँगे। वहाँ snow देखकर बड़ा मज़ा आएगा। वहाँ बर्फ गिरती है। वहां Santa भी आता है ; लाल टोपी पहनकर! आप भी चलना हमारे साथ। " रुद्रांश उत्साह में बोलता ही जा रहा था । " मैं आपको ज़रूर लेकर जाऊंगा वहाँ ।"
अच्छा! तो अब सारी बात समझ में आई। रुद्रांश ने जो सुबह समाचार देखे थे; उस कश्मीर का कश्मीरी गेट के साथ ताल मेल बिठा लिया। मैं बहुत हैरान हुई कि यह नन्ही सी जान क्या क्या कल्पना कर लेता है!
मैंने अपने असमंजस में पड़े पडोसी को जब सब बात समझाई, तो वे बड़े अचम्भित भी हुए और प्रसन्न भी!
उन्होंने रुद्रांश के सिर पर प्यार से हाथ फेरा और बोले, " भई वाह! मज़ा आ गया। दिल्ली में ही snowfall का लुत्फ़ उठाने,  मैं ज़रूर चलूँगा तुम्हारे साथ।"
रुद्रांश भी बहुत मासूमियत से बोला, " मैं पापा को कहकर आपको अपने साथ ले चलूँगा । ठीक है?"
उन्होंने कहा ,"done!"  और मुस्कुराते हुए अपने घर चले गए ।

Monday, December 14, 2015

सलाद कब खाएँ ?

किसी भी पार्टी में जाएँ, तो सलाद बिलकुल भी नहीं खाना चाहिए । वह ठीक तरह से धुला नहीं होता और यह भी पता नहीं कि कब उसे काटकर रख दिया गया है ।
घर में किसी भी प्रकार के सलाद को पहले गर्म पानी से अच्छी तरह धो लें । फिर उसे ठन्डे पानी में धोकर छील कर खाएँ । चाहें तो टुकड़े कर लें । सलाद में नमक नहीं डालना चाहिए । ज़रूरी नमक की मात्रा तो उसमें मौजूद होती ही है । ऊपर से नमक बुरकने पर सलाद पानी छोड़ देता है । इसमें ज़रूरी खनिज व विटामिन पानी के साथ ही निकल जाते हैं ।
पत्ते वाले सलाद विशेष तौर पर भली प्रकार से धोएँ । इनमे cyst नहीं रहनी चाहिए वरना ये मस्तिष्क में भी पहुंच सकती है ।
सलाद भोजन से पहले खाने से जीभ साफ़ हो जाती है । इससे हम भोजन के स्वाद का भरपूर आनन्द ले सकते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन से पहले सलाद खाने से भोजन की मात्रा भी अधिक नहीं खाई जा पाएगी । इससे मोटापा नहीं बढ़ेगा ।
सलाद भोजन के अंत में तो अवश्य ही खानी चाहिए । इससे दांतों के बीच में जमे हुए खाने के अंश निकल जाते हैं और दाँत भी साफ़ हो जाते हैं । सलाद से मसूढोंं की मालिश भी हो जाती है ।

Sunday, December 13, 2015

लो, जाड़े आ गए!

धुंध की सफ़ेद रज़ाई ओढ़े
सूरज की अलाव तापते,
कंपकंपाते बदन,  ढाँपते;
सकुचाते, दाँत किटकिटाते,
लो, जाड़े आ गए!
नरम नरम धूप की गर्मी पिघल गई,
सर्द हवा सन सन कर कान पर फिसल गई,
गर्दन पर मफलर की गाँठ अब संभल गई,
पेड़ों के पत्तों पर कोहरा बरसा गए।
लो, जाड़े आ गए!
मोटे से वस्त्रों में दुबला तन गदराया,
सूरज को देख देख पुलकित मन हरषाया,
सर्द हवा बह निकली अब तो मन घबराया,
अंबर को ढ़कने ये बादल क्यों आ गए ?
लो, जाड़े आ गए!
चूल्हे की गर्म तपिश आनन्दित कर गई,
दहकते कोयलों पर लो चाय उबल गई,
गर्म पकौड़ों को तबियत मचल गई,
गज्जक, रेवड़ी खाने के दिन आ गए।
लो, जाड़े आ गए!
गर्म ऊनी कपड़ों से घर भर भर गया,
गुदगुदाते कंबलों से बिस्तर निखर गया,
नींद की आहट हुई तो स्वेटर उतर गया,
नर्म गर्म रज़ाई में सोने के पल आ गए।
लो, जाड़े आ गए!

Saturday, December 12, 2015

नटखट भोलू !!

 "बेटे!  ज़रा कैंची  तो लाना किचन से।" मैं रुद्रांश को कह रही थी। असल में एक मोटा धागा काटना था। वह हाथ से तोडा नहीं जा सकता था इसीलिए छोटी कैंची चाहिए थी।
 " बर्तनों के रैक के नीचे हुक पर लटकी है। जल्दी लाओ बेटे। "
रुद्रांश लपककर किचन में गया। वापिस आया तो उसके हाथ में पिज़्ज़ा कटर था!
 बात यह है कि कैंची के साथ वाले हुक में पिज़्ज़ा कटर लटका हुआ था। वह उसे उठा लाया।
 मेरे पास आकर बोला , " इससे धागा काट लो नानी।"  मैं हँसने लगी ," अरे शैतान! धागा क्या पिज़्ज़ा कटर से काटूँगी ? इससे तो पिज़्ज़ा काटते हैं ; सैंडविच काटते हैं ; कोई धागा थोड़े ही इससे काटते हैं।"
" हाँ , हाँ ! इससे धागा भी कट सकता है ।" तीन वर्षीय रुद्रांश बड़े आत्मविश्वास के साथ कह रहा था । " आप काटो तो सही ।"
" अरे बुद्धू ! इससे इससे धागा नहीं कटेगा। जा, जाकर छोटी कैंची लेकर आ।" मैंने उसे भगाना चाहा।
मेरी बेटी मुस्कुराते हुए सब कुछ देख रही थी। उसने मुझे बताया कि रुद्रांश के दूसरे हाथ में कैंची है और वह उसने अपनी कमर के पीछे रखा हुआ है।
मुझे उसके नटखटपन ने इतना लुभाया कि मैंने मुस्कुराते हुए प्यार से उसे सीने से लगा लिया। लेकिन वह फिर भी बड़े भोलेपन से पूछ रहा था,
 "पिज़्ज़ा कटर से धागा क्यों नहीं काट सकते?"