Friday, August 5, 2016

तुम बदल गए

तुम तो सरल थे
आज गांठों से भर गए
तुम्हारी हंसी जो गुदगुदा जाती थी,
आज चिंतित कर देती है।
आदर्श पर अवलंबित हो,
सम्मान के स्वाभिमान थे तुम।
आज छिछोरी दिखावट के बाज़ार में,
तुम भी एक नमूना बनकर  रह गए।
निर्मल अपेक्षाओं को धूमिल कर,
निर्मम कटु स्वार्थ संजोने में तल्लीन हो गए।
करोड़ों की भीड़ से अलग,
जगमगाते सितारे को,
भोगवाद का भयंकर,
गुरुत्वाकर्षण निगल गया।
आज मेरी नज़रों में,
तुम एक शून्य हो।
अस्तित्वहीन "ब्लैक होल"!

Saturday, June 11, 2016

कत्था या खैर (black catechu)





कत्था या खैर का इस्तेमाल आम तौर पर मुखशुद्धि के लिए किया जाता है। । इसके अधिक सेवन से हानि होने की सम्भावना हो सकती है। लेकिन कभी कभी यह जीवनदायिनी भी होती है। इसे पान पर लगाकर अवश्य खाते हैं।
इसके पेड़ में कांटे होते हैं। लेकिन इसकी पत्तियों में कांटे नहीं होते। इसकी पत्तियां चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं। मुंह की लार बाहर  भी निकाल सकते हैं या फिर अंदर निगल भी सकते हैं। इसके पत्तों को पानी में उबालकर उस पानी से कुल्ले करें तो मुंह के घाव और ulcer ठीक हो जाते हैं।
बाजार में नकली chemicals से बना कत्था न लें। शुद्ध कत्था 1/2 से 1 ग्राम की मात्रा 300 ग्राम पानी में मिलाकर , नमक डालकर गरारे करने से मुंह की दुर्गन्ध खत्म होती है और मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं।
इस वृक्ष की छाल का अंदर का भाग रक्तिम वर्ण का होता है। इसे निकालकर , कूटकर उबाला जाता है। फिर इसे छानकर और सुखाकर कत्था प्राप्त किया जाता है। इसी में अन्य औषधियाँ मिलकर खदिरारिष्ट बनाया जाता है। इसका सेवन करने से कील, मुंहासे व त्वचा सम्बन्धी कई बीमारियां ठीक होती हैं।
खैर से बनी खदिरादि वटी का प्रयोग मुख के रोग, स्वर भंग, बलगम, खांसी, खराश आदि के लिए किया जाता है। इन सभी परेशानियों के लिए इसकी पत्तियों या छाल का काढ़ा भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
चर्मरोग सम्बन्धी सभी विकारों से मुक्ति दिलाता है यह वृक्ष । और मुखशुद्धि के साथ साथ रक्त को भी शुद्ध करने में सक्षम है कत्था!
इसका वृक्ष बहुत धीरे बढ़ता है । इसके वृक्ष दुर्लभ श्रेणी के अंतर्गत आने लगे हैं। इन वृक्षों को अधिक से अधिक लगाना चाहिए। 

Monday, June 6, 2016

तोरी (ridged gourd)

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तोरी को शीतल माना जाता है। यह सुपाच्य होती है इसीलिए अक्सर इसका प्रयोग पथ्य के रूप में करते हैं । शायद किसी भी तरह की अस्वस्थता होने पर इसका परहेज़ नहीं बताया जाता।
इसका छिलका पीसकर , उसकी पेस्ट बनाकर मुँह पर लगाई जाए तो कील मुंहासों से राहत मिलती है।
इसके पत्तों को गर्म करके उस पर थोड़ा तेल लगाकर सूजन या दर्द पर बाँधा जाए तो बहुत आराम आता है। इसकी पत्तियों का रस खुजली या दाद पर लगाने से वह ठीक हो जाती है। इसके रस को सरसों का तेल मिलकर मंद आंच पर पर पकाएं । जब थोड़ा सूख जाए तो देसी मोम मिलाकर मलहम बना लें । इसे खाज खुजली या दाद की जगह पर लगाने से आराम आता है।
इसके फूलों को सुखाकर 5 ग्राम की मात्रा में लेने से white discharge की बीमारी में आराम आता है और यह शक्तिवर्धक भी है।
इसके बीजों का तेल दर्द निवारक होता है। इस तेल को दर्द वाले स्थान पर लगाकर हल्के से मालिश करें ।
इसकी जड़ों को सुखाकर, उसका पाउडर कर के थोड़ी मात्रा में लिया जाए तो यह शुगर की बीमारी में भी लाभ करता है। यह थोड़ा विरेचक होता है अतः कम मात्रा में लें। शुगर की जो औषधियाँ पहले से चल रही हैं ; उन्हें भी साथ चलने दें । धीरे धीरे चिकित्स्कीय परामर्श के अनुसार अंग्रेजी दवाई कम होती जाएँगी और शुगर की बीमारी में आराम आएगा।
तोरी का जूस acidity को खत्म करता है। इसके लिए एक कप जूस सवेरे लें। अगर शीतल प्रकृति है तो इस जूस में काली मिर्च मिला लें। गैस होने पर इसके जूस में सौंठ और काली मिर्च मिलाकर लें।
अपच होने पर इसका सूप पीएं । इस सूप में अदरक, काली मिर्च, और दालचीनी भी मिला लें।  लीवर खराब हो तो भी पथ्य के रूप में इसका सेवन करते रहें।
वमन या उल्टियाँ हो रही हों तो इसका सूप पीएं। इससे भूख भी लगेगी।
यह हल्का कब्ज निवारक भी है । बच्चों को ठीक से पेट साफ़ न हो रहा हो तो इसका सूप दिया जा सकता है।
तोरी शीतल होती है अतः इसकी सब्ज़ी बनाते समय अदरक का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
कड़वी तोरी का प्रयोग बिल्कुल न करें। 

Sunday, May 8, 2016

कौन हूँ मैं !

पल पल अनुभूति का संग्रह हूँ मैं
बिगड़ते बनते क्षणों का विग्रह हूँ मैं
समय की गोद में समाहित हुई
कटु वेदनाओं  का परिग्रह हूँ मैं
              नीले आकाश का विस्तार हूँ मैं
               प्रकृति के रूप का श्रृगार हूँ मैं
              जड़ चेतन के कण कण में समाये
              सूक्ष्म अणु के गर्भ का संचार हूँ मैं
शुद्ध सरलता साकार हूँ मैं
सम्पूर्ण सृष्टि का व्यवहार हूँ मैं
कटु कठिन पथ के कंटकों पर
सौम्य मखमली विस्तार हूँ मैं
                 तीव्र  वेदना में कटु औषधि मैं
                अति शुष्क उर में जलनिधि मैं
                विपुल दुःखभरी सन्तप्तता का
                 सतत बोझ हरता प्रतिनिधि मैं
दीप्त भाल की उद्दीप्ति हूँ मैं
अंतर्मनस की संतृप्ति हूँ मैं
शुभचेतना के नवपटल पर
सदभाव की अभिव्यक्ति हूँ मैं
                    इस क्रूर जग का सार हूँ मैं
                    गहन तमस का विस्तार हूँ मैं
                 आंसुओं के बोझ सहती वेदना का
                  शान्त, मूक, असीम पारावार हूँ मैं
यह कौन जाने, कौन हूँ मैं
हूँ तो चकित! पर मौन हूँ मैं
कुछ रहस्यों से भरी इन गुत्थियों का
ही कदाचित सहज दृष्टिकोण हूँ मैं


Wednesday, May 4, 2016

सिरदर्दी या समृद्धि!

सड़क के उस पार एक किरयाने की अच्छी सी दुकान है । घर की रोज़मर्रा की सभी ज़रूरतों का सामान वहाँ से मुहैया हो जाता है । दूध दही से लेकर मसाला आटा और बच्चों के लिए चॉकलेट बिस्कुट इत्यादि हर चीज़ वहाँ मिलती है । वहाँ जो महिला सामान देती हैं ; वे बहुत भली सी लगती हैं मुझे ! बिलकुल सरल स्वभाव है उनका। उनसे प्रतिदिन दूध तो लाना ही होता है तो साथ में कुछ गपशप भी हो जाती है। 
                  एक दिन बड़ी परेशान सी लग रहीं थीं। मैं उन्हें भाभीजी कहकर बुलाती हूँ । मैंने कहा ," भाभीजी! क्या बात है ? कुछ परेशान हो।"
                वे बोलीं ,"हाँ । देखो ये दीवारों के साथ जो ढेर सारी झुग्गियाँ फैली हुई हैं; ये सिरदर्दी का कारण हैं। कितनी गन्दगी होती है इनकी वजह से ! पूरी सड़क घेरी हुई है । ट्रैफिक भी आराम से नहीं आ जा सकता । नहीं तो हमारी दुकान और अधिक चले । पता नहीं, कब हटेंगी ये झुग्गियाँ ?"
         मैं भी उनकी बात से सहमत थी । हॉउसिंग सोसाइटी की दीवारों के साथ लगी हुई झुग्गियों की वजह से बाहर मुख्य सड़क पर जाना आना कठिन था । और मेट्रो स्टेशन तो घूम कर पूरा चक्कर लगाकर रिक्शा पर ही जाना पड़ता था । झुग्गियाँ न होती तो मेट्रो स्टेशन की दूरी पांच मिनट की ही थी। वाकई थी तो झुग्गियाँ सिरदर्दी ही!
                           एक दिन अचानक खबर आई कि सभी झुग्गी निवासियों को झुग्गी के बदले मकान मिल रहे हैं। उस दिन मैं दूध लेने गई तो भाभीजी का चेहरा खिला हुआ था । खुश होकर वे बोली," अब तो झुग्गियाँ हट जाएंगी । सड़क चौड़ी भी हो जाएगी और साफ सुथरी भी ।" मैंने भी स्वीकृति में सिर हिलाया। वे ठीक कह रही थी। 
और सचमुच एक दिन बड़े ही शांतिपूर्ण तरीके से शाम तक सारी झुग्गियाँ टूट गई। वे लोग अपनी सारी ईंटें इत्यादि भी उठा ले गए और नए मकानों में चले गए। सभी लोग ख़ुशी ख़ुशी एक दूसरे को बधाई देने लगे । भाभीजी तो ख़ुशी से फूला नहीं समा रही थी। मैं भी बहुत खुशी ख़ुशी उनसे दूध लेकर आई। 
       आज मैं उनसे दूध लेने गई तो भाभीजी बहुत उदास थीं। मैंने उनकी उदासी का कारण पूछा तो वे बोलीं," इस बार तो महीने की कमाई आधी ही रह गई । जब कारण का पता लगाया तो मालूम हुआ कि झुग्गियों में रहने वाले बच्चे हमारी दूकान से खूब टॉफियाँ , चिप्स , ब्रैड,  दालें, आटा मसाले आदि ले जाते थे। हमने तो कभी सोचा ही नहीं था कि झुग्गियों की वजह से हमारी इतनी आमदनी है। मैं तो इन झुग्गी वालों को सिरदर्दी का कारण समझती थी।" 
मैंने हँसकर कहा," परन्तु वे तो आपकी समृद्धि का कारण निकले!" 

Wednesday, April 13, 2016

कैंसर के कारण !

तंबाकू और धूम्रपान कैंसर का एक प्रमुख कारण है ; यह सभी जानते हैं । इसके अतिरिक्त खेती में प्रयोग होने वाली रासायनिक खाद और कीटाणुनाशक का भी इस बीमारी का कारण हो सकते हैं । जैविक खाद और जैविक कीटनाशक अगर प्रयोग में लाए जाएँ , तो कैंसर की बीमारी से कुछ हद तक बचा जा सकता है। सब्ज़ियों और फलों को गर्म पानी से धोने पर ऊपर के कीटनाशक कुछ हद तक हटाए जा सकते हैं । लेकिन जो कृत्रिम उर्वरक और कीटाणुनाशक फल या सब्ज़ियों में समा गए हैं ; उनसे नहीं बचा जा सकता ।
विभिन्न खाद्य पदार्थों में जो कृत्रिम रंग प्रयोग में लाए जाते हैं , वे भी कैंसर का एक कारण हो सकते हैं। केक , मिठाइयाँ या अन्य प्रकार के व्यंजन बनाते समय प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करना चाहिए ।
प्लास्टिक के containers और bottles में खाद्य या पेय पदार्थ , जितने कम समय के लिए रखे जाएँ उतना ही अच्छा है । ऐसा कहा जाता है की अधिक देर तक प्लास्टिक के सम्पर्क में खाद्य पदार्थों को रखा जाए तो उन्हें खाने से कैंसर की सम्भावना हो सकती है ।
खाने को जितना हो सके ताज़ा ही खा लेना चाहिए । बार बार बासी भोजन को गर्म कर कर के खाने से भी कैंसर की बीमारी हो सकती है । Microwave , वैसे तो खाना गर्म करने में बहुत सहायक है ; परन्तु बार बार microwave किया गया खाना cancerous हो सकता है ।
अस्त व्यस्त जीवन , समय पर भोजन न करना , तनाव व व्यर्थ की चिंताएँ भी कैंसर का कारण हो सकती हैं ।

Friday, February 5, 2016

softworking?

"मैं वहां जाया था । मैं यह खा नही पा सकता । मुझे चाकलेट चईहै (चाहिए)| मुझे यह पसंद नही लगती।"
अभी तो इसी तरह की भाषा ही बोलना सीख रहा है नन्हा रूद्रांश ! और हमारे द्वारा बोली गई भाषा को अपने शब्दकोश में किस प्रकार आत्मसात कर पाता है ; यह भी अपने आप में बहुत मज़ेदार है।
कटे फटे कागज़ के छोटे छोटे टुकड़ों को गोंद की बूँद लगा लगाकर वह एक ड्राईंग पेपर पर बहुत ही तल्लीनता से चिपकाकर कोलाज़ बना रहा था। बहुत देर होने पर भी वह उसमें ही व्यस्त रहा। यह देखकर मेरे मुँह से अनायास ही निकल गया, "अरे! रूद्रांश तो बहुत मेहनती है।" यह सुनकर वह तपाक से बोला, " मेंहदी तो आप हो। आप मेंहदी लगाती हो। मैं मेंहदी नहीं लगाता। आप हो मेंहदी!"
वास्तव में उसके शब्दकोष में मेहनती शब्द है ही नहीं तो वह समझेगा भी कैसे? यह सोचकर मैंने अंग्रेजी का शब्द प्रयोग करना चाहा।  मैंने कहा, " रुद्रांश hardworking है।"
" नहीं। मैं hardworking नहीं हूँ । मैं softworking हूँ। आप मुझे hardworking क्यों कहती हो?" यह सुनते ही हमारे हँसी के फव्वारे छूट पड़े। लेकिन रूद्रांश यह समझने का प्रयास कर रहा था कि हम सब हँस क्यों रहे हैं?













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Wednesday, January 20, 2016

सूर्य की प्रतीक्षा

गरम नरम रिश्तों की धूप
ठंडी सी पड़ गई
ठंड में सिकुड़ते वार्तालाप
शब्दों में सिमट गए
मौन हो गई वाणी
मुँह में में ही घुलकर
फिसल जाती है ध्वनि
अल्हड़ से नाचते वर्ण
एक दूसरे में उलझकर
गुमसुम हो गए
फीके पड़ गए शोख़ रंग
पानी में डूबी ब्रश
कलाकृति भी बना चुकी
रंगों के अभाव ने
भावना को भुला दिया
अनदेखी कलाकृति की भाषा
मूक हो वीरान पड़ी है
प्रतीक्षा है एक सूर्य की
बादल चीरकर आने वाली
सुनहली लुभावनी धूप की
और जीवन में सुरम्य साहस भरते
सूरज के सतरंगी घोड़ों की
जो फीके रंगों को फिर से निखार दें
और मूक वाणी में स्वर भर दें